Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

Chaitra Navratri: गढ़कालिका उज्जैन के मंदिर की 3 चमत्कारिक बातें

हमें फॉलो करें Chaitra Navratri: गढ़कालिका उज्जैन के मंदिर की 3 चमत्कारिक बातें

अनिरुद्ध जोशी

मध्यप्रदेश के उज्जैन के कालीघाट स्थित कालिका माता के प्राचीन मंदिर को गढ़ कालिका के नाम से जाना जाता है। देवियों में कालिका को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। गढ़ कालिका के मंदिर में मां कालिका के दर्शन के लिए रोज हजारों भक्तों की भीड़ जुटती है। गढ़ नामक स्थान पर होने के कारण गढ़ कालिका हो गया है। आओ जानते हैं इस मंदिर की 3 चमत्कारिक बातें।
 
 
1. तांत्रिकों की देवी कालिका के इस चमत्कारिक मंदिर की प्राचीनता के विषय में कोई नहीं जानता, फिर भी माना जाता है कि इसकी स्थापना महाभारतकाल में हुई थी, लेकिन मूर्ति सतयुग के काल की है। बाद में इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार सम्राट हर्षवर्धन द्वारा किए जाने का उल्लेख मिलता है। मंदिर के कुछ अंश का जीर्णोद्धार ई.सं. 606 के लगभग सम्राट श्रीहर्ष ने करवाया था। स्टेटकाल में ग्वालियर के महाराजा ने इसका पुनर्निर्माण कराया। कालिकाजी के इस स्थान पर गोपाल मंदिर से सीधे यहां जाया जा सकता है।
 
 
2. उज्जैन में दो शक्तिपीठ माने गए हैं पहला हरसिद्धि माता और दूसरा गढ़कालिका माता का शक्तिपीठ। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि उज्जैन में शिप्रा नदी के तट के पास स्थित भैरव पर्वत पर मां भगवती सती के ओष्ठ गिरे थे। कहते हैं कि हरसिद्धि का मंदिर वहां स्थित है जहां सती के शरीर का अंश अर्थात हाथ की कोहनी आकर गिर गई थी। अत: इस स्थल को भी शक्तिपीठ के अंतर्गत माना जाता है। इस देवी मंदिर का पुराणों में भी वर्णन मिलता है।
 
 
3. लिंग पुराण में कथा है कि जिस समय रामचंद्रजी युद्ध में विजयी होकर अयोध्या जा रहे थे, वे रुद्रसागर तट के निकट ठहरे थे। इसी रात्रि को भगवती कालिका भक्ष्य की शोध में निकली हुईं इधर आ पहुंचीं और हनुमान को पकड़ने का प्रयत्न किया, परंतु हनुमान ने महान भीषण रूप धारण कर लिया। तब देवी वहां से चली गई। जाते समय अंश गालित होकर पड़ गया। जो अंश पड़ा रह गया, वही स्थान कालिका के नाम से विख्यात है।
 
 
इसी मंदिर के निकट लगा हुआ स्थिर गणेश का प्राचीन और पौराणिक मंदिर है। इसी प्रकार गणेश मंदिर के सामने भी एक हनुमान मंदिर प्राचीन है, वहीं विष्णु की सुंदर चतुर्मुख प्रतिमा है। खेत के बीच में गोरे भैरव का स्थान भी प्राचीन है। गणेशजी के निकट ही से थोड़ी दूरी पर शिप्रा की पुनीत धारा बह रही है। इस घाट पर अनेक सती की मूर्तियां हैं। उज्जैन में जो सतियां हुई हैं; उनका स्मारक स्थापित है। नदी के उस पार उखरेश्वर नामक प्रसिद्ध श्मशान-स्थली है। मंदिर के आगे जानने पर गुरु मत्स्येंद्रनाथ का समाधि स्थल भी है। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

पानीपत में हुई थी 3 ऐतिहासिक लड़ाइयों की 3 खास बातें