Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

उज्जैन के हरसिद्धि मंदिर के इतिहास की 5 खास बातें और महत्व

हमें फॉलो करें उज्जैन के हरसिद्धि मंदिर के इतिहास की 5 खास बातें और महत्व
देशभर में हरसिद्धि देवी के कई प्रसिद्ध मंदिर है लेकिन वाराणसी और उज्जैन स्थित हरसिद्धि मंदिर सबसे प्राचीन है। आओ जानते हैं माता हरसिद्धि देवी के मंदिर का इतिहास और महत्व।
 
 
इतिहास :
1. उज्जैन में महाकाल क्षेत्र में माता हरसिद्धि का प्राचीन मंदिर है। कहा जाता है कि यह स्थान सम्राट विक्रमादित्य की तपोभूमि है। मंदिर के पीछे एक कोने में कुछ 'सिर' सिन्दूर चढ़े हुए रखे हैं। ये 'विक्रमादित्य के सिर' बतलाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि महान सम्राट विक्रम ने देवी को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक 12वें वर्ष में अपने हाथों से अपने मस्तक की बलि दे दी थी। उन्होंने ऐसा 11 बार किया लेकिन हर बार सिर वापस आ जाता था। 12वीं बार सिर नहीं आया तो समझा गया कि उनका शासन संपूर्ण हो गया। हालांकि उन्होंने 135 वर्ष शसन किया था। वैसे यह देवी वैष्णवी हैं तथा यहां पूजा में बलि नहीं चढ़ाई। परमारवंशीय राजाओं की भी ये कुलदेवी है।
 
2. उज्जैन की रक्षा के लिए आस-पास देवियों का पहरा है, उनमें से एक हरसिद्धि देवी भी हैं। कहते हैं कि यह मंदिर वहां स्थित है जहां सती के शरीर का अंश अर्थात हाथ की कोहनी आकर गिर गई थी। अत: इस स्थल को भी शक्तिपीठ के अंतर्गत माना जाता है। इस देवी मंदिर का पुराणों में भी वर्णन मिलता है। 
 
3. उज्जैन में दो शक्तिपीठ माने गए हैं पहला हरसिद्धि माता और दूसरा गढ़कालिका माता का शक्तिपीठ। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि उज्जैन में शिप्रा नदी के तट के पास स्थित भैरव पर्वत पर मां भगवती सती के ओष्ठ गिरे थे। कहते हैं कि हरसिद्धि का मंदिर वहां स्थित है जहां सती के शरीर का अंश अर्थात हाथ की कोहनी आकर गिर गई थी। अत: इस स्थल को भी शक्तिपीठ के अंतर्गत माना जाता है। इस देवी मंदिर का पुराणों में भी वर्णन मिलता है।
 
4. कहते हैं कि चण्ड और मुण्ड नामक दो दैत्यों ने अपना आतंक मचा रखा था। एक बार दोनों ने कैलाश पर कब्जा करने की योजना बनाई और वे दोनों वहां पहुंच गए। उस दौरान माता पार्वती और भगवान शंकर द्यूत-क्रीड़ा में निरत थे। दोनों जबरन अंदर प्रवेश करने लगे, तो द्वार पर ही शिव के नंदीगण ने उन्हें रोका दिया। दोनों दैत्यों ने नंदीगण को शस्त्र से घायल कर दिया। जब शिवजी को यह पता चला तो उन्होंने तुरंत चंडीदेवी का स्मरण किया। देवी ने आज्ञा पाकर तत्क्षण दोनों दैत्यों का वध कर दिया। फिर उन्होंने शंकरजी के निकट आकर विनम्रता से वध का वृतांत सुनाया। शंकरजी ने प्रसन्नता से कहा- हे चण्डी, आपने दुष्टों का वध किया है अत: लोक-ख्याति में आपना नाम हरसिद्धि नाम से प्रसिद्ध होगा। तभी से इस महाकाल-वन में हरसिद्धि विराजित हैं।
 
5. ओरछा स्टेट के गजेटियर में पेज 82.83 में लिखा है कि- 'यशवंतराव होलकर ने 17वीं शताब्दी में ओरछा राज्य पर हमला किया। वहां के लोग जुझौतिये ब्राह्मणों की देवी हरसिद्धि के मंदिर में अरिष्ट निवारणार्थ प्रार्थना कर रहे थे। औचित्य वीरसिंह और उसका लड़का 'हरदौल', सवारों की एक टुकड़ी लेकर वहां पहुंचा, मराठों की सेना पर चढ़ाई कर दी, मराठे वहां से भागे, उन्होंने यह समझा कि इनकी विजय का कारण यह देवी हैं, तो फिर वापस लौटकर वहां से वे उस मूर्ति को उठा लाए। वही मू‍र्ति उज्जैन के शिप्रा-तट पर हरसिद्धिजी हैं। परंतु पुराणों में भी हरसिद्धि देवीजी का वर्णन मिलता है अतएव 18वीं शताब्दी की इस घटना का इससे संबंध नहीं मालूम होता। 
 
मंदिर परिचय : हरसिद्धि मंदिर की चारदीवारी के अंदर 4 प्रवेशद्वार हैं। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की ओर है। द्वार पर सुंदर बंगले बने हुए हैं। बंगले के निकट दक्षिण-पूर्व के कोण में एक बावड़ी बनी हुई है जिसके अंदर एक स्तंभ है। यहां श्रीयंत्र बना हुआ स्थान है। इसी स्थान के पीछे भगवती अन्नपूर्णा की सुंदर प्रतिमा है। मंदिर के पूर्व द्वार से लगा हुआ सप्तसागर रुद्रसागर) तालाब है जिसे रुद्रासागर भी कहते हैं। रुद्रसागर तालाब के सुरम्य तट पर चारों ओर मजबूत प्रस्तर दीवारों के बीच यह सुंदर मंदिर बना हुआ है। मंदिर के ठीक सामने दो बड़े दीप-स्तंभ खड़े हुए हैं। प्रतिवर्ष नवरात्र के दिनों में 5 दिन तक इन पर दीप मालाएं लगाई जाती हैं। मंदिर के पीछे अगस्तेश्वर का प्राचीन सिद्ध स्थान है जो महाकालेश्वर के भक्त हैं। मंदिर का सिंहस्‍थ 2004 के समय पुन: जीर्णोद्धार किया गया है।
 
महत्व : शक्तिपीठ होने के कारण इस मंदिर का महत्व बढ़ जाता है। यहां जो भी आता है उसकी मनोकामनापूर्ण होती है। इस मंदिर और देवी का पुराणों में उल्लेख मिलता है। नवरात्रि में यहां उत्सव का महौल रहता है। यहां की देवी का तांत्रिक महत्व भी है। यहां श्रीसूक्त और वेदोक्त मंत्रों के साथ पूजा होती है। मान्यता के अनुसार यहां पर स्तंभ दीप जलाने का सौभाग्य हर किसी को प्राप्त नहीं होता। कहते हैं कि स्तंभ दीप जलाते वक्त बोली गई मनोकामना पूर्ण हो जाती है। यहां दुर्गा से संबंधित भव्य यज्ञ और पाठ का आयोजन होता रहता है। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

किन-किन शहरों में कुंभ का आयोजन होता है?