पुराणों में नरक, नरकासुर और नरक चतुर्दशी, नरक पूर्णिमा का वर्णन मिलता है। नरकस्था अथवा नरक नदी वैतरणी को कहते हैं। नरक चतुर्दशी के दिन तेल से मालिश कर स्नान करना चाहिए। इसी तिथि को यम का तर्पण किया जाता है। सवाल यह उठता है कि नरक या स्वर्ग है क्या? नरक की सजा सच है या भ्रांति?
हिन्दू धर्म अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को उसके अच्छे या बुरे कर्मों का परिणाम भुगतना होगा। मनुष्य अपने कर्मों से ही स्वर्ग या नरक की स्थिति को भोगता है। यदि वह बुरे कर्म करेगा को बुरी जगह और बुरी परिस्थिति में होगा और अच्छे कर्म करेगा तो अच्छी जगह और परिस्थिति में होगा। आपने देखा होगा कि बहुत से कीड़े-मकोड़े किस जगह रहते हैं और निश्चित ही आपके सेप्टीटैंक में भी बहुत से किटाणु अपना जीवन जी रहे होंगे।
संपूर्ण संसार में जो भी जीव-जंतु, पशु-पक्षी आदि दिखाई दे रहे हैं वे सभी आपसे सिर्फ आकार-प्रकार में भिन्न हैं। आपका आकार श्रेष्ठ है इसलिए आप श्रेष्ठ स्थिति में हैं लेकिन आप अपने कर्मों से अपनी चेतना का स्तर नीचे गिराकर जीव-जंतु की योनी में जा सकते हैं। पुराणों अनुसार जीवात्मा 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य जन्म पाती है। अर्थात नीचे से ऊपर उठने की इस प्रक्रिया को ही ऊर्ध्वगति कहते हैं। अदि मनुष्य अपने पाप कर्मों के द्वारा फिर से नीचे गिरने लगता है तो उसे अधोगति कहते हैं। अधोगति में गिरना ही नरक में गिरना होता है। नीचे गिरना ही अपना आप में एक सजा ही है।
जिस तरह हमारा शरीर जब रात्रि में अचेत होकर सो जाता है तब हम हर तरह के स्वप्न देखते हैं यदि हम लगातार बुरे स्वप्न देख रहे हैं तो यह नरक की ही स्थिति है। यह मरने के बाद अधोगति में गिरने का संकेत ही है। दरअसल, आप अपने जीवन में चेतना (जागरण) को उपर उठाते हैं या नीचे गिराते हैं यह आप पर ही निर्भर है। नीचे गिरेंगे तो आपको निचे के लोक में जीवन मिलेगा।
कहते हैं कि स्वर्ग धरती के ऊपर है तो नरक धरती के नीचे यानी पाताल भूमि में हैं। इसे अधोलोक भी कहते हैं। अधोलोक यानी नीचे का लोक है। ऊर्ध्व लोक का अर्थ ऊपर का लोक अर्थात् स्वर्ग। मध्य लोक में हमारा ब्रह्मांड है। सामान्यत: 1.उर्ध्व गति, 2.स्थिर गति और 3.अधोगति होती है जोकि अगति और गति के अंतर्गत आती हैं।
पाताल के नीचे बहुत अधिक जल है और उसके नीचे नरकों की स्तिथि बताई गई है। जिनमें पापी जीव स्वत: ही गिरकर सजा पाते हैं। यों तो नरकों की संख्या पचपन करोड़ है; किन्तु उनमें रौरव से लेकर श्वभोजन तक इक्कीस प्रधान हैं।
महाभारत में राजा परीक्षित इस संबंध में शुकदेवजी से प्रश्न पूछते हैं तो वे कहते हैं कि राजन! ये नरक त्रिलोक के भीतर ही है तथा दक्षिण की ओर पृथ्वी से नीचे जल के ऊपर स्थित है। उस लोक में सूर्य के पुत्र पितृराज भगवान यम है वे अपने सेवकों के सहित रहते हैं। तथा भगवान की आज्ञा का उल्लंघन न करते हुए, अपने दूतों द्वारा वहां लाए हुए मृत प्राणियों को उनके दुष्कर्मों के अनुसार पाप का फल दंड देते हैं।
श्रीमद्भागवत और मनुस्मृति के अनुसार नरकों के नाम-
1.तामिस्त्र, 2.अंधसिस्त्र, 3.रौवर, 4, महारौवर, 5.कुम्भीपाक, 6.कालसूत्र, 7.आसिपंवन, 8.सकूरमुख, 9.अंधकूप, 10.मिभोजन, 11.संदेश, 12.तप्तसूर्मि, 13.वज्रकंटकशल्मली, 14.वैतरणी, 15.पुयोद, 16.प्राणारोध, 17.विशसन, 18.लालभक्ष, 19.सारमेयादन, 20.अवीचि, और 21.अय:पान, इसके अलावा.... 22.क्षरकर्दम, 23.रक्षोगणभोजन, 24.शूलप्रोत, 25.दंदशूक, 26.अवनिरोधन, 27.पर्यावर्तन और 28.सूचीमुख ये सात (22 से 28) मिलाकर कुल 28 तरह के नरक माने गए हैं जो सभी धरती पर ही बताए जाते हैं। हालांकि कुछ पुराणों में इनकी संख्या 36 तक है।
इनके अलावा वायु पुराण और विष्णु पुराण में भी कई नरककुंडों के नाम लिखे हैं- वसाकुंड, तप्तकुंड, सर्पकुंड और चक्रकुंड आदि। इन नरककुंडों की संख्या 86 है। इनमें से सात नरक पृथ्वी के नीचे हैं और बाकी लोक के परे माने गए हैं। उनके नाम हैं- रौरव, शीतस्तप, कालसूत्र, अप्रतिष्ठ, अवीचि, लोकपृष्ठ और अविधेय हैं। हालांकि नरकों की संख्या पचपन करोड़ है; किन्तु उनमें रौरव से लेकर श्वभोजन तक इक्कीस प्रधान माने गए हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- रौरव, शूकर, रौघ, ताल, विशसन, महाज्वाल, तप्तकुम्भ, लवण, विमोहक, रूधिरान्ध, वैतरणी, कृमिश, कृमिभोजन, असिपत्रवन,कृष्ण, भयंकर, लालभक्ष, पापमय, पूयमह, वहिज्वाल, अधःशिरा, संदर्श, कालसूत्र, तमोमय-अविचि, श्वभोजन और प्रतिभाशून्य अपर अवीचि तथा ऐसे ही और भी भयंकर नर्क हैं।
दरअसल, यह धरती पर पाए जाने वाले वे भयंकर स्थान है जहां आप नहीं जाना चाहेंगे या जहां आप किसी अन्य जन्तु के रूप में जन्म लेकर नहीं रहना चाहेंगे, लेकिन यदि आपने अपनी चेतना का स्तर गिरा लिया है तो आप स्वत: ही वहां पैदा होने वाले हैं या सुक्ष्म शरीर के रूप में वहां कुछ काल रहने वाले हैं। यदि आप ध्यान से देखेंगे तो आपके आसपास ही आपको नरक नजर आ जाएंगे, जहां कई जीव जंतु बहुत ही बुरी स्थिति में रह रहे हैं।
महाभारत की एक कथा अनुसार युधिष्ठिर को भी एक दिन के लिए नरक में एक मुहूर्त रहना पड़ा था। तब देवराज इंद्र ने युधिष्ठिर को बताया कि तुमने अश्वत्थामा के मरने की बात कहकर छल से द्रोणाचार्य को उनके पुत्र की मृत्यु का विश्वास दिलाया था। इसी के परिणाम स्वरूप तुम्हें भी छल से ही कुछ देर नरक के दर्शन पड़े। अब तुम मेरे साथ स्वर्ग चलो। वहां तुम्हारे भाई व अन्य वीर पहले ही पहुंच गए हैं।