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जब कलाम ने मुशर्रफ़ को लेक्चर दिया

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BBC Hindi

, शनिवार, 27 जुलाई 2019 (16:56 IST)
रेहान फ़ज़ल, बीबीसी संवाददाता
'मिसाइल मैन' के नाम से मशहूर भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम अब हमारे बीच नहीं रहे। पूरा देश उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए उनके जीवन और उनकी बातों और उपलब्धियों को याद कर रहा है।
 
बीबीसी संवाददाता रेहान फ़ज़ल भी पाकिस्तान के जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ से अब्दुल कलाम की वो चर्चित मुलाक़ात, कूटनीतिक शैली, और दूसरी कई दिलचस्प बातें याद कर रहे हैं।
 
जब साल 2005 में जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ भारत आए तो वो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह के साथ-साथ राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से भी मिले। मुलाक़ात से एक दिन पहले कलाम के सचिव पीके नायर उनके पास ब्रीफ़िंग के लिए गए।
 
पीके नायर ने बताया, ''सर कल मुशर्ऱफ़ आपसे मिलने आ रहे हैं।'' उन्होंने जवाब दिया, ''हां मुझे पता है।'' नायर ने कहा, ''वो ज़रूर कश्मीर का मुद्दा उठाएंगे। आपको इसके लिए तैयार रहना चाहिए।'' कलाम एक क्षण के लिए ठिठके, उनकी तरफ़ देखा और कहा, ''उसकी चिंता मत करो। मैं सब संभाल लूंगा।''
 
तीस मिनट की मुलाक़ात : अगले दिन ठीक 7 बजकर 30 मिनट पर परवेज़ मुशर्रफ़ अपने क़ाफ़िले के साथ राष्ट्रपति भवन पहुंचे। उन्हें पहली मंज़िल पर नॉर्थ ड्राइंग रूम में ले जाया गया। कलाम ने उनका स्वागत किया। उनकी कुर्सी तक गए और उनकी बग़ल में बैठे। मुलाक़ात का वक़्त तीस मिनट तय था।
 
कलाम ने बोलना शुरू किया, ''राष्ट्रपति महोदय, भारत की तरह आपके यहां भी बहुत से ग्रामीण इलाक़े होंगे। आपको नहीं लगता कि हमें उनके विकास के लिए जो कुछ संभव हो करना चाहिए?'' जनरल मुशर्रफ़ हां के अलावा और क्या कह सकते थे।
 
वैज्ञानिक भी कूटनीतिक भी : कलाम ने कहना शुरू किया, ''मैं आपको संक्षेप में ‘पूरा’ के बारे में बताउंगा। पूरा का मतलब है प्रोवाइंडिंग अर्बन फ़ैसेलिटीज़ टू रूरल एरियाज़।'' पीछे लगी प्लाज़मा स्क्रीन पर हरकत हुई और कलाम ने अगले 26 मिनट तक मुशर्रफ़ को लेक्चर दिया कि ‘पूरा’ का क्या मतलब है और अगले 20 सालों में दोनों देश इसे किस तरह हासिल कर सकते हैं।
 
तीस मिनट बाद मुशर्रफ़ ने कहा, ''धन्यवाद राष्ट्रपति महोदय। भारत भाग्यशाली है कि उसके पास आप जैसा एक वैज्ञानिक राष्ट्रपति है।'' हाथ मिलाए गए और नायर ने अपनी डायरी में लिखा, ''कलाम ने आज दिखाया कि वैज्ञानिक भी कूटनीतिक हो सकते हैं।''
 
3 लाख 52 हज़ार रुपए : मई 2006 में राष्ट्रपति कलाम का सारा परिवार उनसे मिलने दिल्ली आया। कुल मिलाकर 52 लोग थे। उनके 90 साल के बड़े भाई से लेकर उनकी डेढ़ साल की परपोती भी। ये लोग आठ दिन तक राष्ट्रपति भवन में रुके। अजमेर शरीफ़ भी गए। कलाम ने उनके रुकने का किराया अपनी जेब से दिया।
 
यहां तक कि एक प्याली चाय तक का भी हिसाब रखा गया और उनके जाने के बाद कलाम ने अपने अकाउंट से 3 लाख 52 हज़ार रुपए का चेक काट कर राष्ट्रपति कार्यालय को भेजा। उनके राष्ट्रपति रहते ये बात किसी को पता नहीं चली। बाद में जब उनके सचिव नायर ने उनके साथ बिताए गए दिनों पर किताब लिखी, तो पहली बार इसका ज़िक्र किया।
 
इफ़्तार का पैसा अनाथालय को : इसी तरह नवंबर 2002 में रमज़ान के महीने में कलाम ने अपने सचिव को बुलाकर पूछा, ''ये बताइए कि हम इफ़्तार भोज का आयोजन क्यों करें? वैसे भी यहां आमंत्रित लोग खाते-पीते लोग होते हैं। आप इफ़्तार पर कितना ख़र्च करते हैं?''
 
राष्ट्रपति भवन के आतिथ्य विभाग के प्रमुख को फ़ोन लगाया गया। उन्होंने बताया कि इफ़्तार भोज पर मोटे तौर पर ढ़ाई लाख रुपए का ख़र्च आता है। कलाम ने कहा, ''हम ये पैसा अनाथालयों को क्यों नहीं दे सकते? आप अनाथालयों को चुनिए और ये सुनिश्चित करिए कि ये पैसा बर्बाद न जाए।''
 
राष्ट्रपति भवन की ओर से इफ़्तार के लिए निर्धारित राशि से आटे, दाल, कंबल और स्वेटर का इंतेज़ाम किया गया और उसे 28 अनाथालयों के बच्चों में बांटा गया। लेकिन बात यहीं ख़त्म नहीं हो गई।
 
कलाम ने नायर से कहा, ''ये सामान तो आपने सरकार के पैसे से ख़रीदवाया है। इसमें मेरा योगदान क्या हुआ? मैं आपको एक लाख रुपए का चेक दे रहा हूं। उसका भी उसी तरह इस्तेमाल करिए जैसे आपने इफ़्तार के लिए निर्धारित पैसे का किया है, लेकिन किसी को ये मत बताइए कि ये पैसे मैंने दिए हैं।''
 
बारिश ने भी कलाम का ख़्याल रखा : राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भारत के सबसे सक्रिय राष्ट्रपति थे। अपने पूरे कार्यकाल में उन्होंने 175 दौरे किए। इनमें से सिर्फ़ सात विदेशी दौरे थे। वो लक्ष्यद्वीप को छोड़कर भारत के हर राज्य में गए। 15 अगस्त 2003 को कलाम ने स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर शाम को राष्ट्रपति भवन के लॉन में हमेशा की तरह एक चाय पार्टी का आयोजन किया। क़रीब 3000 लोगों को आमंत्रित किया गया।
 
सुबह आठ बजे से जो बारिश शुरू हुई तो रुकने का नाम नहीं लिया। राष्ट्रपति भवन के अधिकारी परेशान हो गए कि इतने सारे लोगों को भवन के अंदर चाय नहीं पिलाई जा सकती। आनन-फ़ानन में 2000 छातों का इंतज़ाम कराया गया।
 
जब दोपहर बारह बजे राष्ट्रपति के सचिव उनसे मिलने गए तो कलाम ने कहा, ''क्या लाजवाब दिन है। ठंडी हवा चल रही है।'' सचिव ने कहा, ''आपने 3000 लोगों को चाय पर बुला रखा है। इस मौसम में उनका स्वागत कैसे किया जा सकता है?'' कलाम ने कहा, ''चिंता मत करिए हम राष्ट्रपति भवन के अंदर लोगों को चाय पिलाएंगे।''
 
ऊपर बात कर ली है : सचिव ने कहा हम ज़्यादा से ज़्यादा 700 लोगों को अंदर ला सकते हैं। मैंने 2000 छातों का इंतज़ाम तो कर दिया है लेकिन ये भी शायद कम पड़ेंगे। कलाम ने उनकी तरफ़ देखा और बोले, ''हम कर भी क्या सकते हैं। अगर बारिश जारी रही तो ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा... हम भीगेंगे ही न।''
 
परेशान, बदहाल नायर दरवाज़े तक ही पहुंचे थे कि कलाम ने उन्हें पुकारा और आसमान की ओर देखते हुए कहा, ''आप परेशान मत होइए। मैंने ऊपर बात कर ली है।'' उस समय दिन के 12 बजकर 38 मिनट हुए थे।
 
ठीक 2 बजे अचानक बारिश थम गई। सूरज निकल आया। ठीक साढ़े पांच बजे कलाम परंपरागत रूप से लॉन में पधारे। अपने मेहमानों से मिले। उनके साथ चाय पी और सबके साथ तस्वीरें खिंचवाई। सवा छ: बजे राष्ट्रगान हुआ। जैसे ही कलाम राष्ट्रपति भवन की छत के नीचे पहुंचे, फिर से झमाझम बारिश शुरू हो गई। अंग्रेज़ी पत्रिका वीक के अगले अंक में एक लेख छपा, क़ुदरत भी कलाम पर मेहरबान।

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