Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

कॉर्पोरेट घरानों पर सरकार की मेहरबानी क्यों?

हमें फॉलो करें कॉर्पोरेट घरानों पर सरकार की मेहरबानी क्यों?
नई दिल्ली। एक ओर जहां केन्द्र सरकार प्रत्यक्ष करों से करों का आधार बनाने के लिए दिन-रात किए रहती है, वहीं बड़े कॉर्पोरेट घरानों से कर्ज के पैसे वसूलने में इसे भारी शर्म आती है। लगता है कि कर्ज कॉर्पोरेट घरानों ने नहीं वरन सरकारों ने उन्हें जबरन दिया है। यह स्थिति तब है जबकि सरकारी बैंकों की माली हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है।
  
 
सरकार की नॉन परफॉर्मिंग एसेट्‍स (एनपीए) लाखों करोड़ों में है और सरकारी बैंकों के एक लाख करोड़ रुपए ऐसी देनदार कंपनियों पास फंसे हैं, जो सक्षम होते हुए भी लोन नहीं चुका रहे हैं। जाहिर है कि इन्हें राजनीतिक संरक्षण हासिल है और इनका 'ऊपर तक' प्रभाव है क्योंकि अगर यह मामला आम कर्जदारों, किसानों का होता तो सरकारी बैंक इन कर्जदाताओं की आंतों में हाथ डालकर अपने पैसे वसूल कर लेते।  
 
यह कोई रहस्य नहीं है कि सरकारी बैंकों के कुल एनपीए में 77 फीसदी हिस्सेदारी बड़े कॉर्पोरेट घरानों की है। ये ऐसे कर्जदार हैं जो कि सक्षम होते हुए भी कर्ज नहीं चुकाते हैं। ऐसे कर्जदारों को ‘विलफुल डिफाल्टर’कहा जाता है। भारत के कुल 21 बड़े सरकारी बैंकों का लगभग 7.33 लाख करोड़ रुपया एनपीए की श्रेणी में है। यह वह राशि है जो देश की अर्थव्यवस्था में काम नहीं आ रही है यानी इसे फंसी हुई रकम कह सकते हैं।
 
सरकारी बैंकों ने कुल मिलाकार 9025 डिफाल्टरों की एक लिस्ट जारी की है, जिनमें से एक विजय माल्या भी हैं। इनमें से 8423 डिफाल्टरों पर बैंकों ने कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। इसके अलावा 1968 डिफाल्टरों के विरुद्ध पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई है। इन पर लगभग 31 हजार करोड़ रुपए बकाया हैं। वहीं लगभग 87 हज़ार करोड़ रुपए लेकर बैठे हुए 6937 व्यक्तियों और कंपनियों की संपत्तियां जब्त करने और उन्हें बेचकर पैसा वसूलने की कवायद शुरू हो चुकी है।
 
लेकिन वसूली की यह प्रक्रिया बहुत धीमी गति से आगे बढ़ती है। आरबीआई द्वारा संसद में पेश की गई रिपोर्ट बताती है कि विजया बैंक के कुल एनपीए में 53 फीसदी विलफुल डिफाल्टरों की हिस्सेदारी है। इस लिहाज से वह सारे बैंकों में सबसे आगे खड़ा है वहीं 1.9 लाख करोड़ रुपए की राशि के साथ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एनपीए का आंकड़ा सबसे बड़ा है। 
 
सितंबर 2017 तक के आंकड़े बताते हैं कि कुल एनपीए में 77 फीसदी हिस्सेदारी बड़े कॉर्पोरेट घरानों की है। इससे एक बात साफ होती है कि जो जितना बड़ा नाम है, वह उतना ही बड़ा डिफ़ाल्टर भी है। कहना गलत न होगा कि व्यावसायिक शुचिता या कॉर्पोरेट गवर्नेंस की बात को बड़े घराने धता बता रहे हैं। जानकारों के मुताबिक, पिछला रिकॉर्ड देखा जाए तो बैंकों के लिए इस रकम को वापस पाना काफी मुश्किल काम है और सरकार के पास इतनी राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है कि वह बड़े कारोबारियों से अपनी रकम वसूल सके।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कैसे बनेंगे 'सबके लिए आवास'?