जल दुर्घटनाओं की रोकथाम को समर्पित अभियान: मंदार-एंड-नो-मोर
6वां संकल्प दिवस
21 मार्च 2021
जल-दुर्घटना रोकथाम अभियान के 6 वर्ष पूरे
हर माह हमें देश के किसी कोने से यह खबर आती है कि पिकनिक मनाने गए बच्चों में से किसी बच्चे की डूबने से दुखद मृत्यु हो गई...इंदौर,भोपाल, उज्जैन के अलावा जहाँ कहीं भी नदी,जलाशय,झरने हैं...वहाँ से ये खबरें तैर कर आती हैं और मन को भीगो जाती हैं...पर अफसोस कि जिन्हें तैर कर आना था वे नहीं आ पाते हैं....
मार्च 2015 में भोपाल के 16 वर्षीय मंदार वेदघोषे की भी मौत का कुआँ नामक जलाशय में डूबने से मृत्यु हुई...वह पल ऐसा था जब उनके परिवार के लिए मानो सब कुछ थम गया और दुनिया बिखर गई लेकिन मन्दार के पिता विश्वास वेदघोषे ने अपने कलेजे पर पत्थर रख कर फैसला किया कि नहीं अब और नहीं...किसी घर का और कोई मंदार इस तरह की खबर नहीं बनेगा और इस तरह शुरु हुआ मंदार एंड नो मोर अभियान....
मंदार-एंड-नो-मोर अभियान 21 मार्च 2015 को मन्दार वेदघोषे की डूबने से हुई दुखद मृत्यु के कारण प्रारम्भ हुआ था। बीते 6 वर्षों में उसने एक फाउंडेशन का रूप ले लिया है, जिससे अनेक संस्थाएं और स्वयंसेवी देश भर से जुड़ चुके हैं।
भारत सरकार के भारतीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2019 में कुल 4.21 लाख लोगों की विभिन्न दुर्घटनाओं में मृत्यु हुई जिनमें से 7.8 प्रतिशत, यानी 32,671 लोगों की मृत्यु डूबने के कारण हुई। यानी प्रतिदिन लगभग 90 मौतें!
डूबने से सर्वाधिक मौतें 4,904 मध्यप्रदेश में हुईं।
विश्व की बात करें, तो विश्व स्वास्थ्य संगठन रिपोर्ट के अनुसार हर साल लगभग पौने चार लाख लोग डूबने की दुर्घटनाओं के कारण मृत्यु को प्राप्त होते हैं। यानी हर घंटे 40 से अधिक मौतें!
ऐसे भयावह आंकड़ों के बावजूद जल दुर्घटना के लिए समाज, शासन और प्रशासन को जितना जागरूक और तत्पर रहना चाहिए, वैसा प्रायः देखा नहीं जाता। यही कारण है कि डूबने से मरने की घटनाएं मात्र एक समाचार बनकर रह जाती हैं या डूबने वालों पर ही सारा दोष मढकर हम अपने दायित्व को नकार देते हैं। दूसरी ओर डूबने की घटनाएं बढ़ती रहती हैं जिनमें ज्यादातर बच्चे और युवा ही काल का ग्रास बनते हैं, जो समाज और राष्ट्र की मानव संपदा का भी बहुत बड़ा नुकसान होता है।
यही कारण है कि मंदार-एंड-नो-मोर अभियान की टीम पूरी लगन से विगत 6 वर्षों से जल-दुर्घटना रोकथाम के कार्य में जुटी है। इसकी प्रमुख उपलब्धियों में है केरवा बांध के निकट जलाशय जिसे मौत का कुआं कहा जाता है, उसमें सुरक्षा के कार्य संपादन किये जिसके कारण 2015 से वहां कोई दुर्घटना नहीं हुई।
मार्च 2015 में 16 वर्षीय मन्दार की भी मौत का कुआँ नामक जलाशय में डूबने से मृत्यु हुई, जिसके बाद इस स्थान की दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिये मंदार-एंड-नो-मोर अभियान प्रारम्भ हुआ।
मंदार-एंड-नो-मोर के सदस्यों को श्रीमती सुमित्रा महाजन ने प्रोत्साहित किया और इंदौर के पास पातालपानी में भी कार्य करने की लिए प्रेरित किया। फिर महू के पास पातालपानी में भी टीम द्वारा कार्य किया गया जिसके कारण 2018 से वहां कोई दुर्घटना नहीं हुई।
मंदार-एंड-नो-मोर फाउंडेशन के विश्वास वेदघोषे सभी सहयोगियों का हृदय से आभार व्यक्त करते हैं और पूरे समाज से अपील करते हैं कि इस अभियान से जुड़कर इसे देशव्यापी बनाएं और डूबने के हादसों से लोगों की जान बचाएं। फाउंडेशन द्वारा इस दिशा में अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। आगामी योजना जिस विषय पर केंद्रित है, वह है प्रधानमंत्री से निवेदन कर 5-अक्टूबर को भारत का राष्ट्रीय जल-दुर्घटना रोकथाम दिवस घोषित करवाना। अनेक लोग इसे पहले से ही मनाते आ रहे हैं परन्तु इसे शासन द्वारा आधिकारिक रूप प्राप्त हो जाए तो जल-दुर्घटना रोकथाम के प्रयासों को और बल मिलेगा और संपूर्ण समाज इस कार्य से जुड़ सकेगा।
मंदार-एंड-नो-मोर अभियान की योजनाएं
1. 5-अक्टूबर को भारत का जल-दुर्घटना रोकथाम दिवस घोषित किये जाने का प्रधानमंत्री से निवेदन
जल-दुर्घटना रोकथाम दिवस का महत्व एवं लक्ष्य यह है कि अन्य दिवसों की तरह भारत सरकार के साथ समाज भी जल दुर्घटनाएं रोकने के लिये प्रोत्साहित होगा। इससे सरकार एवं अन्य सभी स्टेकहोल्डर्स के लिये नियमित रूप से समुचित नीतियाँ, योजनाएं, बजट एवं क्रियान्वयन की रूपरेखा तैयार करना सुविधाजनक बन जाता है। किसी एक दिवस को डूबने से होने वाली मृत्यु को बचाने पर केंद्रित करने से लोगों को व्यापक मुहिम से जुड़ना आसान हो जाता है। वर्ष 2017 से अभियान ने 5 अक्टूबर को जल-दुर्घटना रोकथाम दिवस के रूप में मनाने की पहल की। भारत के माननीय प्रधानमंत्री को इस दिन की घोषणा करने के लिये इस अभियान से जुड़े सभी सदस्य विनम्र अपील करते हैं और सभी राज्यों के सहयोगी संस्थाओं से इस हेतु प्रस्ताव, हस्ताक्षर आदि एकत्रित किये जा रहे हैं।
2. स्कूल एवं कॉलेज में सुरक्षा के प्रति जागरूकता के लिये निरन्तर कार्यक्रमों का आयोजन करना क्योंकि प्रायः बच्चे और युवा ही जल दुर्घटना का शिकार बनते हैं।
3. खतरनाक जलाशयों को चिन्हित कर वहाँ के रहवासियों एवं सरकार के साथ मिलकर उसे यथासंभव सुरक्षित बनाने का कार्य करना, जैसा केरवा एवं पातालपानी जलाशयों में किया गया है।
4. बच्चों एवं युवाओं को तैराकी सीखने के लिये प्रशिक्षण का प्रोत्साहन देना और जिन्हें इसकी सुविधा उपलब्ध न हों, उनके लिए व्यवस्था करने का प्रयास करना।
मंदार-एंड-नो-मोर फाउंडेशन के संस्थापक निदेशक विश्वास वेदघोषे ने बेटे के जाने के बाद दूसरे बच्चों के लिए जो महति अभियान शुरू किया विपरीत हालातों में ऐसा कितने पिता कर पाते हैं.... आज मंदार के नाम से आरम्भ यह अभियान जल दुर्घटना के खिलाफ एक मिसाल और मशाल बन गया है...देशहित में यह बात हम सबको सोचनी है कि सावधानी,सुरक्षा और सतर्कता से मासूम जिंदगियां बचाई जा सकती हैं...बचाई जानी चाहिए...