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कर्नाटक : निर्दलीय लड़ रही अभिनेत्री सुमलता जिनका मोदी ने किया समर्थन - ग्राउंड रिपोर्ट

हमें फॉलो करें कर्नाटक : निर्दलीय लड़ रही अभिनेत्री सुमलता जिनका मोदी ने किया समर्थन - ग्राउंड रिपोर्ट
, सोमवार, 15 अप्रैल 2019 (07:55 IST)
ज़ुबैर अहमद
बीबीसी संवाददाता, मंड्या (कर्नाटक) से
 
बेंगलुरु से 150 किलोमीटर दूर सारंगी क़स्बे में उत्साह है। पहली बार वोट देने वाली दो लड़कियां एक भारी माला लिए खड़ी हैं। वो एक स्वागत टीम का हिस्सा हैं जिनमें कई और महिलाएं शामिल हैं। हर घर के बाहर लोग खड़े हैं।
 
माहौल त्योहार जैसा है, ठीक वैसा ही जैसे दशकों पहले चुनावी माहौल हुआ करता था। सबको इंतज़ार है सुमलता अंबरीश का जो इस चुनावी क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार हैं जिन्हें नरेंद्र मोदी का समर्थन हासिल है।
 
उनके प्रतिद्वंद्वी हैं 29 वर्षीय निखिल कुमारस्वामी जो मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के बेटे और राज्य के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के पोते हैं। एक घंटे की देरी के बाद मोटरसाइकलों और वाहनों के एक लंबे क़ाफ़िले के साथ वो गांव में प्रवेश करती हैं।

अंबरीश की लोकप्रियता
पटाख़ों की आवाज़ों और फूलों की बौछार से उनका स्वागत किया जाता है। वो अपनी गाड़ी पर ही खड़ी होकर, चारों तरफ़ हाथ हिलाकर, अपने ज़ोरदार स्वागत का शुक्रिया अदा करती हैं। सुमलता 250 के क़रीब बहुभाषी फ़िल्मों की अभिनेत्री रह चुकी हैं।
 
उससे भी बढ़कर जो बात उनके पक्ष में जाती है वो ये कि उनके पति अंबरीश एक लोकप्रिय फ़िल्म स्टार थे जिनका देहांत 6 महीने पहले ही हुआ है। उन्होंने इस क्षेत्र का 1998 में जनता दल से और 1999 और 2004 में कांग्रेस पार्टी से लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया था।
 
इतिहास बदलने की तमन्ना
इसीलिए इस चुनावी क्षेत्र के लोग 55 साल की सुमलता को यहां की बहू मानते हैं और उन्हें वही सम्मान देते हैं जो ये लोग उनके पति को दिया करते थे। लेकिन सुमलता अपने प्रतिद्वंद्वी निखिल कुमारस्वामी की वंशावली से थोड़ा घबराई हुई ज़रूर हैं।
 
वे कहती हैं कि मेरे प्रतिद्वंद्वी मुख्यमंत्री के बेटे हैं और सत्ताधारी दल के हैं। ज़िले में जेडीएस के आठ विधायक हैं और उनमें से तीन मंत्री हैं। इसलिए मैं एक कठिन चुनौती का सामना कर रही हूं। कर्नाटक का चुनावी इतिहास भी सुमलता के ख़िलाफ़ है। राज्य ने 1951 से अब तक केवल दो निर्दलीय उम्मीदवारों को जिताया है।
 
कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन
सुमलता इससे वाक़िफ़ हैं। वो कहती हैं, हो सकता है मैं इतिहास बदल दूं। सुमलता की स्थिति उस समय थोड़ी मज़बूत हुई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मैसूर में एक भाषण के दौरान उनका नाम लेकर उनका समर्थन किया। बीजेपी ने यहां से कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया है और पार्टी के कार्यकर्ता निंगराज कहते हैं कि उनकी पार्टी उनको पूरा सहयोग दे रही है।
 
नरेंद्र मोदी हाल ही में मैसूर आए थे और हमसे सुमलता अंबरीश का समर्थन करने को कहा था। हम उनके साथ हैं। येदुयरप्पा ने भी हमें उनका समर्थन करने का संदेश दिया है। जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) और कांग्रेस गठबंधन राज्य में सत्ता में है। निखिल मंड्या से गठबंधन के उम्मीदवार हैं।
 
कार्यकर्ताओं का विद्रोह
दोनों दलों के नेताओं के बीच तालमेल तो है लेकिन जो बात सुमलता के पक्ष में जाती है वो है ज़मीनी सतह पर इस गठबंधन के कार्यकर्ताओं के बीच टकराव। मंड्या के इस चुनावी क्षेत्र से 2014 और 2018 के उपचुनाव में जेडीएस की जीत हुई थी, लेकिन कांग्रेस ने कई बार ये सीट जीती है।
 
कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के खुले विद्रोह के दो कारण हैं- एक ये कि कार्यकर्ता निखिल को भाई-भतीजावाद के उम्मीदवार की तरह देखते हैं जिनका राजनीति में कोई अनुभव नहीं है। और दूसरे अंबरीश के मरने के बाद उनकी विधवा के प्रति ज़बर्दस्त सहानुभूति है और वो चाहते थे कि उनकी श्रद्धांजलि के रूप में कांग्रेस सुमलता को टिकट देती।
 
निर्दलीय उम्मीदवार
सुमलता कहती हैं, अपने पति की विरासत को जारी रखने और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की इच्छा पूरी करने के लिए मैंने निर्दलीय उम्मीदवार की हैसियत से चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया।
 
सुमलता सही मायने में गठ्बबंधन के गले में हड्डी बनी हुई हैं। वे कहती हैं, मुझे हर जगह लोगों से मिले प्यार और समर्थन से ताक़त मिलती है। सारंगी में मुझे कोई ऐसा नहीं मिला जो सुमलता का समर्थक न हो।
 
बेवना यहां के यूथ कांग्रेस के एक कार्यकर्ता हैं, सुमलता इस क्षेत्र की बहू हैं। ये हमारे आत्मसम्मान का मामला है।अगर राहुल गांधी भी कहें कि गठबंधन को वोट दो तो हम लोग उनकी बात नहीं मानेंगे। पार्टी छोड़ देंगे लेकिन आत्मसम्मान से सौदा नहीं करेंगे।
 
मुख्यमंत्री की मौजूदगी
मामले की नज़ाकत को देखते हुए ख़ुद मुख्यमंत्री कुमारस्वामी अपने बेटे की चुनावी मुहिम में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। वो भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि उनके बेटे को कड़ी चुनौती का सामना है।
 
वो बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, राज्य में गठबंधन को लेकर कोई समस्या नहीं है। केवल मंड्या में कुछ दिक़्क़त हैं। बीजेपी, आरएसएस, कांग्रेस के कुछ साथी और स्थानीय मीडिया निर्दलीय उम्मीदवार का समर्थन कर रहे हैं। लेकिन ये गठबंधन चुनाव में सफल रहेगा।
 
मंड्या में बेंगलुरु-मैसूर नेशनल हाइवे पर उनके एक रोड शो के दौरान मैंने कई लोगों से बात की। एक तरफ़ मुख्यमंत्री का भाषण चल रहा था और दूसरी तरफ़ वो मुझसे कह रहे थे कि उनका वोट सुमलता को जाएगा।
 
देवेगौड़ा ने बदली सीट
कर्नाटक की 28 सीटों के लिए मतदान 18 और 23 अप्रैल को होगा। मंड्या में चुनाव 18 अप्रैल को होगा। लेकिन कांग्रेस के कई कार्यकर्ताओं ने मुझसे कहा कि पार्टी के कार्यकर्ता गठबंधन से ख़ुश नहीं हैं और कई जगहों पर वो या तो घर में बैठे हैं या गठबंधन के ख़िलाफ़ काम कर रहे हैं।
 
तुमकुरु चुनावी क्षेत्र से जेडीएस के संस्थापक और पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा चुनाव लड़ रहे हैं। ये कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। कांग्रेस के कार्यकर्ता कहते हैं कि देवेगौड़ा अपने परिवार के एक सदस्य के लिए अपनी पारंपरिक सीट हासन छोड़ तुमकुरु चले गए हैं।
 
कांग्रेस के समर्थक और कार्यकर्ता यहां भी विद्रोह के मूड में नज़र आते हैं। स्थानीय मीडिया के अनुसार देवेगौड़ा की यहां से जीत पुख़्ता नहीं कही जा सकती।
 
कर्नाटक में कड़ा मुक़ाबला
कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस एक साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं। इस विद्रोह से राज्य सरकार को फ़िलहाल कोई ख़तरा नहीं है। लेकिन आम चुनाव के नतीजों के बाद हालात बदल सकते हैं।
 
लोकसभा की 28 सीटों के लिए बनाए गए इस गठबंधन में कांग्रेस सीनियर पार्टनर है जो 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। बाक़ी आठ सीटों पर जेडीएस के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। पिछले आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 17 सीटें मिली थीं।
 
दक्षिण भारत में कर्नाटक एक अकेला राज्य है यहां बीजेपी दूसरी पार्टियों पर हावी है। इस बार इसे गठबंधन से चुनौती मिल रही है। लेकिन बीजेपी के नेता दावा करते हैं कि गठबंधन के कार्यकर्ताओं के बीच तनाव से फ़ायदा उन्हें ही होगा।

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