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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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हिन्दू मंदिर में भजन और आरती के समय बजाए जाने वाले मुख्य 10 इंस्ट्रूमेंट

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हिन्दू धर्म में मंदिरों में ध्यान, साधना, पूजा-पाठ के साथ ही भजन, कीर्तन और आरती का भी खासा महत्व बताया गया है। प्राचीन मंदिरों में तो नृत्य, कला, योग और संगीत की शिक्षा भी दी जाती थी। आओ जानते हैं मंदिर में भजन या आरती के समय बजाए जाने वाले प्रमुख 10 वाद्य यं‍त्र जो भगवान को पसंद है।
 
 
1. घंटी : घंटी से निकलने वाला स्वर नाद का प्रतीक है जो भगवान को अति प्रिय है। यही नाद ओंकार के उच्चारण से भी जाग्रत होता है। घंटी या घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जब प्रलय काल आएगा, तब भी इसी प्रकार का नाद यानी आवाज प्रकट होगी।
 
2. शंख : शंख को नादब्रह्म और दिव्य मंत्र की संज्ञा दी गई है। शंख समुद्र मंथन के समय प्राप्त 14 अनमोल रत्नों में से एक है। शंख कई प्रकार के होते हैं। इसका स्वर भी भगवान को अति प्रिय है।
 
3. मंजीरा : इसे झांझ, तला, मंजीरा, कफी आदि नामों से भी जाना जाता है। भजन-कीर्तन के समय इसका उपयोग किया जाता है।
 
4. करतल : इसे खड़ताल भी कहते हैं। इस वाद्य यंत्र को आपने नारद मुनि के चित्र में उनके हाथों में देखा होगा। यह भी भजन और कीर्तन में उपयोग किया जाना वाला यंत्र है।
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5. ढोल : ढोलक कई प्रकार के होते हैं। अक्सर इन्हें मांगलिक कार्यों के दौरान बजाया जाता है। यह भी भजन और कीर्तन में उपयोग किया जाना वाला यंत्र है।
 
6. नगाड़ा : नगाड़ा प्राचीन समय से ही प्रमुख वाद्य यंत्र रहा है। इसे बजाने के लिए लकड़ी की डंडियों से पीटकर ध्वनि निकाली जाती है। इसका उपयोग लोक उत्सवों, भजन-कीर्तन आरती आदि के अवसर पर भी किया जाना लगा। इसे दुंदुभी भी कहा जाता है। 
 
7. मृदंग : यह दक्षिण भारत का एक थाप यंत्र है। बहुत ही मधुर आवाज के इस यंत्र का इस्तेमाल गांवों में कीर्तन गीत गाने के दौरान किया जाता है। अधिकतर आदिवासी इलाके में ढोल के साथ मृदंग का उपयोग भी होता है।
 
8. डमरू : डमरू या डुगडुगी एक छोटा संगीत वाद्य यंत्र होता है। डमरू का हिन्दू, तिब्बती व बौद्ध धर्म में बहुत महत्व माना गया है। भगवान शंकर के हाथों में डमरू को दर्शाया गया है। भजन-कीर्तन में इसका उपयोग होता है।
 
9. तबला : तबला ड्रम की एक जोड़ी है। वैदिक युग के ग्रंथों में ढोल और ताल का उल्लेख मिलता है। बौद्ध की गुफाओं में भी इस तबले का उपयोग किए जाने का उपयोग मिलता है। राजस्थान के उदयपुर में एकलिंगजी जैसे विभिन्न हिंदू और जैन मंदिरों में तबला जैसे छोटे-छोटे ढोल बजाने वाले व्यक्ति की पत्थर की नक्काशी दिखाई देती है।
 
10. वीणा : इसका उपयोग भी प्राचीनकाल में होता था। अब कम ही होता है। कई जगहों पर वंसी, पुंगी, चिमटा, तुनतुना, घटम (घढ़ा), दोतार आदि का उपयोग भी किया जाता है।

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