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ध्यानलिंगम् : शिव का इतना सुंदर और अलौकिक मंदिर आपने कहीं नहीं देखा होगा

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ध्यानलिंगम् : वेलिंगि‍रि पर्वतमाला की तलहटी में दक्षिण का अनूठा शिव मंदिर
 
रमेश कुमार गुप्ता
 
इस स्थान पर किसी विशेष विचार, प्रार्थना अथवा पूजा पद्धति का अवलंबन नहीं किया गया है। कोई भी धर्मावलंबी यहां आकर ध्यानलिंग में संचित ऊर्जा को ग्रहण कर सकता है।
 
उस गहन अंधेरी कंदरा में प्रवेश करते ही सामने एक विशाल शिवलिंग शक्तिपुंज-सा दृष्टिगोचर होता है। नीचे जलराशि में झिलमिलाते दीप एवं खिले कमल मन मंदिर को उल्लास से भर देते हैं। पुष्पों की सुवास से सुरभित पवन, तांबे के स्वर्ण जड़ित पात्र से लिंग पर टप-टप टपकते जल की प्रतिध्वनि एवं दीपों की जल में प्रतिछाया अंतर्मन को असीम शांति प्रदान करती है। इस अलौकिक दृश्य को दर्शनार्थीगण अपलक विस्फारित नेत्रों से ठगे-से देखते रह जाते हैं। 
 
यह वर्णन दक्षिण भारत के मेनचेस्टर कहे जाने वाले नगर कोयम्बटूर से 30 किलोमीटर दूर वेलिंगि‍रि पर्वतमाला की तलहटी में स्थित एक मंदिर के शिवलिंग का है जिसे 'ध्यानलिंगम्‌' कहा जाता है। देश में कुछ अत्यंत श्रेष्ठ धार्मिक एवं सांस्कृतिक केंद्रों का निर्माण इन दिनों हुआ है, जो भारत की प्राचीन वास्तुकला के श्रेष्ठ नमूने तो हैं ही, कला की दृष्टि से भी अनुपम हैं।

अहमदाबाद में अक्षरधाम, दिल्ली में लोटस टेम्पल एवं कन्याकुमारी में अरब सागर, बंगाल की खाड़ी एवं हिन्द महासागर के संगम पर निर्मित विवेकानंद स्मारक तो अब सर्वज्ञात हैं ही। ध्यानलिंगम्‌ मंदिर इसी श्रेणी में गिना जा सकता है, जो 1999 में ही लोकार्पित हुआ है। 
 
इस ध्यानलिंगम् के निर्माण की प्रेरणा एक कर्मवीर योगी संत श्री सद्गुरु जग्गी वासुदेव को, जब वे मैसूर स्थित चामुण्डी पहाड़ी की एक शिला पर ध्यानमग्न थे, प्राप्त हुई। इस अनुभूति ने उनके जीवन में हलचल पैदा कर दी और उन्होंने ध्यानलिंग निर्माण करने का संकल्प लिया। ध्यानलिंग के विषय में पुरातन ग्रंथों में गूढ़ विवरण ही था, अतः इस परिकल्पना को साकार करना अत्यंत दुष्कर कार्य था। परंतु संत ने तो ठान ली थी, सो गहन अध्ययन एवं अंतर्ज्ञान ने उन्हें प्रेरित किया कदम आगे बढ़ाने को और फिर उनके साथ इस स्वप्न को साकार करने के लिए जुटने लगे अनेक शिष्य, वास्तुविद्, अभियंता एवं दानी बंधुगण। वेलिंगि‍रि पर्वतमाला की तलहटी के घने जंगल में स्थान प्राप्त हो गया। 
 
मंदिर के रूपांकन में शास्त्रों के अनुसार ज्यामितीय आकार, परिक्रमा, गर्भगृह, प्रमुख देवता, अन्य देवतागण एवं उपयोग में आने वाली भवन सामग्री का सांगोपांग ध्यान रखा गया। गर्भगृह, जो विशाल डोम के आकार का बनाना तय हुआ, उसमें सीमेंट, कांक्रीट एवं सरियों का उपयोग न करते हुए परंपरागत ईंट, चूना, मिट्टी, रेती, नौसादर एवं विभिन्न जड़ी-बूटियों से निर्मित घोल का उपयोग किया गया। डोम के आकल्पन में भारतीय वास्तुकला के नियम तथा नवीन कम्प्यूटर तकनीक का प्रयोग किया गया। अठारह महीने में डोम बनकर तैयार हुआ तथा इस संपूर्ण परिसर के निर्माण में तीन वर्ष का समय लगा। 24 जून 1999 को संसार के प्रथम 'ध्यानलिंगम्‌' की स्थापना हुई और 23 नवंबर 1999 को संपूर्ण परिसर लोकार्पित हुआ। 
 
अब चलें परिसर दर्शन को! 
सर्वप्रथम प्रवेश करते ही सत्रह फुट ऊंचा सफेद ग्रेनाइट निर्मित 'सर्वधर्मस्तम्भ' है- जिसमें संसार के प्रमुख धर्मों के चिह्न अंकित हैं, जो प्रदर्शित करता है-'यह मंदिर सभी धर्मानुयायियों का स्वागत करता है।' इस स्तम्भ के पीछे मानव शरीर के सात चक्रों को दर्शित किया गया है। आगे बढ़ने पर मंदिर का प्रवेश द्वार मिलता है, जो प्राचीन वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है।

प्रवेश करने के लिए तीन अपेक्षाकृत ऊंची सीढ़ियां हैं, जो तम्‌, रज एवं सत्‌ की प्रतीक हैं। ऊंची इसलिए बनाई गई हैं ताकि सीढ़ियां उतरते समय स्नायुमंडल के भागों पर विशेष जोर पड़े, जिससे तन-मन ध्यानलिंग से प्रसारित ऊर्जा को ग्रहण करने को तैयार हो जाए।

आगे परिक्रमा की ओर बढ़ने पर बायीं ओर योगशास्त्र विज्ञान के पितामह पातंजलि की एवं विशाल शिव की ऊंची, काले ग्रेनाइट की अत्यंत प्रभावशाली प्रतिमा है।

दाहिनी ओर हरे ग्रेनाइट की वनश्री (पीपल वृक्ष) की प्रतिकृति है। देहरी पर सिद्धि अवस्था की प्रतीक छः ध्यानमग्न त्रिकोणाकार प्रतिमाएँ हैं। 
 
अब हम प्रवेश करने को तत्पर हैं उस अद्वितीय कंदरा में जो डोम के आकार की बनी है। इस डोम के निर्माण में अतिविशिष्ट पद्धति अपनाई गई है। इसकी नींव दस फुट गहरी ली गई है। इसकी जमीन से ऊंचाई 33 फुट, व्यास 76 फुट तथा वजन 700 टन है। इस अनुपात से इसकी विशालता का अनुभव किया जा सकता है। इस डोम को छः फुट ऊंची पत्थरों की जुड़ाई पर रखा गया है।

संपूर्ण निर्माण में न सीमेंट का उपयोग हुआ न सरियों का एवं न ही निर्माण हेतु कच्चे ढांचे का। केवल ईंटों एवं ग्रेनाइट पत्थर के शिलाखंडों को विशेष तकनीक से जोड़ा गया है। गर्भगृह में हवा एवं प्रकाश हेतु अट्ठाईस त्रिकोणाकार रोशनदान हैं तथा डोम शीर्ष पर एक स्वर्णपत्र परिवेष्ठित तांबे का लिंगाकार लघु डोम बनाया गया है, जो गर्भगृह के अंदर की गरम हवा को निष्कासित करता है तथा प्रकाश की किरणों का सीधे प्रवेश भी रोकता है। नीचे निर्मित रोशनदान से गर्भगृह में शीतल वायु प्रवेश करती है। अंदर गर्भगृह में दर्शनार्थियों को ध्यान लगाने हेतु 28 आलेनुमा बैठने के स्थान निर्मित किए गए हैं। 
 
अब कन्दरानुमा इस डोम आकार के गर्भगृह में प्रवेश करते हैं, जहां उपर्युक्त शिवलिंग के दर्शन होते हैं। इस अंधेरी कन्दरा में केवल दीपक का ही प्रकाश है। अंदर केंद्र में तेरह फुट नौ इंच ऊंचाई का विशाल काले ग्रेनाइट का शिवलिंग विशेष रूप से रसायनज्ञों द्वारा बनाए गए पारद के आधार पर टिका हुआ है। शिवलिंग को श्वेत ग्रेनाइट से निर्मित, मुंह खोले विश्राम की मुद्रा में एक महानाग सात फेरे में कुन्डली मारकर सुशोभित करता है।

सबसे नीचे जल का घेरा है। इसमें संपूर्ण शिवलिंग तैरता-सा दिखाई देता है। इस जल में छोटे-छोटे कमल खिले हुए हैं और दीपों का झिलमिलाता प्रकाश संपूर्ण परिसर को आलोकित करता रहता है। शिवलिंग मानव शरीर के सात चक्रों के प्रतीक तांबे के सात चमकदार वर्तुलों से घेरा गया है, जो लिंग की शोभा को अत्यंत आकर्षक बनाता है। लिंग के ऊपर स्थित तांबे के स्वर्ण जड़ित पात्र से सतत्‌ शीतल जल द्वारा अभिषेक होता रहता है। इसी संपूर्ण रचना को 'ध्यानलिंगम्‌' नाम दिया गया है। 
 
ध्यानलिंग प्राचीन भारतीय वास्तुकला को विज्ञानसम्मत आधार देकर निर्मित किया गया है। उसका आकार, रंग समन्वय, परिवेश इत्यादि ऊर्जा को संचित करके अनवरत प्रकाश किरणों के समान मानवमात्र के तन-मन को प्रभावित करते रहते हैं। अतः इस स्थान पर किसी विशेष विचार, प्रार्थना अथवा पूजा पद्धति का अवलंबन नहीं किया गया है। कोई भी धर्मावलंबी यहां आकर ध्यानलिंग में संचित ऊर्जा को ग्रहण कर सकता है। केवल गुरु-शिष्य का भाव आवश्यक है। ध्यानलिंग को मन में गुरु स्थान पर प्रतिष्ठित कर कुछ क्षण अपलक दर्शन एवं फिर नेत्र बंद कर नियत स्थान पर बैठना यही पर्याप्त है। 
 
इस मंदिर में एक और आश्चर्यजनक विशेषता है- यहां कोई स्तुति, कोई आरती अथवा कर्मकांड नहीं होता है। प्रतिदिन मध्याह्न 11.50 से 12.10 एवं सायंकाल 5.50 से 6.00 बजे तक 20 मिनट के लिए मानवमात्र की भाषा अर्थात्‌ ध्वनि का आलाप होता है, जिसे 'नाद आराधना' कहा जाता है। जल तरंग एवं अन्य वाद्यों द्वारा सुमधुर नाद निकाला जाता है। एक ब्रह्मचारी एवं एक ब्रह्मचारिणी द्वारा अत्यंत मधुर कंठ से निकाला गया आलाप उपस्थितजनों को स्वर्गिक आनंद की अनुभूति कराता है। दर्शनार्थियों को इस 'नाद आराधना' के समय अवश्य उपस्थित रहकर नादब्रह्म को हृदयंगम करना चाहिए। मंदिर परिसर प्रातः 6 बजे से रात्रि 8 बजे तक दर्शनार्थियों के लिए खुला रहता है।
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