kya bacchon ka shradh hota hai: सनातन धर्म में श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व है। यह एक ऐसा अनुष्ठान है जिसके माध्यम से हम अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए प्रार्थना करते हैं। लेकिन जब किसी नवजात शिशु की मृत्यु हो जाती है, तो उसके लिए श्राद्ध कर्म कैसे किया जाए? इस विषय पर शास्त्र और ज्योतिषीय मान्यताएं कुछ विशेष नियम बताती हैं, जिनका पालन करना आवश्यक है। आम तौर पर, जब किसी व्यक्ति का निधन होता है, तो उसका श्राद्ध उसकी मृत्यु तिथि पर किया जाता है, लेकिन नवजात शिशु के लिए नियम थोड़े अलग हैं।
नवजात शिशु के लिए श्राद्ध के नियम
शास्त्रों के अनुसार, यदि किसी बच्चे की आयु 6 वर्ष से कम है और उसका निधन हो जाता है, तो उसका श्राद्ध कर्म सामान्य पिंड दान के बजाय तर्पण के रूप में किया जाता है। तर्पण का अर्थ है जल, तिल और कुश के माध्यम से आत्मा को तृप्त करना।
• पिंडदान नहीं, केवल तर्पण: नवजात शिशु की मृत्यु के बाद, उसकी आत्मा को प्रेत योनि में अटकने से बचाने के लिए तर्पण किया जाता है। माना जाता है कि तर्पण के बाद शिशु की आत्मा पितृ योनि को प्राप्त होती है और मोक्ष की ओर अग्रसर होती है। इसलिए, नवजात का पिंड दान नहीं किया जाता, क्योंकि पिंड दान उन आत्माओं के लिए होता है जो जीवन का एक लंबा अनुभव ले चुकी होती हैं।
• मृत्यु तिथि पर तर्पण: नवजात शिशु का तर्पण उसकी मृत्यु तिथि पर ही किया जाना चाहिए। यह उसके प्रति सम्मान और प्रेम को व्यक्त करने का तरीका है और इससे उसकी आत्मा को शांति मिलती है।
• अज्ञात तिथि पर तर्पण: यदि किसी कारणवश नवजात शिशु की मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो, तो उसका तर्पण पितृपक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन किया जा सकता है। त्रयोदशी तिथि उन सभी बाल-मृतकों के लिए समर्पित है, जिनकी मृत्यु की तिथि अज्ञात है।
तर्पण और मोक्ष का महत्व
नवजात शिशु का तर्पण करने से उसकी आत्मा को शांति मिलती है। यह एक वैज्ञानिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है जो आत्मा को प्रेत योनि से मुक्त कर मोक्ष की ओर ले जाती है। यह परिवार के सदस्यों को भी मानसिक शांति प्रदान करता है कि उन्होंने अपने दिवंगत शिशु के लिए सही कर्मकांड किया है। यह माना जाता है कि जब हम तर्पण करते हैं, तो हम अपनी भावनाओं को ब्रह्मांड में भेजते हैं, जो उस आत्मा तक पहुंचती हैं और उसे शांति प्रदान करती हैं।
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