Vasantotsav festival 2022: ब्रज मंडल में वसंत पंचमी के दिन को वसंतोत्सव का दिन माना जाता है। यहां पर होली का उत्सव बसंत पंचमी के दिन से ही प्रारंभ हो जाता है। ब्रजभूमि में भगवान श्रीकृष्ण और राधा के रास उत्सव का आयोजन होता है। आओ जानते हैं वसंतोत्सव पर कैसी रहती है ब्रज में धूम।
भगावन श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में कहा है- ''मैं ऋतुओं में वसंत हूं।''...क्योंकि इस दिन से प्रकृति का कण-कण वसंत ऋतु के आगमन में आनंद और उल्लास से गा उठता है। मौसम भी अंगड़ाई लेता हुआ अपनी चाल बदलकर मद-मस्त हो जाता है। प्रेमी-प्रेमिकाओं के दिल भी धड़कने लगते हैं। इस दिन से जो-जो पुराना है सब झड़ जाता है। प्रकृति फिर से नया श्रृंगार करती है। टेसू के दिलों में फिर से अंगारे दहक उठते हैं। सरसों के फूल फिर से झूमकर किसान का गीत गाने लगते हैं। कोयल की कुहू-कुहू की आवाज भंवरों के प्राणों को उद्वेलित करने लगती है। गूंज उठता मादकता से युक्त वातावरण विशेष स्फूर्ति से और प्रकृति लेती हैं फिर से अंगड़ाइयां। इसी कारण यह प्रेम के इजहार का दिवस माना जाता है।
इस अवसर पर ब्रजभूमि में भगवान श्रीकृष्ण और राधा के रास उत्सव को मुख्य रूप से मनाया जाता है। संपूर्ण ब्रजमंडल में होली और रास की बड़ी धूम रहती है। ब्रजमंडल में खासकर मथुरा में लगभग 45 दिन के होली के पर्व का आरंभ वसंत पंचमी से ही हो जाता है। बसंत पंचमी पर ब्रज में भगवान बांकेबिहारी ने भक्तों के साथ होली खेलकर होली महोत्सव की शुरुआत की थी। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। ब्रज मंडल में होली सबसे ज्यादा धूम बरसाने में रहती है। विश्वविख्यात है बसराने की होली। इस होली को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। यहां कई तरह से होली खेलते हैं, रंग लगाकर, डांडिया खेलकर, लट्ठमार होली आदि। राधा-कृष्ण के वार्तालाप पर आधारित बरसाने में इसी दिन होली खेलने के साथ-साथ वहां का लोकगीत 'होरी' गाया जाता है। होली का राधारानी के रास और रंग से बहुत गहरा नाता है।
होलिका दहन के दूसरे दिन धुलेंडी और धुलेंडी के चौथे दिन रंगपंचमी मनाई जाती है। कहते हैं कि इस दिन श्री कृष्ण ने राधा पर रंग डाला था। इसी की याद में रंग पंचमी मनाई जाती है। इस दिन श्री राधारानी और श्रीकृष्ण की आराधना की जाती है। राधारानी के बरसाने में इस दिन उनके मंदिर में विशेष पूजा और दर्शन लाभ होते हैं।
यह भी कहा जाता है कि इस दिन श्रीकृष्ण ने गोपियों के संग रासलीला रचाई थी और दूसरे दिन रंग खेलने का उत्सव मनाया था। श्रीकृष्ण जब थोड़े बड़े हुए तो वृंदावन उनका प्रमुख लीला स्थली बन गया था, जहां उन्होंने रास रचाकर दुनिया को प्रेम का पाठ पढ़ाया था।
आज भी जब होली को सेलीब्रेट करने का सोचते हैं तौ दिमाग में ब्रज का नाम अवश्य आता है। इसके पीछे सिर्फ एक कारण है राधा और कृष्ण का दिव्य प्रेम। बसंत में एक-दूसरे पर रंग डालना श्रीकृष्ण लीला का ही अंग माना गया है। माना जाता है कि कृष्ण जब छोटे थे तब उनको खत्म करने के इरादे से विष से भरी राक्षसी पूतना ने अपना दूध पिला दिया था, जिसके कारण भगवान श्री-कृष्ण का रंग गहरा नीला हो गया था।
ऐसी जनश्रुति प्रचलित है कि अपने रंग से खुद को अलग महसूस करने पर श्री-कृष्ण को लगने लगा कि उनके इस रंग की वजह से न तो राधा और न ही गोपियां उन्हें पसंद करेंगी। उनकी परेशानी देखकर माता यशोदा ने उन्हें कहा कि वह जाकर राधा को अपनी पसंद के रंग से रंग दें और भगवान कृष्ण ने माता की यह सलाह मानकर राधा पर रंग डाल दिया। वह दिन रंग पंचमी का ही था।
इसके बाद से ही ब्रज में गोप और गोपियों के बीच जमकर होली मनाने की परंपरा प्रारंभ हो गई। इसलिए मथुरा-वृंदावन की होली राधा-कृष्ण के प्रेम रंग में डूबी होती है. बरसाने और नंदगांव में लठमार होली खेली जाती है। इस दिन, लोग कृष्ण, राधा व गोपियों सहित पात्रों को सजाते हैं और उल्लास के साथ होली का पर्व मनाते हैं।