Kalki avatar: हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु अपने 10वें अवतार के रूप में कल्कि नाम से जन्म लेंगे। पुराणों के अनुसार संभल नामक स्थान पर विष्णुयक्ष नामक तपस्वी ब्राह्मण के घर भगवान कल्कि पुत्र रूप में जन्म लेंगे। सबसे पुराने स्कंद पुराण के दशम अध्याय में स्पष्ट वर्णित है कि कलियुग में भगवान श्रीविष्णु का अवतार श्रीकल्कि के रुप में सम्भल ग्राम में होगा। संभल नामक गांव भारत में कई प्रदेशों में है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, ओड़िसा और छत्तीसगढ़ आदि सभी जगह इस नाम के गांव है।
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1. तिब्बत का गांव संभल: तिब्बत में भी एक संभल ग्राम है। कुछ लोगों के अनुसार वहां पर कल्कि का जन्म हो चुका है और वे जल्द ही सामने आएंगे। तिब्बती बौद्ध परंपरा में शम्भाला एक आध्यात्मिक साम्राज्य है। इसे शम्भाल या शंबल्ला भी कहा जाता है। शम्भाला का ज़िक्र कालचक्र तंत्र में मिलता है। शम्भाला को द प्योर लैंड भी कहा जाता है।
2. ओड़िसा का संभल गांव: एक संभलपुर उड़ीसा में भी है, यहां भी मां संभलेश्वरी देवी का मंदिर है। यहां पर श्रीहरि विष्णु के अवतार लेने की प्रार्थना की जाती है। यहां पर भी कल्कि धाम बना हुआ है। संबलपुर में प्रागैतिहासिक बस्तियां पाई गई हैं। संबलपुर, ओडिशा का एक ज़िला है. यह महानदी के किनारे बसा है। संबलपुर में प्रागैतिहासिक बस्तियां पाई गई हैं। कुछ लोगों के अनुसार जब ओड़िशा में स्थित अच्युतानंद महाराज की समाधि से उनके पास लगा बरगद के वृक्ष की जटाएं छू लेंगी तब वह संभल ग्राम में जन्म लेंगे।
3. उत्तर प्रदेश का संभल ग्राम: कई लोग इसे उत्तर प्रदेश का गांव मानते हैं। कल्कि अवतार के नाम पर वर्तमान में उत्तर प्रदेश के ग्राम संभल में एक मंदिर बना हुआ है। इसी मंदिर को अब भव्य स्वरूप दिए जा रहा है। उनके भजन, आरती और चालीसा भी बन चुके हैं। उनके नाम पर फंड भी एकत्रित किया जाता है।
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4. राजस्थान का संबल गांव: राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात की त्रिवेणी संगम स्थल राजस्थान के वांगड़ अंचल (दक्षिण में जनजाति बहुल बांसवाड़ा एवं डूंगरपुर जिले में) के डूंगरपुर जिले के साबला गांव में हरि मंदिर है जहां कल्कि अवतार की पूजा हो रही है। इसे संभल ग्राम भी कहते हैं। हरि मंदिर के गर्भगृह में श्याम रंग की अश्वारूढ़ निष्कलंक मूर्ति है, जो लाखों भक्तों की श्रद्धा और विश्वास का केंद्र है। भगवान के भावी अवतार निष्कलंक भगवान की यह अद्भुत मूर्ति घोड़े पर सवार है। इस घोड़े के तीन पैर भूमि पर टिके हुए हैं जबकि एक पैर सतह से थोड़ा ऊंचा है। मान्यता है कि यह पैर धीरे-धीरे भूमि की तरफ झुकने लगा है। जब यह पैर पूरी तरह जमीन पर टिक जाएगा तब दुनिया में परिवर्तन का दौर आरंभ हो जाएगा। संत मावजी रचित ग्रंथों एवं वाणी में इसे स्पष्ट किया गया है।