अक्सर आपने प्राचीन मंदिरों के बाहर स्तंभों पर देवी, देवता, यक्ष और अप्सराओं की मूर्तियां देखी होंगी। उनमें से कुछ मूर्तियां नायक और नायिकाओं की भी होती थीं। खजुराहो और इसके जैसे मंदिरों में अक्सर ऐसी मूर्तियां आपको मिल जाएंगी। हालांकि उसमें से अधिकतर अप्सराएं और गंधर्व ही होते हैं। दरअसल, प्राचीनकाल में गंधर्व, अप्सरा और नायक-नायिकएं देवताओं की सहायता और मनोरंजन का कार्य करते थे। उनमें यक्ष भी होते थे।
प्राचीनकाल में नायक और नायिकाओं के नाम का भी एक समूह होता था। नायिकाओं को यक्षिणियां तथा अप्सराओं की उपजाति माना जाता था। ये मनमुग्ध करने वाली अति सुन्दर स्त्रियां होती थीं। इन सुन्दर स्त्रियों का कार्य भी अप्सराओं की तरह ही था लेकिन ये मायावी होती थीं। ये अभिनय और कामकला में पारंगत होती थीं।।
नायिकाएं मुख्यत: 8 हैं- 1. जया, 2. विजया, 3. रतिप्रिया, 4. कंचन कुंडली, 5. स्वर्ण माला, 6. जयवती, 7. सुरंगिनी, 8. विद्यावती।
इन नायिकाओं को भी ऋषि-मुनियों की कठिन तपस्या को भंग करने हेतु देवताओं द्वारा नियुक्त किया जाता था। इनकी भी साधनाएं की जाती हैं, जो वशीकरण तथा सुंदरता प्राप्ति हेतु होती है। नारियों को आकर्षित करने का हर उपाय इनके पास है।
'अग्निपुराण' में प्रथम बार नायक-नायिका का विवेचन किया गया है। वात्स्यायन के 'कामसूत्र' में भी श्रृंगार रस से संबंधित नायक और नायिकाओं के भेद बताए गए हैं। हिन्दी साहित्य में नायक और नायिकाओं पर बहुत से ग्रंथ मिल जाएंगे। लोकप्रिय ग्रंथों में मतिराम का 'रसराज' तथा पद्माकर का 'जगद्विनोद' का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इन ग्रंथों में प्राय: भानुदत्त की 'रसमंजरी' का ही अनुसरण किया गया है।
यक्ष, गंधर्व और अप्सराएं देवताओं की इतर श्रेणी में माने गए हैं। मुख्य रूप से 8 यक्षिणियों की पुराणों में चर्चा मिलती है। ये प्रमुख यक्षिणियां हैं- 1. सुर सुन्दरी यक्षिणी, 2. मनोहारिणी यक्षिणी, 3. कनकावती यक्षिणी, 4. कामेश्वरी यक्षिणी, 5. रतिप्रिया यक्षिणी, 6. पद्मिनी यक्षिणी, 7. नटी यक्षिणी और 8. अनुरागिणी यक्षिणी।
इसी तरह वेद और पुराणों की गाथाओं में कृतस्थली, पुंजिकस्थला, मेनका, रम्भा, प्रम्लोचा, अनुम्लोचा, घृताची, वर्चा, उर्वशी, पूर्वचित्ति और तिलोत्तमा आदि नाम की अप्सराओं का जिक्र होता रहा है। सभी अप्सराओं की विचित्र कहानियां हैं।