धार्मिक मान्यता के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को कामदा एकादशी (Kamada Ekadashi 2023) कहा जाता है। इस एकादशी व्रत से सभी तरह के पाप नष्ट होते हैं तथा मृत्यु के बाद मोक्ष मिलता है। यह व्रत करने से श्री विष्णु प्रसन्न होकर अपने भक्त के सभी रुके कार्यों को सफलता प्रदान करते है।
कामदा एकादशी हिन्दू नववर्ष की पहली एकादशी है। वर्ष 2023 में कामदा एकादशी व्रत 1 और 2 अप्रैल को रखा जा रहा है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी के बराबर संसार में कोई और दूसरा व्रत नहीं है। इस एकादशी की कथा पढ़ने या सुनने से जहां वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है, वहीं इस एकादशी पर विधिपूर्वक भगवान विष्णु का पूजन करने से समस्त पाप नाश को प्राप्त होते हैं तथा मनुष्य राक्षस आदि योनि से छूट जाने की मान्यता है।
आइए जानते हैं इस एकादशी की संपूर्ण जानकारी एक स्थान पर-
कामदा एकादशी की कथा : Kamada Ekadashi 2023 Katha
प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहां पर अनेक ऐश्वर्यों से युक्त पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गंधर्व वास करते थे। उनमें से एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे। उन दोनों में अत्यंत स्नेह था, यहां तक कि अलग-अलग हो जाने पर दोनों व्याकुल हो जाते थे।
एक समय पुण्डरीक की सभा में अन्य गंधर्वों सहित ललित भी गान कर रहा था। गाते-गाते उसको अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर भंग होने के कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया। ललित के मन के भाव जानकर कार्कोट नामक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा से कह दिया। तब पुण्डरीक ने क्रोधपूर्वक कहा कि तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है। अत: तू कच्चा मांस और मनुष्यों को खाने वाला राक्षस बनकर अपने किए कर्म का फल भोग।
पुण्डरीक के श्राप से ललित उसी क्षण महाकाय विशाल राक्षस हो गया। उसका मुख अत्यंत भयंकर, नेत्र सूर्य-चंद्रमा की तरह प्रदीप्त तथा मुख से अग्नि निकलने लगी। उसकी नाक पर्वत की कंदरा के समान विशाल हो गई और गर्दन पर्वत के समान लगने लगी। सिर के बाल पर्वतों पर खड़े वृक्षों के समान लगने लगे तथा भुजाएं अत्यंत लंबी हो गईं। कुल मिलाकर उसका शरीर आठ योजन के विस्तार में हो गया। इस प्रकार राक्षस होकर वह अनेक प्रकार के दुःख भोगने लगा।
जब उसकी प्रियतमा ललिता को यह वृत्तांत मालूम हुआ तो उसे अत्यंत खेद हुआ और वह अपने पति के उद्धार का यत्न सोचने लगी। वह राक्षस अनेक प्रकार के घोर दुःख सहता हुआ घने वनों में रहने लगा। उसकी स्त्री उसके पीछे-पीछे जाती और विलाप करती रहती। एक बार ललिता अपने पति के पीछे घूमती-घूमती विन्ध्याचल पर्वत पर पहुंच गई, जहाँ पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता शीघ्र ही श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई और वहां जाकर विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी।
उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले कि हे सुभगे! तुम कौन हो और यहां किस लिए आई हो? ललिता बोली कि हे मुने! मेरा नाम ललिता है। मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से विशालकाय राक्षस हो गया है। इसका मुझको महान दुःख है। उसके उद्धार का कोई उपाय बतलाइए।
श्रृंगी ऋषि बोले हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध होते हैं। यदि तू कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का श्राप भी अवश्यमेव शांत हो जाएगा।
मुनि के ऐसे वचन सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी आने पर उसका व्रत किया और द्वादशी को ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को देती हुई भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करने लगी- हे प्रभो! मैंने जो यह व्रत किया है इसका फल मेरे पतिदेव को प्राप्त हो जाए जिससे वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाए। एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ। फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ विहार करने लगा। उसके पश्चात वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक को चले गए। अत: इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नाश हो जाते हैं तथा राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है। इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है।
कामदा एकादशी पूजा विधि-Puja Vidhi
- कामदा एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके श्री विष्णु का ध्यान करें।
- तत्पश्चात व्रत का संकल्प लें।
- घर के मंदिर में एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा कर श्री विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें।
- एक लोटे में जल लेकर उसमें तिल, रोली और अक्षत मिलाकर अभिषेक करें।
- अब भगवान श्री विष्णु को फल, फूल, दूध, तिल, पंचामृत अर्पित करें।
- अब भगवान विष्णु को धूप, दीप दिखाकर उन्हें पुष्प अर्पित करें।
- शुद्ध घी का दीया जलाएं तथा विष्णु जी की आरती करें।
- फिर एकादशी कथा का पाठ करें अथवा श्रवण करें।
- शाम के समय पुन: भगवान विष्णु जी की पूजा करके फलाहार करें।
- श्री विष्णु का ध्यान-भजन करते हुए रात्रि जागरण तथा विष्णु जी की आराधना करें।
- श्री विष्णु के मंत्रों का ज्यादा से ज्यादा जाप करें।
- अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को योग्य ब्राह्मण या किसी गरीब को भोजन कराएं।
- दान-दक्षिणा दें तथा गरीबों को गर्म कपड़े, तिल और अन्न का दान करें।
- तत्पश्चात स्वयं भी भोजन ग्रहण करके व्रत का पारण करें।
- विष्णु सहस्त्रनाम, चालीसा का पाठ करें।
कामदा एकादशी पूजा के शुभ मुहूर्त और पारण का समय-puja muhurat n parana time
* कामदा एकादशी व्रत : शनिवार, अप्रैल 1, 2023 को
एकादशी तिथि का प्रारंभ- अप्रैल 01, 2023 को 01.58 ए एम से शुरू
एकादशी तिथि का समापन- अप्रैल 02, 2023 को 04.19 ए एम पर।
* पारण कब होगा-
रविवार, 2 अप्रैल का पारण समय- 01.40 पी एम से 04.10 पी एम तक।
हरि वासर खत्म होने का टाइम- 10.50 ए एम
1 अप्रैल 2023 : दिन का चौघड़िया
शुभ- 07.45 ए एम से 09.18 ए एम
चर- 12.25 पी एम से 01.59 पी एम
लाभ- 01.59 पी एम से 03.32 पी एम
अमृत- 03.32 पी एम से 05.05 पी एम
रात का चौघड़िया
लाभ- 06.39 पी एम से 08.05 पी एम
शुभ- 09.32 पी एम से 10.58 पी एम
अमृत- 10.58 पी एम से अप्रैल 02 को 12.25 ए एम, अप्रैल तक।
चर- 12.25 ए एम से अप्रैल 02 को 01.51 ए एम तक।
लाभ- 04.44 ए एम से अप्रैल 02 को 06.11 ए एम तक।
वैष्णव कामदा एकादशी रविवार, अप्रैल 2, 2023 को
* चैत्र शुक्ल एकादशी तिथि का प्रारंभ- अप्रैल 01, 2023 को 01.58 ए एम से शुरू।
एकादशी तिथि की समाप्ति- अप्रैल 02, 2023 को 04.19 ए एम पर।
* वैष्णव एकादशी पारण टाइम 2023 :
3 अप्रैल 2023 के दिन व्रत तोड़ने का (पारण) समय- 06.09 ए एम से 06.24 ए एम तक।
3 अप्रैल को (पारण के दिन) द्वादशी के समापन का समय- 06.24 ए एम पर।
* कामदा एकादशी के दिन भद्रा का समय- Bhadra Time
1 अप्रैल को भद्रा दोपहर 03.10 मिनट से शुरू होकर 2 अप्रैल को प्रात: 04.19 मिनट तक रहेगी।
* राहुकाल-प्रात: 9:00 से 10:30 तक
उपाय- kamada ekadashi ke upay
- एकादशी के दिन शमी के पौधे के पास आटे का दीपक जलाएं, दीया जलाते समय उसमें कपूर और हल्दी डालें।
- आपके पास गंगाजल हो तो एकादशी के दिन पानी में गंगा जल डालकर नहाएं।
- एकादशी के दिन पितृ तर्पण करें, इससे पितृ देव खुश होते है तथा श्री विष्णु प्रसन्न होकर सभी पापों को नाश करके सुख-संपन्नता का आशीष देते हैं।
- एकादशी के दिन भगवान विष्णु को सात्विक चीजों का भोग लगाएं तथा प्रसाद में तुलसी जरूर शामिल करें।
- एकादशी के दिन 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करते हुए सायं में तुलसी जी के सामने घी का दीया लगाएं।
- साढ़ेसाती से परेशान हैं तो शनिवार के दिन आने वाली एकादशी के दिन अंधेरा होने के बाद पीपल वृक्ष पर मीठा जल अर्पित करके सरसों के तेल का दीया और अगरबत्ती लगाएं और वहीं बैठकर हनुमान चालीसा तथा शनि चालीसा का पाठ करके पीपल की 7 परिक्रमा करें।
- एकादशी की व्रत कथा पढ़ने तथा सुनने मात्र से मनुष्य पापों तथा राक्षस योनि से मुक्ति पाता हैं।
मंत्र-Mantras
- ॐ विष्णवे नम:।
- ॐ हूं विष्णवे नम:।
- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:
- ॐ नमो नारायणाय नम:
- ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि।
- श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।
- ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।