Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

चाणक्य नीति : इन 8 तरह के लोगों पर कभी न करें दया

हमें फॉलो करें चाणक्य नीति : इन 8 तरह के लोगों पर कभी न करें दया
, शनिवार, 26 मार्च 2022 (12:26 IST)
आचार्य चाणक्य को उनकी चाणक्य नीति और अर्थशास्त्र के कारण ही नहीं जाना जाता है बल्कि उन्होंने मगध के क्रूर और निरंकुश सम्राट घनानंद को गद्दी पर से उतारकर चंद्रगुप्त को सम्राट बना दिया था और बाद में उन्होंने संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बांध दिया था। आओ जानते हैं कि आचार्य चाणक्य क्या कहते हैं?
 
चाणक्य नीति के अनुसार ऐसे 8 लोग होते हैं जिन पर भरोसा करना या जिनसे किसी भी प्रकार की आशा करना व्यर्थ है। उन्हें किसी भी कीमत पर अपना दु:ख नहीं बताना चाहिए और न ही इन पर किसी भी प्रकार से भावना में बहकर दया नहीं करना चाहिए। आओ जानते हैं कि कौन हैं वे 8 प्रकार के लोग?
 
राजा वेश्या यमो ह्यग्निस्तकरो बालयाचको।    
पर दु:खं न जानन्ति अष्टमो ग्रामकंटका:।।- चाणक्य
 
आचार्य चाणक्य इस श्लोक के माध्यम से कहते हैं कि ये 8 तरह के लोग हैं जो किसी के दु:ख या तकलीफ को नहीं समझते हैं। चाणक्य के अनुसार राजा, यमराज, अग्नि, बालक, चोर, वेश्या, याचक पर किसी के भी दु:ख का कोई असर नहीं होता है। इसके साथ ही गांव वालों को कष्ट देने वाले यानी गांव का कांटा भी दूसरे के दु:ख से दु:खी नहीं होता है। इन लोगों का सामना होने पर व्यक्ति को समझदारी और संयम से काम लेना चाहिए। ये लोग कभी किसी दूसरे व्यक्ति के दु:ख और संताप को नहीं देखते और अपने मन के अनुसार ही कार्य करते हैं। इसलिए इनसे दया की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

राजा को यानी शासन व्यवस्था कानून से चलती है जिसे किसी के दु:ख से कोई फर्क नहीं पड़ता। वैश्या को सिर्फ अपने काम से मतलब होता है। यमराज पर लोगों के दुख-दर्द का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अग्नि को भी किसी की पीड़ा से कोई सरोकार नहीं। चोर भी किसी की पीड़ा नहीं समझते। बच्चों को भी किसी की पीड़ा का भान नहीं होता क्योंकि वो नादान होते हैं और इसलिए लोगों की भावनाओं को नहीं समझ पाते हैं। याचक यानी मांगने वाले को भी अपने ही दु:ख से मतलब होता है दूसरे के दु:ख से नहीं। ग्रामकंटक यानी गांव के लोगों को दु:ख देने वाले लोगों पर किसी दूसरे की पीड़ा का असर नहीं होता।
 
 
तक्षकस्य विषं दन्ते मक्षिकायास्तु मस्तके।
वृश्चिकस्य विषं पुच्छे सर्वाङ्गे दुर्जने विषम् ।।- चाणक्य
 
इस श्लोक के माध्यम से चाणक्य कहते हैं कि सर्प का विष उसके दांत में, मक्खी का विष उसके सिर में और बिच्छू का विष उसकी पूंछ में होता है। अर्थात विषैले प्राणियों के एक-एक अंग में ही विष होता है, परंतु दुष्ट व्यक्ति के सभी अंग विष से भरे होते हैं। चाणक्य कहते हैं कि दुर्जन व्यक्ति सदैव अपने बचाव के लिए अपने ही विष का इस्तेमाल करते हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

देवगुरु बृहस्पति उदय होंगे आज, मेष से लेकर मीन राशि तक का हाल...