बाबा अमरनाथ की यात्रा का आयोजन प्रतिवर्ष अषाढ़ी पूर्णिमा से प्रारंभ होती है और श्रावण पूर्णिमा पर इसका समापन होता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव इस गुफा में पहले पहल श्रावण मास की पूर्णिमा को आए थे इसलिए उस दिन को अमरनाथ की यात्रा को विशेष महत्व मिला। रक्षा बंधन की पूर्णिमा के दिन ही छड़ी मुबारक भी गुफा में बने हिमशिवलिंग के पास स्थापित कर दी जाती है।
कोरोना काल के चलते इस बार यात्रा की शुरुआत देर से हुई और बहुत कम लोगों को ही यात्रा की अनुमति मिल पाई। मौसम के खराब होने के चलते भी यात्रा बाधित रही और दूसरे साल भी वार्षिक अमरनाथ यात्रा को सांकेतिक तौर पर संपन्न करवा दिया गया। हालांकि इस बार पवित्र गुफा से रोजाना आरती का सीधा प्रसारण किया गया था। भक्तों के घर बैठे ही बाबा के दर्शन किए। इससाल तीन लंगर लगाए गए थे ताकि कर्मचारियों, सुरक्षा बलों को परेशानियों का सामना न करना पड़े।
श्रावण पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन के दिन छड़ी मुबारक हेलीकॉप्टर से पवित्र गुफा स्थल तक पहुंची। दशनामी अखाड़ा श्रीनगर के महंत दीपेंद्र गिरि के नेतृत्व में गिने चुने साधु संतों व अधिकारियों के एक दल ने छड़ी मुबारक के आज दर्शन किए। अमरनाथ श्राईन बोर्ड के अधिकारी, सुरक्षा बल, प्रशासनिक व पुलिस के अधिकारी भी मौजूद रहे। छड़ी मुबारक की विधिवत पूजा अर्चना की गई। छड़ी मुबारक व श्राईन बोर्ड के अधिकारियों ने जम्मू कश्मीर में शांति, खुशहाली की प्रार्थना की। इसके साथ ही सांकेतिक अमरनाथ यात्रा संपन्न हो गई।
वापसी पर रात्रि को छड़ी मुबारक पहलगाम में विश्राम किया। सोमवार को पहलगाम स्थित लिद्दर नदी में छड़ी विसर्जन पूजा के साथ छड़ी का समापन हुआ।