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महर्षि अरविंद घोष, जानिए उनके जीवन की 10 खास बातें

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अनिरुद्ध जोशी

बंगाल के महान क्रांतिकारियों में से एक महर्षि अरविंद देश की आध्यात्मिक क्रां‍ति की पहली चिंगारी थे। उनका जन्म 15 अगस्त 1872 को कोलकाता में हुआ था और 5 दिसंबर 1950 को उनका पांडुचेरी में निधन हो गया था। उनके पिता के.डी. कृष्णघन घोष एक डॉक्टर थे। माता स्वर्णलता देवी और पत्नी का नाम मृणालिनी था। राज नारायण बोस, बंगाली साहित्य के एक जाने माने नेता, श्री अरविंद के नाना थे। आओ जानते हैं उनके बारे में 10 रोचक जानकारी।
 
 
1. 5 से 21 वर्ष की आयु तक अरविंद की शिक्षा-दीक्षा विदेश में हुई। वैसे तो अरविंद ने अपनी शिक्षा खुलना में पूर्ण की थी, लेकिन उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए वे इंग्लैंड चले गए और कई वर्ष वहां रहने के पश्चात कैंब्रिज विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की।  दरअसल, जब अरविंद घोष 5 साल के थे उन्हें दार्जिलिंग के लोरेटो कान्वेंट स्कूल में भेज दिया गया। दो साल के बाद 1879 में अरविंद घोष को उनके भाई के साथ उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेज दिया गया। अरविंद ने अपनी पढाई लंदन के सेंट पॉल से पूरी की। वर्ष 1890 में 18 साल की उम्र में अरविंद को कैंब्रिज में प्रवेश मिल गया।
 
2. अपने अंग्रेज समर्थ पिता की इच्छा का पालन करने के लिए, उन्होंने कैम्ब्रिज में रहते हुए आईसीएस के लिए आवेदन भी दिया। उन्होंने 1890 में भारतीय सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की। हालांकि वह घुड़सवारी की एक आवश्यक इम्तेहान में विफल हो गए और इसलिए उन्हें भारत सरकार की सिविल सेवा में प्रवेश की अनुमति नहीं मिली। आईसीएस अधिकारी बनने के लिए उन्होंने भरपूर कोशिश की पर वे अनुत्तीर्ण हो गए।
 
3. स्वदेश लौटने पर उनके ज्ञान तथा विचारों से प्रभावित होकर गायकवाड़ नरेश ने उन्हें बड़ौदा में अपने निजी सचिव के पद पर नियुक्त कर दिया। बाद में बड़ौदा से कोलकाता आने के बाद महर्षि अरविंद आजादी के आंदोलन में उतरे। कोलकाता में उनके भाई बारिन ने उन्हें बाघा जतिन, जतिन बनर्जी और सुरेन्द्रनाथ टैगोर जैसे क्रांतिकारियों से मिलवाया। 1902 में अहमदाबाद के कांग्रेस सत्र में अरविंद बाल गंगा तिलक से मिले और बाल गंगाघर तिलक से प्रभावित होकर वो भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष से जुड़ गए।
 
4. 1905 में व्हाईसरॉय लॉर्ड कर्झन ने बंगाल का विभाजन किया। सन् 1906 में जब बंग-भंग का आंदोलन चल रहा था तो उन्होंने बड़ौदा से कलकत्ता की ओर प्रस्थान कर दिया। इस दौरान उन्होंने 1906 में नौकरी से त्यागपत्र देकर 'वंदे मातरम्' साप्ताहिक के सहसंपादन के रूप मे कार्य प्रारंभ किया और सरकार के अन्याय के खिलाफ जोरदार आलोचना की। 'वंदे मातरम्' में ब्रिटीश के खिलाफ लिखने के वजह से उनके उपर मामला दर्ज किया गया लेकिन वो छुट गए। बंगाल के बाहर क्रांतिकारी गतिविधियों को बढ़ाने के लिए 'वन्दे मातरम्' में विदेशी सामानों का बहिष्कार और आक्रामक कार्यवाही सहित स्वतंत्रता पाने के लिए उनके कुछ प्रभवकारी तरीके उल्लिखित हैं। उनके प्रभावकारी लेखन और भाषण ने उनको स्वदेशी, स्वराज और भारत के लोगों के लिए विदेशी सामानों के बहिष्कार के संदेश को फैलाने में मदद किया।
 
5. जनता को जागृत करने के लिए अरविंद ने उत्तेजक भाषण दिए। उन्होंने अपने भाषणों तथा 'वंदे मातरम्' में प्रकाशित लेखों द्वारा अंग्रेज सरकार की दमन नीति की कड़ी निंदा की थी। अरविंद का नाम 1905 के बंगाल विभाजन के बाद हुए क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़ा और 1908-09 में उन पर अलीपुर बमकांड मामले में राजद्रोह का मुकदमा चला जिसके फलस्वरूप अंग्रेज सरकार ने उन्हें जेल की सजा सुना दी। जब सजा के लिए उन्हें अलीपुर जेल में रखा गया तो जेल में अरविंद का जीवन ही बदल गया। महर्षि अरविंद पहले एक क्रांतिकारी नेता थे लेकिन बाद में वे अध्यात्म की ओर मुड़ गए। 
 
6. वे जेल की कोठरी में ज्यादा से ज्यादा समय साधना और तप में लगाने लगे। वे गीता पढ़ा करते और भगवान श्रीकृष्ण की आराधना किया करते। ऐसा कहा जाता है कि अरविंद जब अलीपुर जेल में थे, तब उन्हें साधना के दौरान भगवान कृष्ण के दर्शन हुए। इस दिव्य अनुभूति के बाद कृष्ण की प्रेरणा से वे क्रांतिकारी आंदोलन छोड़कर योग और अध्यात्म में रम गए। कृष्णानुभूति के बाद वे 'अतिमान' होने की बात करने लगे। 
 
7. जेल से बाहर आकर वे किसी भी आंदोलन में भाग लेने के इच्छुक नहीं थे। अरविंद गुप्त रूप से 1910 में पांडिचेरी चले गए। वहीं पर रहते हुए अरविंद ने योग द्वारा सिद्धि प्राप्त की और आज के वैज्ञानिकों को बता दिया कि इस जगत को चलाने के लिए एक अन्य जगत और भी है। वहीं पर उन्होंने श्री अरविंद आश्रम ऑरोविले की स्थापना की थी। उन्होंने काशवाहिनी नामक रचना की। जेल से छूटकर अंग्रेजी में कर्मयोगी और बंगला भाषा में धर्म नामक  पत्रिकाओं का संपादन किया। उन्होंने सन 1912 तक सक्रिय राजनीति में भाग लिया था।
 
8. अरविंद एक महान योगी और दार्शनिक थे। उनका पूरे विश्व में दर्शनशास्त्र पर बहुत प्रभाव रहा है। उन्होंने जहां वेद, उपनिषद आदि ग्रंथों पर टीका लिखी, वहीं योग साधना पर मौलिक ग्रंथ लिखे। खासकर उन्होंने डार्विन जैसे जीव वैज्ञानिकों के सिद्धांत से आगे चेतना के विकास की एक कहानी लिखी और समझाया कि किस तरह धरती पर जीवन का विकास हुआ। वेद और पुराण पर आधारित महर्षि अरविंद के 'विकासवादी सिद्धांत' की उनके काल में पूरे यूरोप में धूम रही थी। 
 
9. उनकी प्रमुख कृतियां लेटर्स ऑन योगा, काव्य कृति सावित्री, योग समन्वय, दिव्य जीवन, फ्यूचर पोयट्री और द मदर हैं। भारतीय संस्कृति के बारे में महर्षि अरविंद ने फाउंडेशन ऑफ़ इंडियन कल्चर तथा ए डिफेंसऑफ़ इंडियन कल्चर नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की। वर्षो की तपस्या के बाद उनकी अनूठी कृति लाइफ डिवाइन (दिव्य जीवन) प्रकाशित हुईस इसकी गणना विश्व की महान कृत्यों में की जाती है।
 
10. सन् 1914 में मीरा नामक फ्रांसीसी महिला की पांडिचेरी में अरविंद से पहली बार मुलाकात हुई। जिन्हें बाद में अरविंद ने अपने आश्रम के संचालन का पूरा भार सौंप दिया। अरविंद और उनके सभी अनुयायी उन्हें आदर के साथ 'मदर' कहकर पुकारने लगे। सन 1926 से 1950 तक वे अरविंद आश्रम में तपस्या और साधना में लींन रहे। यहां उन्होंने सभाओं और भाषणों से दूर रहकर मानव कल्याण के लिए चिंतन किया। बताया जाता है कि निधन के बाद 4 दिन तक उनके पार्थिव शरीर में दिव्य आभा बने रहने के कारण उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया और अंतत: 9 दिसंबर को उन्हें आश्रम में समाधि दी गई।

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