* लाख की संख्या से ऊपर प्रेरक एक झटके में हुए बेरोजगार संविदा समाप्त
* जिनसे था परमानेंट होने का सहारा, उन्होंने छीन ली संविदा की नौकरी भी
* परमानेंट होने की आस लगाए प्रेरकों ने संविदा से भी धोए हाथ
* प्रेरकों का दर्द, वादाखिलाफी के बाद हम कहीं के न रहे
लखनऊ। सरकार से परमानेंट होने की उम्मीद लगाए प्रेरकों को 27 सितंबर के सरकारी आदेश के बाद बड़ा झटका लगा है। 27 सितंबर 2017 को निदेशक साक्षरता वैकल्पिक शिक्षा एवं सचिव राज्य साक्षरता मिशन प्राधिकरण के पद पर तैनात अवध नरेश शर्मा द्वारा जारी निर्देश आते ही प्रेरकों की संविदा समाप्त होने का मामला एकदम स्पष्ट हो गया। हालांकि यह पहले से तय था लेकिन प्रेरकों की उम्मीद फिर भी कायम थी। सरकार के फैसले के बाद सहारा लगाकर बैठे प्रेरकों की उम्मीदों पर पानी फिर चुका है।
आपको बताते चलें कि भारत में साक्षरता दर बढ़ाने के लिए राज्यों में प्रेरक तैनात किए गए थे। उत्तरप्रदेश में भी योजना के तहत लगभग 1 लाख प्रेरकों को संविदा पर नियुक्ति दी गई। इन प्रेरकों को महज 2,000 रुपए महीने का वेतन देकर लोगों को साक्षर बनाने का बीड़ा सौंप दिया गया। उत्तरप्रदेश में प्रेरकों द्वारा अन्य ड्यूटियां भी कराई गईं जिनमें बीएलओ, पल्स पोलियो आदि शामिल रहीं।
प्रेरकों द्वारा निरक्षरों को खोजने और उन्हें शिक्षा के लिए प्रेरित करने की जिम्मेदारी भी निभानी पड़ रही थी। प्रेरकों से बात करने पर पता चला कि इस कार्य में उन्हें पूरा-पूरा दिन सर्वे करना पड़ा है। बावजूद इसके उनके वेतन में कोई इजाफा नहीं किया गया। प्रेरक प्रेमकिशोर की मानें तो कॉपी-पेन सहित अन्य बहुत से खर्चे उन्हें अपनी जेब से करने पड़ते थे। इतना सब होने के बावजूद प्रेरकों ने मानदेय समय से न मिलने की बात भी कही। प्रदेश के जिला सीतापुर के महोली ब्लॉक के प्रेरकों ने 27 माह से मानदेय न मिलने की बात भी कही। पूरे प्रदेश से प्रेरकों के कई माह के मानदेय रुके होने के समाचार सामने आ रहे हैं। फिलहाल प्रेरक इन विषम परिस्थितियों से जूझ रहे थे।
प्रदेश के प्रेरकों की मानें तो उन्हें अपनी हक की बात कहने पर लाठियां मिलीं। प्रेरकों का सबसे बड़ा दर्द यह भी है कि उन्हें जिस सरकार से उम्मीद थी उसी ने वादाखिलाफी कर डाली। बातचीत के दौरान प्रेरकों ने 3 अप्रैल 2016 को झूलेलाल पार्क में रैली की याद दिलाते हुए बताया कि इस रैली को 'अधिकार दिलाओ रैली' नाम दिया था। रैली में राजनाथ और अमित शाह पहुंचे थे। तमाम संविदाकर्मियों सहित प्रेरकों को अधिकार दिलाने की बात की गई थी। प्रेरकों के अनुसार रैली आयोजक ने यह भी कहा था कि जो प्रेरकों सहित तमाम संविदाकर्मियों की स्थायी नियुक्ति के संबंध में कदम उठाएगा वहीं उत्तरप्रदेश की गद्दी पर राज करेगा।
ये रैलियां याद आते ही प्रेरक खुद को ठगा हुआ पा रहे हैं। जो अधिकार दिलाने की बात करते थे उनके ही राज में अधिकार छीन लिए गए। रोजगार देने की बात करने वाली सरकार ने लाखों की संख्या में इस फैसले से लोगों को एक झटके में बेरोजगार कर दिया। फिलहाल प्रेरक संविदा से भी पैदल हो चुके हैं। 2,000 पर भी काम करने वाले ये मेहनतकश अब इससे भी वंचित हो जाएंगे।
आदेश जारी होने के बाद हमने कई प्रेरकों से सीधे संवाद के जरिए उनकी प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की तो ऐसा लगा, जैसे कि ताजे घाव को किसी ने उकेर दिया है। कोई अब भी मोदी से आस लगाए बैठा नजर आया तो कोई उधार के पैसों से न्याय की लड़ाई लड़ने की बात करते नजर आया। प्रेरकों से संवाद के बाद एक बात सामने थी कि भले ही उन्हें उम्मीद हो या न हो लेकिन वे सरकारों पर खुद को छलने का सीधा आरोप मढ़ रहे थे। प्रेरक राघवेन्द्र सिंह ने बताया कि सरकार बनने से पूर्व 'अधिकार दिलाओ अभियान' और संविदाकर्मियों को नियमित करने का झूठा वादा उन्हें हमेशा याद रहेगा।
फिलहाल राघवेंद्र को अब भी सरकार से उम्मीद है और वे सरकार से आस लगाए बैठे हैं। इसी आस मे प्रदेश के 1 लाख प्रेरकों ने लक्ष्मण मेला मैदान में 80 दिनों तक धरना दिया। यहीं नहीं, 5 सितंबर को विधानसभा सभा घेराव करने पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया जिसमें तमाम प्रेरक चोटिल हो गए।
प्रेरक गरिमा की मानें तो अल्प वेतन पर 10 से 5 बजे तक ड्यूटी कराकर अब बेरोजगार करना दुखभरा है। प्रेरक आदित्य के अनुसार रोजगार देने की बात करने वाली सरकार रोजगार कैसे छीन सकती है? प्रेरक प्रतिमा बताती हैं कि यह प्रेरकों के साथ अन्याय है। सरकार जरूर फिर से विचार करेगी और मीडिया हम लोगों के लिए बात उठा रही है जिससे सरकार को पुनर्विचार करना पड़ेगा।
इन मिली-जुली प्रतिक्रियाओं के बाद एक बात तय है कि मसले पर बेबस प्रेरकों के खाली हाथ और भविष्य की चिंता दोनों ठहाका लगाते नजर आ रहे हैं।