आपने शायद कभी गौर किया होगा, जब आप किसी वेबसाइट पर कोई सामग्री सर्च करते हैं, तो फिर हर वेबसाइट जो आप खोलते हैं, उस पर सिर्फ वही दिखाई आते रहता है।
जैसे मान लीजिए, कई बार जब आप ऑनलाइन शॉपिंग करते हैं और कोई एक चीज खरीदने का मन बनाते हैं तो उस सामान का विज्ञापन आपको इंटरनेट पर बार बार दिखता है।
जैसे मान लीजिए आपको जूते खरीदने हैं और आपने एक दो बार ऑनलाइन ई-कॉमर्स वेबसाइट पर कुछ जूते देख लिए तो जब भी आप इंटरनेट चलाएंगे तो आपको हर तरफ वो जूते ही दिखने लगेंगे। उसके बाद अगर आप सोशल मीडिया भी चलाते हैं तो आपको उन जूतों के ही विज्ञापन दिखने लगते हैं। हो सकता है कि शायद आपने भी पहले ये नोटिस किया हो, लेकिन कभी सोचा है कि आखिर ये कैसे होता है।
आज हम इसका कारण बताएंगे कि आखिर ये कैसे होता है और हर वेबसाइट को कैसे पता चल जाता है कि अभी आपको जूते खरीदने हैं या फिर जूते खरीदने की सोच रहे हैं। यहां तक कि आप कहीं दूसरी जगह शिफ्ट होते हैं या फिर आपके जीवन में कोई बदलाव होने वाला हो, जैसे घर में कोई बच्चा होने वाला है तो भी आपको उसी के हिसाब से विज्ञापन दिखने लग जाते हैं।
इसके पीछे कुछ तकनिकल वजह हैं, जिससे हर वेबसाइट पर आपको एक ही प्रोडक्ट के विज्ञापन दिखने लग जाते हैं।
दरअसल, इनकी वजह से इंटरनेट कुकीज। जैसे ही आप किसी वेबसाइट पर जाते हैं और वहां कुछ एक्टिविटी करते हैं वो आपके ब्राउजर पर कुकीज सेव कर देती है। अब सवाल है कि यह कुकीज है क्या।
कुकीज एक बहुत छोटा सा प्रोग्राम होता है, जिसकी मदद से वेबसाइट आपको एक खास यूजर के रूप में याद रखती है। यह काम हर एक वेबसाइट करती है और आपका मूड पता कर लेती है। आपने देखा होगा कि जब आप कोई वेबसाइट पर जाते हैं तो आपसे कुकीज की परमिशन मांगी जाती है और आप हां कर देते हैं।
इससे होता क्या है कि आपकी कुकीज के जरिए आपकी हिस्ट्री सेव हो जाती है और फिर एड कंपनियां आपको आसानी से ट्रेक कर लेती हैं। क्योंकि जब आप किसी वेबसाइट पर जाते हैं तो आप वहां कहां कहां क्लिक करते हैं, कितनी देर रहते हैं और किस तरह के खास लिंक पर क्लिक कर रहे हैं, उसका डेटा तैयार हो जाता है। उस डेटा के आधार पर आपको कंटेंट दिया जाता है।
आपकी सभी एक्टिविटी याद रखी जाती है और इससे एड स्पेस में आपकी एक्टिविटी के हिसाब से ही विज्ञापन दिखना शुरू हो जाते हैं। वहीं, अगर और कोई कंटेंट है तो आपको पिछले सर्च के आधार पर ही कंटेंट मिलने लगता है। जैसे जब आप एक तरीके के वीडियो ज्यादा देखते हैं तो सोशल साइट्स पर आपको वैसे ही वीडियो स्क्रीन पर मिलते हैं।
खास बात ये है कि सभी वेबसाइट्स आपस में जुड़ी होती हैं और एक दूसरे से आपकी कुकीज शेयर करती है यानी आपकी पसंद ना पसंद का पता दूसरी वेबसाइट को भी चल जाता है। कई कंपनियों पर आरोप लगे हैं कि लोगों की बातचीत को रिकॉर्ड कर भी डेटा तैयार किया जा रहा है और उन्हें कंपनियों को दिया जा रहा है, हालांकि इन आरोपों को खारिज किया गया है।