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आर्यभट्ट के अलावा सबसे महान खगोलशास्त्री थे वराह मिहिर

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अनिरुद्ध जोशी

महाराजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के काल के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री और गणितज्ञ आर्यभट्ट (सन् 476) के अलावा भास्कराचार्य और बौद्धयन भी गणित में महारत रखते थे। आर्यभट्ट के जन्मकाल को लेकर जानकारी उनके ग्रंथ आर्यभट्टीयम से मिलती है। इसी ग्रंथ में उन्होंने कहा है कि कलियुग के 3600 वर्ष बीत चुके हैं और मेरी आयु 23 साल की है, जबकि मैं यह ग्रंथ लिख रहा हूं। भारतीय ज्योतिष की परंपरा के अनुसार कलियुग का आरंभ ईसा पूर्व 3101 में हुआ था। आर्यभट्ट के अलावा भी भारत में महान खगोलशास्त्री और गणितज्ञ हुए हैं।
 
 
आर्यभट्ट के अलावा, भास्कराचार्य (जन्म- 1114 ई., मृत्यु- 1179 ई.), बौद्धयन (800 ईसापूर्व), ब्रह्मगुप्त (ईस्वी सन् 598 में जन्म और 668 में मृत्यु) और भास्कराचार्य प्रथम (600–680 ईस्वीं) भी महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे।
 
वराह मिहिर (जन्म-ईस्वी 499- मृत्यु ईस्वी सन् 587) : वराह मिहिर का जन्म उज्जैन के समीप कपिथा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम आदित्यदास था। उन्होंने उनका नाम मिहिर रखा था जिसका अर्थ सूर्य होता है, क्योंकि उनके पिता सूर्य के उपासक थे। इनके भाई का नाम भद्रबाहु था। पिता ने मिहिर को भविष्य शास्त्र पढ़ाया था। मिहिर ने राजा विक्रमादित्य द्वितीय के पुत्र की मृत्यु 18 वर्ष की आयु में होगी, इसकी सटीक भविष्यवाणी कर दी थी।
 
इस भविष्यवाणी के कारण मिहिर को राजा विक्रमादित्य द्वितीय ने बुलाकर उनकी परीक्षा ली और फिर उनको अपने दरबार के रत्नों में स्थान दिया। इस तरह विक्रमादित्य द्वितीय के नौ रत्न हो गए थे। मिहिर ने खगोल और ज्योतिष शास्त्र के कई सिद्धांत को गढ़ा और देश में इस विज्ञान को आगे बढ़ाया। इस योगदान के चलते राजा विक्रमादित्य द्वितीय ने मिहिर को मगध देश का सर्वोच्च सम्मान 'वराह' प्रदान किया था। उसी दिन से उनका नाम वराह मिहिर हो गया।
 
वराह मिहिर ही पहले आचार्य हैं जिन्होंने ज्योतिष शास्त्र को सि‍द्धांत, संहिता तथा होरा के रूप में स्पष्ट रूप से व्याख्यायित किया। इन्होंने तीनों स्कंधों के निरुपण के लिए तीनों स्कंधों से संबद्ध अलग-अलग ग्रंथों की रचना की। सिद्धांत (‍गणित)-स्कंध में उनकी प्रसिद्ध रचना है- पंचसिद्धांतिका, संहितास्कंध में बृहत्संहिता तथा होरास्कंध में बृहज्जातक मुख्य रूप से परिगणित हैं।

कुतुब मीनार को पहले विष्णु स्तंभ कहा जाता था। इससे पहले इसे सूर्य स्तंभ कहा जाता था। इसके केंद्र में ध्रुव स्तंभ था जिसे आज कुतुब मीनार कहा जाता है। इसके आसपास 27 नक्षत्रों के आधार पर 27 मंडल थे। इसे वराह मिहिर की देखरेख में बनाया गया था।
 
अज्ञात बल : आर्यभट्ट के प्रभाव के चलते वराह मिहिर की ज्योतिष से खगोल शास्त्र में भी रु‍चि हो गई थी। आर्यभट्ट वराह मिहिर के गुरु थे। आर्यभट्ट की तरह वराह मिहिर का भी कहना था कि पृथ्वी गोल है। विज्ञान के इतिहास में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने बताया कि सभी वस्तुओं का पृथ्वी की ओर आकर्षित होना किसी अज्ञात बल का आभारी है। सदियों बाद 'न्यूटन' ने इस अज्ञात बल को 'गुरुत्वाकर्षण बल' नाम दिया।
 
खगोलीय गणित और फलित ज्योतिष के ज्ञाता वराह मिहिर का ज्ञान 3 भागों में बांटा जा सकता है- 1. खगोल, 2. भविष्य विज्ञान और 3. वृक्षायुर्वेद। इनके प्रसिद्ध ग्रंथ 'वृहत्संहिता' तथा 'पंचसिद्धांतिका' हैं। उन्होंने फलित ज्योतिष के लघुजातक, बृहज्जातक नामक ग्रंथ भी लिखे हैं।
 
वृहत्संहिता : वृहत्संहिता में नक्षत्र-विद्या, वनस्पतिशास्त्रम्, प्राकृतिक इतिहास, भौतिक भूगोल जैसे विषयों पर वर्णन है। बृहत्संहिता में वास्तुविद्या, भवन निर्माण कला, वायुमंडल की प्रकृति, वृक्षायुर्वेद आदि विषय भी सम्मिलित हैं।
 
पंचसिद्धांतिका : पंचसिद्धांतिका में वराहमिहिर से पूर्व प्रचलित 5 सिद्धांतों का वर्णन है। ये सिद्धांत हैं- पोलिश, रोमक, वसिष्ठ, सूर्य तथा पितामह। वराहमिहिर ने इन पूर्व प्रचलित सिद्धांतों की महत्वपूर्ण बातें लिखकर अपनी ओर से बीज नामक संस्कार का भी निर्देश किया है।

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