पौराणिक जानकारी के अनुसार भगवान भोलेनाथ के पसीने से वास्तु पुरुष की उत्पत्ति हुई है। संपूर्ण वास्तु शास्त्र इन्ही पर केंद्रित माना जाता है। वास्तु पुरुष का प्रभुत्व सभी दिशाओं में व्याप्त है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार वास्तु पुरुष भूमि पर अधोमुख होकर स्थित हैं। उनका सिर ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा की ओर, पैर नैऋत्य कोण यानी दक्षिण-पश्चिम दिशा तथा उनकी भुजाएं पूर्व एवं उत्तर दिशा और टांगें दक्षिण एवं पश्चिम दिशा की ओर हैं।
पौराणिक शास्त्र बताते हैं कि वास्तु पुरुष की प्रार्थना पर ब्रह्मा जी ने वास्तु शास्त्र के नियमों की रचना की थी। इनकी अनदेखी करने पर मनुष्य को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक हानि होना निश्चित रहता है।
वास्तु पुरुष को हर मकान का संरक्षक माना गया है यानी वास्तु पुरुष को भवन का प्रमुख देवता माना जाता है। यही वजह है कि हर मकान अथवा हर निर्माण के आधार में वास्तु पुरुष का वास माना गया है।
अत: खास तौर पर भवन निर्माण अथवा मकान की नींव खोदते समय, घर का मुख्य द्वार लगाते समय, गृह प्रवेश के समय तथा संतान एवं विवाह के समय वास्तु पुरुष की पूजा अवश्य करनी चाहिए। इससे वास्तु पुरुष खुश होकर मनुष्य को सुख-समृद्धि, हमेशा सेहतमंद बने रहने का आशीष देते हैं।
चूंकि वास्तु पुरुष की उत्पत्ति शिव जी के पसीने से हुई है। इसीलिए वास्तु पुरुष के साथ-साथ, शिव जी, प्रथम पूज्य श्री गणेश तथा ब्रह्मा जी की पूजा करना भी लाभदायी है। वेदों के अनुसार किसी भी निर्माण कार्य के अवसर पर वास्तु पुरुष का पूजन नहीं होता है तो वह निर्माण शुभ फलदायी नहीं होगा।