Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

श्रीकृष्ण पर आया महामुनि उत्तंक को क्रोध,फिर क्या हुआ

हमें फॉलो करें श्रीकृष्ण पर आया महामुनि उत्तंक को क्रोध,फिर क्या हुआ
प्यास जो बुझ न सकी
 
श्रीकृष्ण स्वयं भी महाभारत रोक न सके। इस बात पर महामुनि उत्तंक को बड़ा क्रोध आ रहा था। दैवयोग से भगवान श्रीकृष्ण उसी दिन द्वारिका जाते हुए मुनि उत्तंक के आश्रम में आ पहुंचे। मुनि ने उन्हें देखते ही कटु शब्द कहना प्रारंभ किया- आप इतने महाज्ञानी और सामर्थ्यवान होकर भी युद्ध नहीं रोक सके। आपको उसके लिए शाप दे दूं तो क्या यह उचित न होगा?
 
भगवान कृष्ण हंसे और बोले- महामुनि! किसी को ज्ञान दिया जाए, समझाया-बुझाया और रास्ता दिखाया जाए तो भी वह विपरीत आचरण करे, तो इसमें ज्ञान देने वाले का क्या दोष? यदि मैं स्वयं ही सब कुछ कर लेता, तो संसार के इतने सारे लोगों की क्या आवश्यकता थी?
 
मुनि का क्रोध शांत न हुआ। लगता था वे मानेंगे नहीं- शाप दे ही देंगे।
 
तब भगवान कृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाकर कहा- महामुनि! मैंने आज तक किसी का अहित नहीं किया। निष्पाप व्यक्ति चट्टान की तरह सुदृढ़ होता है। आप शाप देकर देख लें, मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा। हां, आपको किसी वरदान की आवश्यकता हो तो हमसे अवश्य मांग लें।
 
उत्तंक ने कहा- तो फिर आप ऐसा करें कि इस मरुस्थल में भी जलवृष्टि हो और यहां भी सर्वत्र हरा-भरा हो जाए।
 
कृष्ण ने कहा 'तथास्तु' और वे वहां से आगे बढ़ गए।
 
महामुनि उत्तंक एक दिन प्रात:कालीन भ्रमण में कुछ दूर तक निकल गए। दिन चढ़ते ही धूलभरी आंधी आ गई और मुनि मरुस्थल में भटक गए। जब मरुद्गणों का कोप शांत हुआ, तब उत्तंक ने अपने आपको निर्जन मरुस्थल में पड़ा पाया। धूप तप रही थी, प्यास के मारे उत्तंक के प्राण निकलने लगे।
 
तभी महामुनि उत्तंक ने देखा- चमड़े के पात्र में जल लिए एक चांडाल सामने खड़ा है और पानी पीने के लिए कह रहा है।
 
उत्तंक उत्तेजित हो उठे और बिगड़कर बोले- शूद्र! मेरे सामने से हट जा, नहीं तो अभी शाप देकर भस्म कर दूंगा। चांडाल होकर तू मुझे पानी पिलाने आया है? उन्हें साथ-साथ कृष्ण पर भी क्रोध आ गया। मुझे उस दिन मूर्ख बनाकर चले गए। पर आज उत्तंक के क्रोध से बचना कठिन है। जैसे ही शाप देने के लिए उन्होंने मुख खोला कि सामने भगवान श्रीकृष्ण दिखाई दिए।
 
कृष्ण ने पूछा- नाराज न हों महामुनि! आप तो कहा करते हैं कि आत्मा ही आत्मा है, आत्मा ही इंद्र और आत्मा ही साक्षात परमात्मा है। फिर आप ही बताइए कि इस चांडाल की आत्मा में क्या इंद्र नहीं थे? यह इंद्र ही थे, जो आपको अमृत पिलाने आए थे, पर आपने उसे ठुकरा दिया। बताइए, अब मैं आपकी कैसे सहायता कर सकता हूं? यह कहकर भगवान कृष्ण भी वहां से अदृश्य हो गए और वह चांडाल भी।
 
मुनि को बड़ा पश्चाताप हुआ। उन्होंने अनुभव किया कि जाति, कुल और योग्यता के अभिमान में डूबे हुए मेरे जैसे व्यक्ति ने शास्त्र-ज्ञान को व्यावहारिक नहीं बनाया तो फिर यदि कौरवों-पांडवों ने श्रीकृष्ण की बात को नहीं माना तो इसमें उनका क्या दोष? महापुरुष केवल मार्गदर्शन कर सकते हैं। यदि कोई उस प्राप्त ज्ञान को आचरण में न लाए और यथार्थ लाभ से वंचित रहे, तो इसमें उनका क्या दोष?

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Shri Krishna 10 May Episode 8 : देवकी का अष्टम गर्भ, यशोदा की योगमाया और कंस का डर