माजिद जहांगीर, कश्मीर से बीबीसी हिंदी के लिए
भारत प्रशासित कश्मीर में सुरक्षाबलों की 100 अतिरिक्त कंपनियों की तैनाती के फैसले के बाद से कश्मीर घाटी में डर का माहौल है। इसे लेकर आम लोगों में हैरानी और उलझन है और सब इसके अपने-अपने मतलब निकाल रहे हैं।
राजनीतिक दलों से लेकर आम लोग तक यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि कश्मीर में 100 अतिरिक्त कंपनियां भेजने के बाद क्या होगा। 26 जुलाई 2019 को सोशल मीडिया पर गृह मंत्रालय के एक आदेश की कॉपी काफी शेयर की जाने लगी थी।
इस कॉपी में लिखा था कि कश्मीर में विद्रोही गतिविधियों के खिलाफ ग्रिड और क़ानून व्यवस्था को मजबूत करने के लिए अर्धसैनिक बलों की 100 अतिरिक्त कंपनियां भेजी जाएंगी। इनमें सीआरपीएफ की 50, बीएसएफ की 10 और एसएसबी की 30 और आईटीबीपी की 10 कंपनियां शामिल हैं।
कुछ न्यूज रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने कश्मीर में दो दिन बिताए और सुरक्षा अधिकारियों के साथ अलग से बैठक की थी। रिपोर्ट्स का यह भी कहना था कि अजित डोभाल के कश्मीर घाटी के दो दिवसीय दौरे के बाद अतिरिक्त सुरक्षाबल भेजने का फैसला लिया गया है। जैसे ही आदेश की कॉपी सार्वजनिक हुई डर और खौफ ने पूरे कश्मीर को जकड़ लिया। कश्मीर में राजनीतिक दल और ज़्यादा सुरक्षाबल भेजने के खिलाफ हैं।
राजनीतिक दलों का डर
पीडीपी अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इस फैसले के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि कश्मीर एक राजनीतिक मसला है और इसके लिए राजनीतिक समाधान की जरूरत है।
महबूबा मुफ्ती ने कहा, 'केंद्र सरकार के इस फ़ैसले से घाटी के लोगों में खौफ का माहौल है। कश्मीर में और ज़्यादा सुरक्षाबलों की कोई ज़रूरत नहीं है। जम्मू-कश्मीर एक राजनीतिक समस्या है जिसका सैन्य समाधान नहीं है। भारत सरकार को अपनी नीति पर फिर से विचार करना होगा।'
जेके पीपल्स मूवमेंट के अध्यक्ष शाह फैज़ल ने कहा कि हमें चिंता है कि अगर जल्दबाज़ी में कुछ निर्णय लिया गया तो कश्मीर के हालात बिगड़ सकते हैं। उन्होंने बीबीसी से कहा, 'जब से सोशल मीडिया पर सर्कुलर शेयर होना शुरू हुआ है तब से हर कोई डर में है। मैंने आज एयरपोर्ट पर देखा है और लोगों लगता है कि हालात ख़राब हो सकते हैं और कश्मीर में कुछ बड़ा हो सकता है। कश्मीर एक संघर्ष क्षेत्र है जहां अफवाहें बहुत आसानी से फैलती हैं। यह एक अजीब स्थिति है। अभी तक किसी वरिष्ठ अधिकारी का बयान भी नहीं आया है जिससे की अफवाहों को शांत किया जा सके।'
उनसे ये पूछने पर कि किस तरह की चिंताएं हैं तो शाह फैज़ल ने कहा, 'पिछले कुछ महीनों में कई चर्चाएं हुई हैं। जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को खत्म किया जा सकता है। हाल ही में इस मुद्दे पर चर्चा भी की गई थी। यह भी कहा जा रहा है कि सरकार कोई असाधारण कदम भी उठा सकती है। लेकिन, हमारा मानना है कि ऐसे संवैधानिक मामले जल्दी में नहीं सुलझ सकते।'
अतिरिक्त सुरक्षाबल भेजने के फ़ैसले के आरोप की आलोचना करते हुए पूर्व एमएलए और आवामी इत्तेहाद पार्टी के अध्यक्ष इंजीनियर राशिद ने कहा, "कश्मीर में सुरक्षाबलों का आना कोई नहीं बात नहीं है। लेकिन, जिस उद्देश्य के लिए वो आ रहे हैं, वो चिंताजनक है। हमने यहां पकड़ो और मारों की नीति देखी है। हमने यहां लोगों को मरते देखा है। यहां कई अज्ञात कब्रें हैं।"
इंजीनियर राशिद कहते हैं, 'कश्मीर के लोग कश्मीर की समस्या के समाधान के बारे में बात करते हैं। अगर कश्मीरियों के पास 25 पैसे हैं तो वो एक रुपये की मांग कर रहे हैं लेकिन केंद्र सरकार का कहना है कि वो 25 पैसे भी वापस दे दो। मैं भारत सरकार से अपील करता हूं कि कोई बचकाना कदम न उठाए। इन तरीकों से कश्मीरियों को नहीं दबाया जा सकता।'
'मन में डर बैठ जाता है'
कश्मीर में आम लोग अतिरिक्त सुरक्षाबलों के आने के फ़ैसले से डरे हुए हैं। लोगों का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि क्या होने वाला है।
अब्दुल अहद ने बीबीसी हिंदी को बताया, 'कोई नहीं जानता की क्या होने वाला है। यहां तक कि हमारे दो पूर्व मुख्यमंत्रियों को भी नहीं पता कि आगे क्या होगा। हम आम लोगों ने बस सुना है कि अतिरिक्त सुरक्षाबल भेजे जा रहे हैं जो हमारे लिए चिंता की बात है। ऐसे हालात में लोगों के मन में डर बैठ जाता है। अगर कुछ होने वाला है तो सरकारी अधिकारियों को इस बारे में स्पष्ट रूप से बताना चाहिए क्योंकि ये उनकी जिम्मेदारी है।'
'ये एक नियमित प्रक्रिया है'
हालांकि, बीजेपी की जम्मू-कश्मीर इकाई ने अनुच्छेद 35ए हटाने की ख़बरों को साफ़ तौर पर ख़ारिज कर दिया है। उनका कहना है कि अतिरिक्त सुरक्षाबल चुनाव को देखते हुए भेजे जा रहे हैं।
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र रैना ने पत्रकारों को बताया, 'यह फैसला चुनाव को लेकर किया गया है। आने वाले दिनों में राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और इसके लिए अतिरिक्त सुरक्षाबलों की जरूरत होगी। महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्लाह ट्वीट करके डर पैदा कर रहे हैं। ऐसा कुछ नहीं है। आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है।' इस मामले में शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि यह एक नियमित प्रक्रिया है।
इंस्पेक्टर जनरल सीआरपीएफ रविदीप साही ने श्रीनगर में एक समारोह के दौरान एक सवाल के जवाब में कहा, 'सुरक्षाबलों का आना और जाना एक निरंतर प्रक्रिया है। कानून व्यवस्था और चरमपंथ विरोधी ऑपरेशन को मजबूत करने की ज़रूरत महसूस हुई है। यह नियमित तौर पर होता रहता है।'
पिछले दो सालों में भारत की सुरक्षा एजेंसियों ने कई अलगाववादी नेताओं, कार्यकर्ताओं और व्यापारियों को आतंकी फंडिंग के आरोप में गिरफ्तार किया है। हाल ही में, अपने दो दिवसीय कश्मीर दौरे पर गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि आतंकवाद और अलगाववाद को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।