Republic Day 2023 : गणतंत्र दिवस पर पढ़ें 2 खास कविताएं

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Republic day 2023 
 
गणतंत्र दिवस हमारे लिए बहुत ही गौरवशाली पर्व है और 2023 में हम अपना 74वां गणतंत्र दिवस मानाने जा रहे हैं। दरअसल भारतीय संविधान के लिए डॉ. अंबेडकर की अध्यक्षता वाली मसौदा समिति को नियुक्त किया गया और 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान को स्वीकारा गया। इस राष्ट्रीय पर्व के उपलक्ष्य में हम आपके लिए देश के प्रेम और उत्साह से भरी काफी बेहतरीन कविताएं लेकर आए हैं, जिन्हें पढ़कर आप भी देश के लिए जोश महसूस करेंगे..... 
 
 
1. नए भारत का नया रूप
 
सुना है मेरा भारत बदल रहा है, 
सुख-सुविधाओं के नए-नए मार्ग खोज रहा है। 
लोगों के जीवन में नया-नया बदलाव ला रहा है।
सुना है मेरा भारत बदल रहा है।
 
मनोरंजन से लेकर खेल कूद, 
कला कृतियो के क्षेत्र में भी,
विश्व में नई छाप छोड़ रहा है। 
सुना है मेरा भारत बदल रहा है। 
 
जो विदेशी मेरे भारत को पिछड़ा हुआ
देश कहकर संबोधित करते थे,
आज वही विदेशी हिन्दुस्तान के कोने-कोने में
अपना व्यापार खोलने आए हैं। 
 
अपनी जिंदगी से परेशान होकर, 
सुना है विदेशी अब हिन्दुस्तान के वृंदावन और मथुरा में रहकर 
अपना जीवन यापन कर रहे हैं। 
 
हाथों मे मदिरा लिए विदेशी, आज मेरे भारत में आकर, 
हाथों में वीणा लिए, गले में तुलसी माला पहने, मुख से रामा हरे कृष्णा गा रहे हैं। 
सुना है मेरा भारत बदल रहा है। 
 
जहां बच्चों को A फॉर एप्पल, B फॉर बॉल सिखाया जाता है, 
आज वही बच्चो को A फॉर अर्जुन और B फॉर बलराम सिखाया जाता है। 
सुना है मेरा भारत बदल रहा है। 
 
सोने की चिड़िया कहलाने वाला देश, फिर से अपना वही ताज पहनने जा रहा है,
ना भूले है हम और ना भूलने देंगे हम, 
हमारे वीरों का बलिदान, जिन्होंने भारत के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया था, 
अब उन वीरों का बलिदान याद कर हिन्दुस्तान को दुनिया में राज करवाना है,
वो दिन दूर नहीं अब, जब मेरा भारत दुनिया पर राज करने जा रहा है, 
हां मेरा भारत विश्वगुरु बनने जा रहा है,
सुना है मेरा भारत बदल रहा है। 
सुनाहै मेरा भारत बदल रहा है। 
 
- रोशनी बरफा 
 


2. 'मां' मैं इस धरती को शीश नवाता हूं
 
एक 'मां' तू भी है मेरी, तेरी कोख़ से जन्मा 'मैं मां'
इस मिट्टी मे खेला हूं, इस मिट्टी में ही सो जाता हूं
'मां' मैं इस धरती को 'शीश नवाता हूं' 
 
'मां' तेरी गोद मे सर रखकर सोता था, कल तक 
'एक निवाले के लिए' सरपट पीछे तुझे भगाता था
आज तेरी याद में...,
मिट्टी को 'तेरी ओढ़नी समझ कर' सो जाता हूं...
 
'मां' इस मिट्टी में तेरी... खुशबू पाता हूं,
'मां' मैं इस धरती को शीश नवाता हूं 
 
'मां' ऐसा नही हैं कि तू याद नहीं आती है,  
मैं सुनता हूं, तू नींद में आवाज़ मुझे लगाती हैं 
मां तेरी थोड़ी सी कमी...तिरंगे के आंचल में सोकर पूरी हो जाती है,
 
'मां' मैं आज भी बालक हूं, तू किसी और को पुचकारे 
मैं नन्हा हो जाता हूं 'मां'
ये धरती मेरी मां हैं 'इसकी आन पर बात आए' 
मैं ग़ुस्सा हो जाता हूं 'मां'
मैं इस धरती को 'शीश नवाता हूं 
 
तुझसे मिलने का मन करता हैं, मां 
मैं छुट्टियां पता लगाता हूं, मिलती नहीं है, 
तू ग़ुस्सा हो जाती हैं मां
तुझें मनाने के लिए, मां 
मैं जाकर पहाड़ों को गले लगाता हूं 
'मां' मैं इस धरती को शीश नवाता हूं 
 
वैसे तो किसी की भी, तबाही का शौक नहीं है मेरा 
मैं भी अमन और चैन चाहता हूं 
पर सीने पर पैर रखे तेरे,
ऐसें दुश्मन को मैं 
'मां' उसकी औक़ात बता कर आता हूं 
 
अच्छा थक गया हूं, 'मां'
अपनी गोद में सुला लेना...,
मैं तिरंगा लपेट कर आता हूं 
'मां' मैं इस धरती को शीश नवाता हूं।
 
- प्रेरणा शर्मा


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