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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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गीता जयंती : श्रीमद्भगवद्गीता के प्रमुख भाष्यकार

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अनिरुद्ध जोशी

विश्व में सर्वाधिक लेखन गीता के ज्ञान पर ही हुआ है। गीता पर विश्वभर में अनेकों व्याख्‍यान, भाष्य, टिकाएं लिखी गई और जिसने उसे जैसा समझा वैसा लिखा या प्रवचन दिया। गीता को पढ़ना और गीता की व्याख्याओं आदि को पढ़ने में बहुत अंतर है। गीता को समझने के लिए सिर्फ गीता ही पढ़ना चाहिए। गीता महाभारत का एक अंश है तो उसे महाभारत के साथ ही पढ़ना ही सही मार्ग है उससे भटकाव और भ्रमित करने वाले तत्व हैं। परंतु फिर भी गीता पर उपर कुछ खास लोगों द्वारा की गई व्याख्‍या को पढ़ना चाहिए जिससे एक नया दृष्टिकोण समझने और विकसित होने में मदद मिलती है। आओ कुछ खास रचनाकारों और उनकी के नाम जानते हैं।
 
 
1. शंकराचार्य : गीता का सबसे पहला ज्ञात भाष्य आद्य शंकराचार्य ने लिखा, जिसे 'शांकर भाष्य' कहा जाता है। आदि शंकराचार्य ने इस महान ग्रंथ को अपने 'प्रस्थानत्रयी' में स्थान दिया। उन्होंने प्रस्थानत्रयी के अन्तर्गत वेदान्त सूत्र, एकादश उपनिषदों (ईशावास्य, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, श्वेताश्वतर, छान्दोग्य व बृहदरण्यक) के साथ गीता को भी सम्मिलित किया और इन सभी पर भाष्य लिखा।
 
2. बालगंगाधर तिलक : बालगंगाधर तिलक ने गीता रहस्य नाम से गीता पर भाष्य ग्रंथ लिखा। बर्मा के मंडाले जेल में कालापानी भुगतते हुए तिलक महाराज ने नवंबर 1910 से मार्च 1911 के बीच मात्र एक सौ पांच दिनों में ही बारह सौ दस पृष्ठों का यह भाष्य-ग्रंथ लिख दिया था।
 
3. श्रील प्रभुपाद : अन्तर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ (इस्कान) के संस्थापक तथा हरे राम हरे कृष्ण आन्दोलन के प्रवर्तक श्रील प्रभुपाद के विश्वप्रसिद्ध गीता-भाष्य- 'श्रीमद्भागवत गीता यथा रूप' का नजरिया बहुत अलग ही है।
 
4. ओशो रजनीश : ओशो रजनीश में गीता में कुछ भी नहीं लिखा उन्होंने गीता पर जो अद्भुत प्रवचन दिए उसे ही लिपिबद्ध कर उसका नाम 'गीता दर्शन' रखा गया। यह किताब लकभग 8 भागों में है।
 
5. महात्मा गांधी : महात्मा गांधी ने अपने सत्य के प्रयोग के अलावा गीता पर भी गीता माता लिखी है। 
 
6. विदेशी लेखक : चार्ल्स विलिकन्स (1749-1836) से सन 1776 में गीता का अंग्रेजी में अनुवाद कराया। बाद में एडविन अर्नाल्ड नामक किसी अंग्रेज विद्वान ने भी पूर्व 'द सांग सेलेस्टियस' शीर्षक से अंग्रेजी भाष्य लिखा, जो 1885 में प्रकाशित हुआ। विलियम जोन्स (1746-1794) ने 'मनुस्मृति' का अनुवाद ईस्ट इंडिया कम्पनी की कानून-व्यवस्था को सुदृढ़ करवाने के लिए करवाया था, उसी तरह कम्पनी के औपनिवेशिक शासन की जडें जमाने के निमित्त तत्कालीन अंग्रेज गर्वनर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने इसका अंग्रेजी अनुवाद करवाया था। फ्रेंच विद्वान डुपरो ने 1778 में इसका फ्रांसीसी में अनुवाद किया। अमेरिका के प्रसिद्ध दार्शनिक विल डयून्ट तथा हेनरी डेविड थोरो और इमर्सन से लेकर वैज्ञानिक राबर्ट ओपन हीमर तक सभी गीता ज्ञान से प्रभावित थे। थोरो स्वयं बोस्टन से 20 किलोमीटर दूर बीहड़ वन में, वाल्डेन में एक आश्रम में बैठकर गीता अध्ययन करते थे। इमर्सन एक पादरी थे, जो चर्च में बाइबिल का पाठ करते थे। परन्तु रविवार को उन्होंने चर्च में गीता का पाठ प्रारम्भ कर दिया था। अत्याधिक विरोध होने पर उन्होंने गीता को 'यूनिवर्सल बाइबिल' कहा था। उन्होंने गीता का अनुवाद भी किया था।
 
7. अन्य संत : रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, निम्बार्काचार्य, भास्कराचार्य, वल्लभाचार्य, श्रीधर स्वामी, आनन्द गिरि, संत ज्ञानेश्वर, बलदेव विद्याभूषण, आदि अनेक मध्यकालीन आचार्यों ने भी तत्कालीन युगानुकूल आवश्यकतानुसार भगवद्गीता के भाष्य प्रस्तुत किए। हालांकि इनके अलावा गीता पर कई टिप्पणीकार भी हुए हैं जिन्होंने कुछ ना कुछ को कहा है, जैसे महर्षि अरविंद, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, स्वामी विवेकादंन। स्वामी दयानंदन सरस्वती ने भी गीता पर अपनी वक्तव्य दिए हैं। प्रो. सत्यव्रत सिद्धांतालन्कार, गुरुदत्त ने भी गीता पर भाष्य लिखे हैं।
 
विख्यात वैष्णवाचार्य जगद्गुरु रामानुजाचार्य ने विशिष्टाद्वैत दर्शन की दृष्टि से गीता पर एक अनुपम भाष्य लिखा। वेदान्ताचार्य वेंकटनाथ ने रामानुज गीता भाष्य पर 'तात्पर्य-चन्द्रिका' नामक उप-भाष्य लिखा। रामानुजाचार्य ने अपने परमगुरु श्रीयामुनमुनि द्वारा लिखित संक्षिप्त 'गीतार्थ-संग्रह' का अनुसरण किया। तेरहवीं शताब्दी के पहले तक मध्वाचार्य आनन्दतीर्थ ने गीता भाष्य लिखा, जिस पर जयतीर्थ ने 'प्रमेय-दीपिका' टीका लिखी। आचार्य जयतीर्थ ने 'भगवद्गीता-तात्पर्यनिर्णय' लिखा। चौदहवीं शताब्दी के शुरू में मध्वाचार्य के शिष्य कृष्णभट्ट विद्याधिराज ने 'गीता-टीका' नामक ग्रन्थ लिखा। सत्रहवीं शताब्दी के सुधीन्द्र यति के शिष्य राघवेन्द्र स्वामी ने 'गीता-विवृति, गीतार्थसंग्रह और गीतार्थविवरण' नामक तीन ग्रन्थ लिखे।
 
वल्लभाचार्य, विज्ञानभिक्षु तथा निम्बार्काचार्य मत के केशवभट्ट ने 'गीता-तत्व-प्रकाशिका' जैसे ग्रन्थ लिखे। आंजनेय ने हनुमद्भाष्य, कल्याणभट्ट ने रसिकमंजरी, जगद्धर ने भगवद्गीता-प्रदीप, जयराम ने गीतासारार्थ-संग्रह, मधुसूदन सरस्वती ने गूढार्थदीपिका, बलदेव विद्याभूषण ने गीताभूषण-भाष्य, सूर्य पंडित ने परमार्थप्रपा, नीलकण्ठ ने भाव-दीपिका, ब्रह्मानन्दगिरि, मथुरानाथ ने भगवद्गीता-प्रकाश, दत्तात्रेय ने प्रबोधचन्द्रिका, रामकृष्ण, मुकुन्ददास, रामनारायण, विश्वेश्वर, शंकरानन्द, शिवदयालु श्रीधर स्वामी ने सुबोधिनी, सदानन्द व्यास ने भावप्रकाश और राजानक एवं रामकण्ठ ने सर्वतोभद्र नामक ग्रन्थ लिखे। 
 
आचार्य अभिनव गुप्त और नृसिंह ठक्कुर द्वारा भगवद्गीतार्थ-संग्रह, गोकुलचन्द्र का भगवद्गीतार्थ-सार, वादिराज का भगवद्गीता-लक्षाभरण, कैवल्यानन्द सरस्वती का भगवद्गीता-सार-संग्रह, नरहरि द्वारा भगवद्गीता-सार-संग्रह, विठ्ठल दीक्षित का भगवद्गीता-हेतु-निर्णय। आधुनिक काल में मिथिला के प्रख्यात विद्वान् पंडित धर्मदत्त झा ने 'गूढार्थ-दीपिका' नामक व्याख्या लिखी। विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त के महान् आचार्य श्रीयामुन मुनि ने गीता के एक-एक अध्याय का वर्णन किया है, जो उनके 'गीतार्थ-संग्रह' ग्रंथ में है। जयपुर के सुख्यात वेदविज्ञानवादी पंडित मधुसूदन ओझा ने ज्ञान, कर्म और भक्ति से दूर 'बुद्धियोग' को गीता का प्रतिपाद्य विषय माना।  

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