-खुशबू मेस्सुरानी
गुजरात के कच्छ जिले में मौजूद है गांधीधाम। भारत के बंटवारे के बाद 1947 में भाई प्रतापजी ने इस शहर को खड़ा किया था उन शरणार्थियों के लिए जो सिंध (पाकिस्तान) से कच्छ आए थे। भाई प्रतापजी का उद्देश्य रिफ्यूजियों की मदद करना था। उस समय कच्छ के शासक महाराव खेंगारजी ने 15000 एकड़ जमीन सिंधु रिसेटलमेंट कॉर्पोरशन (एसआरसी) को दान की थी। किसी समय सरदारगंज के नाम से पहचाने जाने वाला यह शहर व्यावसायिक और व्यापारिक गतिविधियों के चलते अब कच्छ जिले की आर्थिक राजधानी का दर्जा हासिल कर चुका है।
गांधीधाम का ज्यादातर व्यापार कांडला पोर्ट से होता है, जो कि भारत का दूसरा सबसे प्रमुख बंदरगाह है। जैसे- जैसे व्यापार बढ़ा, गांधीधाम एक औद्योगिक शहर के रूप में स्थापित हो गया। यहां मुख्य रूप से लकड़ी, नमक, स्टील, तेल और परिवहन का व्यापार है। कांडला पोर्ट को अब दीनदयाल पोर्ट के नाम से जाना जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि जिन-जिन लोगों ने व्यापार करने का जोखिम उठाया था, आज सारे सफल और बिजनेस टाइकून बन चुके हैं। प्रॉपर्टी के मूल्यांकन की वजह से आज गांधीधाम की एक पहचान 'मिनी मुंबई' के रूप में भी है। यह शहर 63.49 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।
2001 के भूकंप के बाद तेजी से विकसित हुआ गांधीधाम : वर्ष 2001 के विनाशकारी भूकंप ने कच्छ के कई शहरों को काफी नुकसान पहुंचाया था। दूसरी ओर, इस आपदा के बाद गांधीधाम का तेजी से विकास हुआ। गुजरात सरकार ने टैक्सेशन पॉलिसी में राहत दी जिसके चलते नई इंडस्ट्रीज जैसे- स्टील प्लांट, इलेक्ट्रिक थर्मल प्लांट, वेजिटेबल तेल रिफाइनिंग प्रोसेस, प्लायवुड इंडस्ट्री और होटल इंडस्ट्री तेजी से डेवलप हुए। चूंकि गांधीधाम एक भूकंप क्षेत्र (Earthquake Zone-G5) है, जिसके चलते अब सिर्फ G+2 मंज़िल बनाने की ही अनुमति है।
गांधीधाम की एक और पहचान है, वह है बापू की समाधि। भारत में सिर्फ दो जगह हैं, जहां महात्मा गांधी की समाधि बनी हैं। एक राजघाट (दिल्ली) में और दूसरी आदिपुर (गांधीधाम) में। यहां बापू की अस्थियां लाई गई थीं।