निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्री कृष्णा धारावाहिक के 10 मई के आठवें एपिसोड कंस के आदेश से मथुरा में अत्याचार बढ़ जाते हैं तब जनता त्राहिमाम-त्राहिमाम करके भगावन को पुकारने लगती हैं।
भक्तों की पुकार सुनकर रात्रि में श्रीकृष्ण प्रकाशरूप में धरती पर उतरकर देवकी के उदर में स्थापित हो जाते हैं।
सभी देवी-देवता यह दृश्य आसमान से देखते रहते हैं। कारागार में ब्रह्मा सहित सभी उनकी स्तुति करने आते हैं।
प्रभात में देवकी और वसुदेव के आसपास फूलों की बिसात बिछ जाती है। जब माता देवकी की आंखें खुलती हैं तो वह यह दृश्य देखकर प्रसन्न और अचंभित हो जाती है। वह वसुदेवजी को उठाती हैं। वसुदेवजी भी उठकर खुद के चारों और फूल देखकर अचंभित हो जाते हैं और फिर वे देवकी के उदर (पेट) की ओर देखकर प्राणाम करते हुए कहते हैं स्वागत है प्रभु, स्वागत है। देवकी कहती हैं ये क्या कर रहे हैं आप?
इस पर वसुदेवजी कहते हैं कि तारणहार को नमस्कार कर रहा हूं। हां, देवी तुम्हारे उदर से एक नीली आभा चारों और प्रतिबिंबित हो रही है। तुम्हें अष्टम गर्भ की बधाई हो देवी। यह सुनकर माता देवकी भी कहती है आप सच कह रहे हैं आर्य। मेरा मन सहसा ही प्रफुल्लित हो उठा है। जैसे अब मन में किसी का भय ही नहीं रहा।
तभी दो सैनिक आकर देखते हैं और आश्चर्य करते हैं कि कारागार में ये फूल कहां से आए? वे देवकी और वसुदेवजी से पूछते हैं कि यह फूल कौन लाया? तभी पीछे से कारागार प्रधान भी अन्य सैनिकों के साथ आकर पूछते हैं कि ये फूल कौन लाया?
देवकी निर्भिक होकर कहती हैं कि यही प्रश्न मैं तुमसे पूछ सकती हूं कि हमारे सोते तुमने किसको अंदर आने दिया था? कारागार प्रधान पूछता है मैंने अदंर आने दिया? देवकी कहती है कि हां, सब तालों की चाबी तो तुम्हारे पास ही है। तुम द्वार खोलोगे तभी तो कोई अंदर आएगा ना?
कारागार प्रधान सकपका जाता है। देवकी पूछती है उत्तर दो कौन आया था अंदर? कारागार प्रधान घबराकर कहता है कि चलो-चलो सारे फूल इकट्ठे करो और महाराज को सूचना दो।
सभी जाकर कंस के सामने फूल रखकर इस घटना की सूचना देते हैं। कंस कहता है कि तुम्हारा कहना है कि इतने सारे फूल कारागार में स्वयं ही आ गए, इन्हें कोई लाया नहीं? कारागार प्रधान कहता है जी। इस पर कंस भड़क जाता है और कहता है मिथ्या भाषण मत करो।..कारागार प्रधान हाथ जोड़कर बताता है कि यह फूल अपने आप ही कारागार में आए हैं। कंस कहता है फिर क्या ये भी विष्णु की माया है। कारागार प्रधान कहता है कि हो सकता है।
घबराकर कंस कहता है कि हो सकता है कि यही अष्टम गर्भ हो? वह फूल ला सकता है तो बच्चा भी ला सकता है। कारागार में पहरा बढ़ा दो और दो-दो ताले लगा दो। एक परिचारिका द्वार से हर समय देवकी को ही देखती रहे। समझे। ये विष्णु बहुत बड़ा मायावी है, बहुत बड़ा। हो सकता है कि वह नौवें महीने की प्रतिक्षा भी ना करे और किसी भी समय गर्भ से प्रकट हो जाए। इसलिए प्रात: और सांय हमें दोनों समय पूरी सूचना मिलना चाहिए और किसी ने भी हामारी आज्ञा की अवहेलना की तो हम उसके टूकड़े-टूकड़े कर देंगे। जाओ।
उधर, श्रीकृष्ण पुन: योगमाया को बुलाते हैं और कहते हैं कि देवी योगमाया अब धरती पर तुम्हारे प्रादुर्भाव का समय है। हम दोनों को धरती पर एकसाथ प्रकट होना है। हम अपनी समस्त कलाओं सहित देवकी के पुत्र बनेंगे और तुम नंद की पत्नी यशोदा के गर्भ से जन्म लेना। तत्पश्चात परिस्थिति वश हम दोनों एक दूसरे के माता-पिता की गोद में चले जाएंगे। सो एक प्रकार से तुम हमारी बहन कहलाओगी। देवी योगामाया कहती हैं मेरे अहोभाग्य प्रभु।
रात्रि में यशोदा माता के उदर में जाकर योगमाया स्थापित हो जाती है। यशोदा मैया की नींद खुल जाती है और वह अपने उदर पर हाथ रखकर अद्भुत अनुभूति अनुभव करती है। वह जाकर नंदरायजी को जगाकर कहती है कि मैंने स्वप्न में आज फिर देवी माता के दर्शन किए। नंदराजय जी पूछते हैं, इस बार उन्होंने क्या कहा? तब यशोदा कहती हैं कि इस बार कहा कुछ नहीं। उनके भीतर से उनका एक छोटासा रूप निकलकर मेरे गर्भ में आ गया। बस फिर वह आशीर्वाद देकर चली गई। तब नंदजी कहते हैं कि मैंने भी एक स्वप्न देखा की एक छोटासा बालक हाथ में मुरली लिए हमारे घर का द्वार खोलकर हमारे घर में आ गया और बस तभी तुमने मुझे जगा दिया।
उधर, शांडिल्य ऋषि के पास अक्रूरजी जाकर कहते हैं कि देवकी के अष्टम गर्भ से कंस बहुत उत्तेजित हो गया है। अब हमें देवकी भाभी और वसुदेवजी की सुरक्षा करना होगी। इसलिए मैंने कारागार के चारों ओर अपने गुप्तचर फैला दिए हैं। शांडिल्य ऋषि कहते हैं आपको ये सब करने की कोई आवश्यकता नहीं। क्योंकि जो तारणहार माता देवकी के गर्भ में पधारे हैं वे तो स्वयं ही जगत के रक्षक हैं। उनकी रक्षा भला कौन करेगा?
उधर, गोकुल में माता यशोदा की गोद भराई का उत्सव धूमधाम से मनाया गया। बाद में अक्रूरजी बताते हैं नंदजी को कि इस समय देवी देवकी, देवी रोहिणी और देवी यशोदा के गर्भ में तीन महानतम शक्तियों का वास है। फिर अक्रूरजी बताते हैं कि कंस अब बड़ा सतर्क हो गया है। अक्रूरजी फिर वह सभी बातें बताते हैं कि किस तरह सप्तम गर्भ के समय कंस ने नाग देखा था और अष्टम गर्भ के समय फूल कारागार में बिछ गए थे। अक्रूरजी आगे कहते हैं कि कंस अब किसी पर भी भरोसा नहीं करता है और वह बहुत ही भयभीत हो गया है।
उधर, कंस पूछता है चाणूर से कि आज प्रात: परिचारिका ने आकर कारागार का समाचार नहीं दिया जाकर पूछो क्यों? चाणूर कहता है कि अभी उसके आने का समय नहीं हुआ।
थोड़ी देर में आ जाएगी। कंस कहता है कि नहीं वो नहीं आएगी। कहीं कारागार में कोई घटना तो नहीं घटी, जाओ तुम जाकर देखो। और सुनो! ये भी देखना कि वो सांप तो वहां नहीं है। फिर हम स्वयं जाकर देखेंगे कि इस गर्भ में विष्णु के कोई लक्षण है कि नहीं। जाओ।
उधर, कारागार में माता देवकी कहती है कि आर्य इस बार विचित्र अनुभव हो रहा है। बालक का बोझ ही नहीं प्रतीत हो रहा। दोनों का वार्तालाप चली ही रहा था तभी चाणूर अपने सैनिकों और कारागार प्रधान के साथ वहां आ धमकता है। देवकी और वसुदेव इससे भयभीत नहीं होते हैं।
वह कारागार प्रधान से पूछता है। यहां बाहर से कोई आया तो नहीं, किसी ने भीतर घुसने की चेष्ठा तो नहीं की? कारागार प्रधान कहता है....नहीं। फिर चाणूर कहता है कि कारागार के भीतर पहरा दोगुना कर दिया जाए और कारागार के बाहर आठों प्रहर पहरा रखा जाए। ये अष्टम गर्भ है। हमें हर प्रकार से सावधान रहना होगा। ऐसा कहकर चाणूर वहां से चला जाता है।... देवकी और वसुदेव दोनों मुस्कुराते हैं।
फिर चाणूर कंस को जाकर बताता है कि वहां सबकुछ सामान्य था लेकिन देवकी अवश्य बदल-बदली सी दिखाई दे रही थीं। उसके चेहरे पर जो भय होता था वह आज नहीं था। कंस डरते हुए कहता है कि ये तो बड़ी विचित्र बात है। तब चाणूर कहता हैं कि हां विचित्र तो है क्योंकि जो भय देवकी के चेहरे पर दिखाई देना था वह भय अब आपके चेहरे पर दिखाई दे रहा है। यह सुनकर कंस सकपका जाता है और हंसने की एंक्टिग करते हुए कहता है कि भय और मुझे। नहीं चाणूर नहीं। कंस कभी भयभीत नहीं होता।
चाणूर कहता है, परंतु आप विचलित तो हैं स्वामी। मेरा परामर्श मान लीजिए स्वामी। देवकी ही सारी चिंताओं की जड़ है। जड़ को ही काट दीजिए। न रहेगी देवकी और न रहेगी चिंता। यह सुनकर कंस कहता है नहीं, नहीं...तब चाणूर कहता है उसका वध कर दीजिए स्वामी। कंस कहता है नहीं, नहीं। वहां सांप है चाणूर, वहां सांप है। ऐसा कहते हुए कंस वहां से चला जाता है। जय श्रीकष्णा।