Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

विदेशों में बसे भारतीय मोदी को क्यों चाहते हैं?

हमें फॉलो करें विदेशों में बसे भारतीय मोदी को क्यों चाहते हैं?
, बुधवार, 17 अप्रैल 2019 (11:34 IST)
- टीम बीबीसी हिन्दी (नई दिल्ली)
 
भारत में 11 अप्रैल से दुनिया का सबसे विशाल लोकतांत्रिक चुनाव शुरू हो चुका है। 90 करोड़ भारतीय इस चुनाव में मतदान करने के क़ाबिल हैं। इस बार भारत भर में 39 दिनों में मतदान की प्रक्रिया पूरी हो रही है। 11 अप्रैल से शुरू हुआ मतदान सात चरणों में होगा और 19 मई तक चलेगा।
 
इसी चुनाव में मतदाता यह फ़ैसला करेंगे कि हिन्दू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी के नरेंद्र मोदी ही फिर से प्रधानमंत्री बनेंगे या फिर कोई और नेता इस गद्दी पर विराजमान होंगे। 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद मतदाता सूची में 8.3 करोड़ नए मतदाता जोड़े गए हैं। इस चुनाव में 18 से 19 साल के 1.5 करोड़ लोग वोट देने के योग्य हैं।
 
दिसंबर में हुए तीन राज्यों के चुनाव में सत्ताधारी बीजेपी की हार के बाद नरेंद्र मोदी के एक बार फिर पीएम बनने को लेकर पार्टी के भीतर भी आत्मविश्वास डोलता दिख रहा है। भारत में चुनाव प्रचार अभी शिखर पर हैं और हर बार की तरह इस बार भी दुनियाभर के भारतवंशी इस चुनाव में फ्रंटफुट पर हैं।
 
ब्रिटेन में भारतीय प्रवासी बड़ी संख्या में हैं और चुनाव को लेकर यहां के प्रवासियों में भी काफ़ी उथल-पुथल है। ये लोग सड़कों पर निकल रहे हैं और सोशल मीडिया पर भी कैंपेन का हिस्सा बन रहे हैं।
 
द नेशनल इंडियन स्टूडेंट्स एंड एलुम्नी यूनियन यूके (एनआईएसएयू) भारत में चुनाव को लेकर काफ़ी सक्रिय है। यह ब्रिटेन में भारतीय मूल के युवाओं का संगठन है। इन्हें लगता है कि भारत के आम चुनावों में इनकी बड़ी भूमिका है।
 
एनआईएसएयू की चेयरमैन सनम अरोड़ा का कहना है कि इस बार उम्मीद से कहीं ज़्यादा लोग भारत में वोट करने जा रहे हैं। सनम अरोड़ा ने कहा, "लोग न केवल वोट देने जा रहे हैं बल्कि ज़मीन पर चुनाव प्रचार में भी शामिल हैं। भारतीय छात्रों में इस चुनाव को लेकर काफ़ी गहमागहमी है।"
 
आम चुनाव से पहले एआईएसएयू ने भारत से बाहर रह रहे छात्रों की मांगों और चिंताओं को लेकर एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें अहम मुद्दा दोहरी नागरिकता, भारतीय संसद में प्रतिनिधित्व और भारत से बाहर मताधिकार की मांगें शामिल हैं। मतलब यह साफ़ है कि भारतीय मूल के लोग विदेशी नागरिकता हासिल करने के बाद भी अपनी मिट्टी से संपर्क ख़त्म नहीं होने देना चाहते और भारत की सत्ता किसके हाथ में होगी इसमें काफ़ी दिलचस्पी रखते हैं।
 
हालांकि नॉन रेजिडेंट इंडियंस यानी एनआरआई जिनके पास भारतीय पासपोर्ट हैं लेकिन वो विदेशों में रहते हैं उन्हें भारत में वोट करने का अधिकार है। एनआरआई के लिए प्रॉक्सी वोटिंग जैसी व्यवस्था अभी तक नहीं हो पाई है। भारतीय चुनावों के मतदान में भारतीय प्रवासियों के मतदान का प्रतिशत अब भी बहुत छोटा है। इसके बावजूद भारतीय प्रवासियों का भारत की राजनीति में बड़ा दख़ल है।
 
अमोघ शर्मा ऑक्सफ़र्ड यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ़ इंटरनेशनल डेवलपमेंट में भारत की राजनीतिक पार्टियां और चुनावी कैंपेन पर रिसर्च कर रहे हैं। उन्होंने द डिप्लोमैट से कहा है कि भारतीय प्रवासी चुनाव में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
 
शर्मा कहते हैं, "हालांकि यह कहना थोड़ी अतिशयोक्ति होगी कि भारतीय प्रवासी भारतीय मतदाताओं की सोच बदल सकते हैं। मेरा मानना है कि ज़मीन पर जो ट्रेंड है उसे वो और हवा भले दे सकते हैं।"
 
अमोघ शर्मा कहते हैं कि "भारतीय प्रवासी, भारत में चुनाव के वक़्त अलग-अलग तरह की भूमिका अदा कर रहे हैं। इनमें राजनीतिक पार्टियों के लिए पैसे जुटाना, चुनावी अभियान में तकनीकी पक्ष को मज़बूत करना, ज़मीन पर जाकर किसी सियासी पार्टी के पक्ष में अभियान चलाना और लॉबीन्ग करना है। मतलब ये किसी भी पार्टी की जीत में एक अहम टूल का काम करते हैं।"
 
इनग्रिड थरवाथ ने राजनीति विज्ञान में पीएचडी की है। वो पिछले कई सालों से भारतीय प्रवासियों पर स्टडी कर रही हैं। वो कहती हैं कि वेम्बली स्टेडियम और मेडिसन स्क्वेयर में भारतीय प्रवासियों की भीड़ देख अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इनका भारतीय राजनीति में कितना प्रभाव है।
 
वो कहती हैं, "विदेशों में बसे भारतीय प्रवासी बड़ी संख्या में हैं। पिछले 20 सालों में भारत सरकार और भारत के दक्षिणपंथी सियासी ग्रुपों ने इन प्रवासियों से रिश्ते गहरे करने के लिए बहुत कुछ किया है। ब्रिटेन में हिन्दू प्रवासियों के साथ इन्होंने अच्छे संबंध बनाए हैं।"
 
द डिप्लोमैट की रिपोर्ट के अनुसार 2019 के चुनाव में बीजेपी ने ब्रिटेन के 2000 भारतीय प्रवासियों को भारत में बुलाया है ताकि वो पार्टी के चुनावी अभियान में हिस्सा ले सकें।
 
आख़िर बीजेपी को भारतीय प्रवासियों में चुनाव जिताने को लेकर इतनी संभावनाएं क्यों दिखती हैं?
इनग्रिड कहती हैं, "1975 में भारत में जब आपातकाल लगा तो आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसी दौरान आरएसएस ने देश के बाहर ख़ुद को फैलाना शुरू किया। 1998 में बीजेपी सत्ता में आई और उसी दौरान बीजेपी ने वैश्विक स्तर पर अपना नेटवर्क मज़बूत किया। ख़ास करके ब्रिटेन और अमेरिका में।"
 
अमोघ शर्मा कहते हैं, "बीजेपी ने मज़बूत राष्ट्र बनाने का वादा किया और सुशासन लाने की बात कही। बीजेपी ने कहा कि वो भारत को विश्व स्तर का देश बनाएगी। विदेशों में बसे भारतीयों को ये वादे पसंद आए। उन्हें लगा कि जहां उनका जन्म हुआ है और अभी वो जहां रह रहे हैं उसमें बराबरी आएगी।"
 
कई लोग मानते हैं कि भारतीय प्रवासियों के बीच मोदी ने अपनी पकड़ मज़बूत की है। इनग्रिड कहती हैं, "मोदी ने इस चीज़ को ज़ोर-शोर से प्रचारित किया कि भारत एक मज़बूत देश है और भारतीय होना गर्व की बात है। भारतवंशियों में ऊंची जातियों के मध्य वर्ग को मोदी की बातें रास आईं। अगर आप मोदी समर्थक एनआरआई को देखें तो पता चलता है कि सभी ऊंची जाति के हिन्दू हैं।"
 
भारत में राजनीतिक पार्टियों के लिए इनका समर्थन काफ़ी अहम है। इनसे वित्तीय और तकनीकी मदद का मिलना किसी भी पार्टी की बड़ी सफलता के तौर पर देखा जाता है। कई लोग मानते हैं कि बीजेपी ने दुनिया भर में बसे भारतवंशियों की इस ताक़त को पहले पहचान लिया था।
 
भारतीय प्रवासियों में विपक्षी आवाज़
ऐसा नहीं है कि विदेशों में बसे भारतीयों के बीच सारी आवाज़ मोदी के समर्थन में है। यहां मोदी विरोधी आवाज़ भी है। इनग्रिड और अमोघ शर्मा दोनों का मानना है कि भारतीय प्रवासियों के बीच कोई एक आवाज़ नहीं है।
 
अमोघ शर्मा ने द डिप्लोमैट से कहा है, "भारतीय प्रवासी बीजेपी को पसंद करते हैं लेकिन मोदी विरोधी आवाज़ भी कमज़ोर नहीं रही है। बीजेपी के समर्थन के साथ मोदी विरोधी आवाज़ भी हमेशा से मज़बूत रही है। ये सच है कि मोदी समर्थक से कम मोदी विरोधी हैं लेकिन विरोधी आवाज़ भी प्रभावकारी है।"
 
भारत में पहले चरण के मतदान से पहले लंदन में भारतीय दूतावास के बाहर प्रदर्शनकारी जुटे और उन्होंने मोदी सरकार में अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार को लेकर विरोध किया। इसका आयोजन साउथ सॉलिडिरेटी ग्रुप, एसओएएस यूनिवर्सिटी इंडिया सोसाइटी और दलित अधिकार ग्रुपों ने किया था।
 
भारतीयों प्रवासियों को एकजुट करने के लिए अटल बिहारी वाजेपयी ने अपने कार्यकाल में भारतीय प्रवासी दिवस की शुरुआत की थी। इस मौक़े पर दुनिया भर के भारतवंशी भारत आते हैं और उनको प्रधानमंत्री संबोधित करते हैं। इस साल जनवरी में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन किया था।
 
अमेरिका में भी मोदी को फिर से पीएम बनाने के लिए उनके समर्थन अभियान चला रहे हैं। न्यूजर्सी में 'चौकीदार मार्च' निकाला गया तो वर्जीनिया और वॉशिंगटन में 'कार रैली' निकाली गई।
 
अमेरिकन इंडिया पब्लिक अफेयर्स कमिटी के अध्यक्ष जगदीश सेवहानी ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा है, "भारत के भविष्य के लिए 2019 का आम चुनाव बेहद ख़ास है। बीजेपी के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा प्राथमिकता में है। मोदी एक बार फिर से प्रधानमंत्री बनते हैं तो टिकाऊ आर्थिक प्रगति होगी।"
 
भारतवंशियों को अपने पक्ष में करने के लिए मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान ही कोशिश शुरू कर दी थी। नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने पीएम उम्मीदवार घोषित किया तो उन्होंने इसे और गंभीरता से लिया। अब राहुल गांधी भी कुछ ऐसा ही करते दिख रहे हैं। राहुल ने लंदन से लेकर खाड़ी के देशों लोगों को संबोधित किया है और अपना एजेंडा रखा है।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

चुनावों से परेशान सोने के तस्कर