नक्सलवाद, आतंकवाद और ओशो

अनिरुद्ध जोशी
बियॉण्ड सायकोलॉजी, भारत के जलते प्रश्न और देख कबीरा रोया में ओशो ने आतंकवाद औ र नक्सलवाद ी मनोविज्ञा न पर विस्तृत चर्चा की है। उन्होंने आतंकवाद के कारण और इसके समाधान का रास्ता भी बताया है, लेकिन हमारे यहाँ के राजनीतिज्ञों को कारण और समाधान की कोई चिंता नहीं। चिंता है वोट की।

मनुष्य को और मनुष्यता को सभी धर्मों ने मिलकर मार डाला है। बचपन से ही यह सिखाया जाता है कि हमारा धर्म ही दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धर्म है, जबकि ऐसा कहने वाले खुद अपने धर्म को नहीं जानते उन्होंने तो जो मुल्लाओं और पंडितों से सुन रखा है उसे ही सच मानते हैं।

राजनीतिज्ञ व्यक्ति धर्म का उपयोग करना अच्छी तरह जानता है और कट्टपंथी लोग भी राजनीतिज्ञों का उपयोग करना सीख गए हैं। धर्म का अविष्कार लोगों को कबिलाई संस्कृति से बाहर निकालकर सभ्य बनाने के लिए हुआ था लेकिन हालात यह है कि यही धर्म हमें फिर से असभ्य होने के लिए मजबूर कर रहा है।

सोवियत संघ के पतन के पूर्व सन 1986 में ओशो ने भविष्यवाणी की थी कि आतंकवाद विकराल रूप धारण करने वाला है। ओशो ने भविष्य में झाँकते हुए कहा था कि ध्यान रहे, आतंकवाद बमों में नहीं हैं, किसी के हाथों में नहीं है, वह तुम्हारे अवचेतन में है। यदि इसका उपाय नहीं किया गया तो हालात बदतर से बदतर होते जाएँगे। और लगता है कि सब तरह के अंधे लोगों के हाथों में बम हैं। और वे अंधाधुंध फेंक रहे हैं। हवाई जहाजों में, बसों और कारों में, अजनबियों के बीच...अचानक कोई आकर तुम पर बंदूक दाग देगा। और तुमने उसका कुछ बिगाड़ा नहीं था।

उपरोक्त वाक्य आज क े हालातों में अक्षरश: सही साबित हो गए कि...अचानक कोई आकर तुम पर बंदूक दाग देगा। और तुमने उसका कुछ बिगाड़ा नहीं था (फिर भी)। आतंकवाद के लिए ओशो पूरे समाज को दोषी मानते हैं। समाज बिखर रहा है और जल्द ही राजनीतिज्ञों और कंटरपंथीयों की वजह से असंतोष अपनी चरम सीमा पर होगा। ओशो मानते हैं कि आतंकवाद की बहुत-सी अंतरधाराएँ हैं। मूल में है इसके संगठित धर्म और राजनीति, इसी से उपजता है संगठित अपराध और आतंकवाद।

ओशो के अनुसार यह तभी बदलेगा जब हम आदमी की समझ को जड़ से बदलेंगे जो कि हिमालय लाँघने जैसा दुरूह काम है, क्योंकि वे ही लोग जिन्हें तुम बदलना चाहोगे, तुमसे लड़ेंगे। वे आसानी से नहीं बदलना चाहेंगे, लेकिन बदलने के रास्ते हैं।

ओशो के मुताबिक यह भी सोचने वाली बात है कि आणविक अस्त्रों की होड़ में सभी राष्ट्र पागल हो रहे हैं। पुराने हथियार अब एक्सपाइरी होते जा रहे हैं। ऐसे में चीन और अमेरिका जैसी सरकारें पुराने हथियारों को नष्ट करने की बजाय उन गरीब देशों को बेच रही है, जहाँ के बाजार में इनका मिलना बहुत ही आसान है। आतंकवादियों और नक्सलवादियों के लिए इन्हें खरीदना आसान है और ये लोग इनका उपयोग करना भी भलीभाँति जानते हैं।

जो लोग यह समझते हैं कि हमारा धर्म ही सत्य है उन्हें उनके धर्म के मर्म और इतिहास की जरा भी जानकारी नहीं है। बहुत लोगों ने अपने धर्मग्रंथ भी पढ़े होंगे, लेकिन उन्हें इस बात का इल्म नहीं कि आखिर इसमें क्या लिखा है। यदि कोई भी धर्म आपको किसी भी तरह की राजनीति या सामाजिक व्यवस्था में धकेलता है तो वह धर्म कैसे हो सकता है?

दुनिया के तथाकथित संगठित धर्म सेक्स, भय, और लालच के आधार पर खड़े किए गए हैं। ईसा मसीह और ईसाई धर्म में बहुत फर्क है। भगवान बुद्ध ने कहा था कि मेरी कोई मूर्ति मत बनाना लेकिन दुनिया में सर्वाधिक मूर्तियाँ उनकी ही है। हजरत मोहम्मद साहिब ने कभी नहीं कहा कि इस्लाम के लिए निर्दोष लोगों की हत्या करो।

अब बात करें राजनीति की तो जब से राजतंत्रों का खात्मा हुआ, राजनीति सभ्य होने के बजाय और संगठित रूप से मानव जा‍ति का शोषण करने में कुशल हो गई है। राजनीति खड़ी ही कि जाती है समाज को तोड़ने के आधार पर वर्ना राजनीति चल नहीं सकती।

राजनीति के जिंदा रहने का आधार ही समाज में फूट डालना और लोगों को भयभीत करना हैं। यदि आप लोगों को जब तक किसी दूसरे धर्म या राष्ट्र के खतरे के प्रति भयभीत नहीं करोगे, तब तक लोग आपके समर्थन में नहीं होंगे। किसी भी देश का राजनीतिक दल हो या धर्म, वह आज भी इसी आधार पर समर्थन जुटाता है कि तुम असुरक्षित हो। मुल्क या धर्म खतरे में है।

ओशो कहते हैं कि बहुत ही प्राचीन काल से ही व्यक्ति के अवचेतन में धर्म और राजनीति ने यह डर बैठाया है। निश्चित ही जिस तरह से मुल्क गलत हाथों में हैं, उसी तरह से मध्यकाल से ही धर्म भी गलत हाथों में चला गया है। आतंकवाद और संगठित अपराध का मूल कारण वे सारे गलत 'हाथ' है जिनके हाथों में विज्ञान और धर्म है।

यदि इस अंधेरी रात से छुटकारा पाना है तो अपने 'घर' की नहीं 'सरहद' की सोचो। सोचो कि किस तरह मानव को फिर से मानव बनाया जा सकें। यदि भारत को सच में ही विश्व गुरु बनना है तो जरूरी है कि हम अपने असली नायकों की बातें सुने और उन पर अमल करें। भारत में वह शक्ति है जिसके जरिये वह पूरी ‍दुनिया को शांति का संदेश देकर मिसाल कायम कर सकता है।

आतंक का कारण आंतरिक पशुता: ओशो
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