Shradh for child: श्राद्ध पक्ष में अक्सर यह प्रश्न उठता है कि यदि घर के किसी बालक या बालिका का असमय निधन हो गया हो, तो उनका श्राद्ध कर्म करना चाहिए या नहीं। यदि करना है, तो इसके क्या नियम हैं? शास्त्रों में बच्चों के श्राद्ध से जुड़े कुछ विशेष नियम बताए गए हैं, जिनका पालन करना आवश्यक है।
बालकों के श्राद्ध के नियम
जन्म से 2 वर्ष तक की आयु: यदि किसी बालक का निधन जन्म से लेकर 2 वर्ष की आयु के भीतर हो जाता है, तो उनका कोई श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है। इस स्थिति में न तो तर्पण, न पिंडदान और न ही कोई अन्य क्रिया करने का विधान है।
2 से 6 वर्ष की आयु: 2 वर्ष से अधिक और 6 वर्ष तक की आयु के बालक की मृत्यु होने पर केवल मलिन षोडषी की जाती है। मलिन षोडषी के अंतर्गत मृत्यु के छठे और दसवें दिन 10 पिंडदान करने का नियम है।
6 वर्ष से अधिक की आयु: यदि किसी बालक का यज्ञोपवीत संस्कार (जनेऊ) हो चुका है और उसकी आयु 6 वर्ष से अधिक है, तो उसके लिए सभी श्राद्ध कर्म जैसे मलिन षोडषी, एकादशी और तर्पण किए जाते हैं। यदि यज्ञोपवीत संस्कार नहीं हुआ है, तो केवल मलिन षोडषी ही की जाती है।
बालिकाओं के श्राद्ध के नियम
जन्म से 2 वर्ष तक की आयु: जन्म से लेकर 2 वर्ष तक की आयु वाली बालिका के निधन पर कोई भी श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है।
2 से 10 वर्ष तक की आयु: 2 वर्ष से अधिक और 10 वर्ष तक की आयु वाली बालिका की मृत्यु होने पर सिर्फ मलिन षोडषी का विधान है।
10 वर्ष से अधिक की आयु: यदि बालिका की आयु 10 वर्ष से अधिक है और वह विवाहिता है, तो उसके लिए सभी श्राद्ध संस्कार किए जाते हैं। यदि वह अविवाहित है, तो केवल मलिन षोडषी और तर्पण ही किया जाता है।
अन्य महत्वपूर्ण नियम
गर्भस्थ शिशु: गर्भ में ही समाप्त हुए शिशु का श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है। उनकी आत्मा की शांति के लिए धार्मिक अनुष्ठान किए जा सकते हैं, लेकिन श्राद्ध का विधान नहीं है। हालांकि कुछ विद्वान अजन्मी संतान की आत्मा की शांति मलिन षोडशी परंपरा का निर्वहन करने की सलाह देते हैं।
मृत्यु तिथि अज्ञात होने पर: यदि किसी बच्चे की मृत्यु की सही तिथि ज्ञात न हो, तो उनका श्राद्ध पितृ पक्ष की त्रयोदशी तिथि (तेरहवीं) के दिन करना शास्त्रसम्मत माना गया है।