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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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घोर संकट से घिरे हैं तो जाएं यहां, शर्तिया मिलेगा समाधान

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अनिरुद्ध जोशी

जिंदगी में कुछ मोड़ ऐसे आते हैं जहां आगे जाकर रास्ता बंद नजर आता है, खाई नजर आती है या कहें कि हम एक ऐसे चौराहे पर खड़े हो जाते हैं जबकि किधर सही रास्ता है यह बताने वाला नहीं होता है। इसके अलावा ऐसे भी अवसर आते हैं जबकि हमारी पूरी जिंदगी बर्बाद हो चुकी होती है या हम ऐसे किसी संकट में फंस जाते हैं कि उस समय सभी तरह के ज्योतिष उपाय, टोने-टोटके या पूजा-पाठ व्यर्थ सिद्ध हो जाते हैं या काम नहीं करते हैं। ऐसे घोर संकट में हमें तब भगवान या कोई सिद्ध संत ही याद आते हैं। आओ जानते हैं ऐसे ही 10 स्थान, जहां सिर झुकाने से व्यक्ति को दुनिया के सामने सिर नहीं झुकाना होता है।
 
 
1.महाकाली शक्तिपीठ, पावागढ़-
गुजरात की ऊंची पहाड़ी पावागढ़ पर बसा मां कालिका का शक्तिपीठ सबसे जाग्रत माना जाता है। यहां स्थित काली मां को 'महाकाली' कहा जाता है। कालिका माता का यह प्रसिद्ध मंदिर मां के शक्तिपीठों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि मां पार्वती के दाहिने पैर की अंगुलियां पावागढ़ पर्वत पर गिरी थीं। यह मंदिर गुजरात की प्राचीन राजधानी चंपारण्य के पास स्थित है, जो वडोदरा शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। पावागढ़ मंदिर ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। रोप-वे से उतरने के बाद आपको लगभग 250 सीढ़ियां चढ़ना होंगी, तब जाकर आप मंदिर के मुख्य द्वार तक पहुंचेंगे।

 
2.बालाजी हनुमान मंदिर, मेहंदीपुर-
राजस्थान के दौसा जिले के पास दो पहाड़ियों के बीच बसा हुआ घाटा मेहंदीपुर नामक स्थान है, जहां पर बहुत बड़ी चट्टान में हनुमानजी की आकृति स्वत: ही उभर आई है जिसे 'श्रीबालाजी महाराज' कहते हैं। इसे हनुमानजी का बाल स्वरूप माना जाता है। इनके चरणों में छोटी-सी कुंडी है जिसका जल कभी समाप्त नहीं होता। यहां के हनुमानजी का विग्रह काफी शक्तिशाली एवं चमत्कारिक माना जाता है तथा इसी वजह से यह स्थान न केवल राजस्थान में बल्कि पूरे देश में विख्यात है। जनश्रुति है कि यह मंदिर करीब 1,000 साल पुराना है।
 
 
3.वैष्णोदेवी-
यह मंदिर जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू में स्थित है। मंदिरों की नगरी के नाम से प्रसिद्ध जम्मू शहर के उत्तर-पूर्व में 70 किमी की दूरी तय करके पवित्र त्रिकुटा पहाड़ियों पर स्थित वैष्णोदेवी की पावन गुफा के दर्शनार्थ भक्त आते हैं। हालांकि इस धर्मस्थल की उत्पत्ति के सही दिन व वर्ष की जानकारी किसी को नहीं है, फिर भी सदियों से यह गुफा लोगों के लिए धार्मिक तथा मानसिक शांति प्राप्ति का एक मुख्य स्थान रही है। आरंभ में तो इसे जम्मू क्षेत्र के कुछ इलाकों में ही लोग जानते थे जबकि अब तो माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विदेशों से भी लोग आते हैं।
 
 
4.शबरीमाला मंदिर-
प्रभु अयप्पा का निवास स्थान माना जाता है। इस विश्वविख्यात मंदिर की महिमा का जितना गुणगान किया जाए, कम ही है। यह मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। भगवान अयप्पा का यह धाम केरल और तमिलनाडु की सीमा पर पश्चिमी घाट की पहाड़ियों पर स्थित है। इस मंदिर को दक्षिण भारत के प्रमुख तीर्थ स्थान का दर्जा मिला हुआ है। पूणकवन के नाम से प्रसिद्ध 18पहाड़ियों के बीच स्थित यह पवित्र धाम चारों ओर से घने वन और छोटी-बड़ी पहाडि़यों से घिरा हुआ है। माना जाता है कि महर्षि परशुराम ने शबरीमाला पर भगवान अयप्पा की साधना के लिए उनकी मूर्ति स्थापित की थी।
 
 
5.तिरुपति बालाजी मंदिर-
तिरुमाला पर्वत पर स्थित भगवान बालाजी के मंदिर में हर साल करोड़ों लोग दर्शन के लिए आते हैं। प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था। यह तालाब तिरुमाला के पास स्थित है। तिरुमाला- तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियां, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं सप्तगिरी कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरी की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है।
 
 
6.नाथद्वारा मंदिर-
श्रीवल्लभाचार्य के सम्प्रदाय का श्रीनाथ द्वारा मंदिर वैष्णव और वल्लभ सम्प्रदाय ही नहीं समूचे हिंदू समाज के लिए महत्व रखता है। राजस्थान के उदयपुर शहर से 30 मील की दूरी पर स्थित प्रसिद्ध एकलिंगजी स्थान से मात्र 17 मील उत्तर में स्थित है यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर।
 
7.कामाख्या मंदिर-
कामाख्या देवी शक्तिपीठ को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यह शक्तिपीठ तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध है। कामाख्या शक्तिपीठ असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर कामाख्या में है। यहां आने वाले की हर मनोकामना पूर्ण होती है यदि वह खुद को पवित्र समझता है तो। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व इसका तांत्रिक महत्व है।
 
 
8.अकाशीगंगा पीठ-
यहां भी पौराणिक कथा का महत्व है। जब भगवान शिव गुस्से में अपनी पत्नी पार्वती के शव को लेकर घूम रहे थे तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उनके शव को टुकड़ों में काट दिया था। उस शव का एक टुकड़ा इस इलाके में भी गिरा था। इस जगह से दूर से ब्रहम्पुत्र नदी का विहंगम दृश्य भी दिखाई देता है।
 
 
9.महाकाल मंदिर-
बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक भारत के हृदयस्थल मध्यप्रदेश के उज्जैन में पुण्य सलिला शिप्रा के तट के निकट भगवान शिव 'महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग' के रूप में विराजमान हैं। महाराजा विक्रमादित्य के न्याय की नगरी उज्जयिनी में भगवान महाकाल की असीम कृपा रहती है। कहते हैं कि अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चांडाल का, काल उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का।
 
 
10.ज्वाला मंदिर-
ज्वालादेवी का मंदिर हिमाचल के कांगड़ा घाटी के दक्षिण में 30 किमी की दूरी पर स्थित है। यह मां सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां माता की जीभ गिरी थी। हजारों वर्षों से यहां स्थित देवी के मुख से 9 ज्वालाएं प्रज्वलित हो रही हैं जिससे बुझाने का प्रयास अकबर ने किया था लेकिन वह असफल रहा। ये ज्यावलाएं 9 देवियों महाकाली, महालक्ष्मी, सरस्वती, अन्नपूर्णा, चंडी, विन्ध्यवासिनी, हिंगलाज भवानी, अम्बिका और अंजना देवी की ही स्वरूप हैं। कहते हैं कि सतयुग में महाकाली के परम भक्त राजा भूमिचंद ने स्वप्न से प्रेरित होकर यह भव्य मंदिर बनवाया था। जो भी सच्चे मन से इस रहस्यमयी मंदिर के दर्शन के लिए आया है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। गुरु गोरखनाथ ने यहां तपस्या की थी।
 
 
अंत में इसके अलावा आप बालाजी हनुमान मंदिर (सालासर राजस्थान), जगन्नाथ मंदिर (पुरी उड़ीसा), केदारनाथ मंदिर (उत्तराखंड), कालीरघाट काली मंदिर (कोलकाता, पश्‍चिम बंगाल), अमरनाथ (जम्मू और कश्मीर), रामेश्वरम (तमिलनाडु), बद्रीनाथ (उत्तराखंड), द्वारका (गुजरात), मीनाक्षी अम्मान मंदिर (तमिलनाडु), हनुमान मंदिर (हनुमानगढ़ी अयोध्या), काशी विश्‍वनाथ (बनारस उत्तर प्रदेश), कृष्ण मंदिर (मथुरा) आदि।
 
 
इसके अलावा यदि समाधी मंदिर की बात करें तो गुरुगोरखनाथ का मंदिर (गोरखपुर), साईं मंदिर (शिरडी), नीम करौली बाबा (पंतनगर, नैनीताल), गोगादेव जाहर वीर (राजस्थान), वीर तेजाजी महाराज (राजस्थान), झुलेलाल (पाकिस्तान), बाबा रामदेव रामापीर (रामद्वारा राजस्थान), गुरुनानक (नानका साहिब पाकिस्तान), जालिंदरनाथ (आथूणी दिस, राजस्थान), गजानन महाराज (शेगांव, महाराष्ट्र), दादाजी धूनी वाले (खंडवा, मध्यप्रदेश), मछिंदरनाथ (उज्जैन मध्यप्रदेश), शीलनाथ बाबा (देवास, मध्यप्रदेश), लाहिड़ी महाशय (वाराणसी) आदि।
 

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