26 जनवरी 2023 को भारत अपना 74वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है। हमारे भारत को पूर्ण रूप से आज़ादी तब मिली थी, जब 26 जनवरी 1950 को 'भारत सरकार अधिनियम' के स्थान पर संविधान लागू किया गया था।
गणतंत्र दिवस के इस अवसर हम आपके लिए वीर रस से भरी ऐसी कविताएं लाए हैं, जो आपको देशभक्ति के रंग में रंग देंगी।
1. आज तुम्हे मैं भारत का गुणगान सुनाने आया हूं
साहस, त्याग, तपस्या और बलिदान सुनाने आया हूं,
(देशप्रेम की गाथा को कविता में आज पिरोता हूं
मातृभूमि के चरणों को अपने शब्दों से धोता हूं।)
ये वो धरती है जिसने हर प्राणी को स्थान दिया,
ये वो धरती जिसने रामायण, गीता का ज्ञान दिया
(आयुर्वेद, योग दर्शन का पाठ पढ़ाया दुनिया को
अर्थशास्त्र विज्ञान, गणित का मर्म सिखाया दुनिया को)
याद करो जब देश बंधा था अंग्रेजी जंजीरों से,
याद करो जब भूमि रंगी पड़ी थी मृतक शरीरों से
याद करो नरसंहाओं को, जलियां वाला याद करो
सोने की चिड़िया के मुंह से छीना निवाला याद करो
(तब एक महाप्रतापी रानी ज्वाला बनकर फूट पड़ी, लक्ष्मी बाई अंग्रेज़ों पर महाप्रलय सी टूट पड़ी, मंगल पांडेय की फांसी से मेरा भारत जाग गया, नाना साहेब के भालों से कॉलिन डरकर भाग गया)
बोस ने ख़ून के बदले में आज़ादी का ऐलान किया,
उधमसिंह ने माइकल और डायर को लहूलुहान किया
वीर चंद्रशेखर को सब यूं ही आज़ाद ना कहते थे,
उनकी करतूतों से गोरे सहमे-सहमे रहते थे
बिस्मिल और अशफ़ाक़ुल्लाह ने जब काकोरी कांड किया,
हंसते हंसते देश पर अपने प्राणों को कुर्बान किया
(खुदीराम ने 17 की आयु में फांसी पाई थी,
भगत सिंह के गर्जन से सारी दुनिया थर्राई थी)
चाचा नेहरू की हिम्मत से चर्चिल भी घबराया था,
एक लाठी वाले के पीछे देश उमड़ कर आया था
(झुकी हुकूमत, उठा तिरंगा, भारत फिर गुलज़ार हुआ
सपना 200 बरसों का 47 में साकार हुआ)
करो किसानों की इज़्ज़त, हर सैनिक को तुम नमन करो
छोड़ो नफ़रत की बातें और अहंकार का दमन करो
(अगर तुम्हारे मन में अपनी संस्कृति का सम्मान नहीं,
तो तुमको अपनी आज़ादी जीने का अधिकार नहीं)
मैं चाहता हूं भारत का बच्चा-बच्चा विद्वान बने,
हर नारी की रक्षा हो, हर नर भी ज़िम्मेदार बने
(मेरी विनती इतनी है कि देश संभाले रहना तुम
मन में रखना भारत मां को, वंदे मातरम कहना तुम)
2. देश में ना जाति, धर्म का दंगा हो
शहीदों की आरजू है, हर जुबा पर पावन गंगा हो
और कफन चाहे हो रंग-बिरंगे।
शहीदों के सम्मान में बस तिरंगा हो।
- हर्षित मालाकार
3. थर थर थर्रावे दुश्मन जिससे, वीर शिवाजी की तलवार यहां है...
कांपे दुश्मन नाम से जिसके, महाराणा की शान यहां है..।
शून्य का जन्म यहां से, राजनीति का उत्थान यहां है
वीरों की जो धरती है, भारत जैसा देश कहा है..।
लाठी से जो सीख सिखावें, महात्मा का ज्ञान यहां है,
बोली से जो विश्व हिलावे, विवेकानंद सा विद्वान् यहां है,
गौतम के विचार यहां पर, हर जीव में शांति का पैगाम यहां है,
महापुरुषों की जो धरती है, भारत जैसा देश कहा है..।
कश्मीर जैसा सौंदर्य यहां पर, बागानों की खूबसूरती यहां है,
स्वाद का संसार यहां पर, विभिन्नता की भरमार यहां है
भाषा का अंबार यहां पर, एकता की मिसाल यहां है,
देशप्रेमियों की जो धरती है, भारत जैसा देश कहा है..।
चार दिशाओं का संगम यहां पर, निराली हर बात यहां है,
गंगा सा पवित्र जल यहां पर, प्रकृति का हर रूप यहां है,
अविरल धारा कल-कल करती, भक्ति प्रेम का हर रूप यहां है,
जन्नत सी जो धरती है, भारत जैसा देश कहा है..।
लोकतंत्र विशाल यहां पर, न्याय का अभिमान यहां है,
चुनती जनता नेता यहां पर, ऐसा चुनाव तंत्र यहां है,
शिक्षा का मजबूत स्तर यहां पर, विश्व व्यापार का नियंत्रण यहां है,
होनहारों की जो धरती है, भारत जैसा देश कहा है..।
साहित्य का मंदिर यहां पर, बुद्धिजीवियों की फौज यहां है,
गीता के ज्ञान का सार यहां पर, राम का गुणगान यहां है,
अल्लाह की अजान यहां पर, नानक के वचन यहां है,
इरादों के पक्के लोग यहां पर, हिम्मत जुनून जोश यहां है,
मां भारती की जो धरती है, भारत जैसा देश कहा है..।