नई दिल्ली। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा पूर्वोत्तर के राज्य असम में अजमाए गए फार्मूले को दोहराना चाहती है और कांग्रेस से पाला बदल कर आए कई नेताओं को चुनावी समर में उतार कर सत्ता हासिल करने की उम्मीद लगाए हुए है।
भाजपा को उम्मीद है कि जिस प्रकार से असम में हेमंत विस्वा शर्मा एवं कांग्रेस से पाला बदलाकर आए कई विधायकों ने पूर्वोत्तर के इस राज्य में 2016 में भाजपा को सत्ता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उसी प्रकार की उम्मीद कांग्रेस से पाला बदलाकर आए पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल महाराज के अलावा यशपाल आर्य, केदार रावत, हरक सिंह रावत जैसे नेताओं से उत्तराखंड में भाजपा लगाऐ हुए है।
उत्तराखंड में कांग्रेस से पाला बदलकर भाजपा में आए इन नेताओं का अपने क्षेत्रों में अच्छा जनाधार है जहां एक प्रतिशत वोटों के किसी भी पक्ष में जाने से परिणाम प्रभावित हो जाता है।
साल 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बीसी खंडूरी की स्वच्छ छवि के आधार पर सत्ता में वापसी की उम्मीदें लगाई थी लेकिन ऐसा नहीं हो सका। चुनाव में कांग्रेस को 32 सीटें मिली जबकि भाजपा 31 सीट पाकर सत्ता से दूर हो गई। दोनों दलों के वोट प्रतिशत का अंतर कांग्रेस के पक्ष 0.66 प्रतिशत था।
उत्तरप्रदेश से अलग होकर बने उत्तराखंड में तीन विधानसभा चुनाव में 2007 में भाजपा का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा था जब उसे 70 सीटों में से 35 सीटों पर जीत हासिल हुई थी और बहुमत से एक सीट कम रही थी। भाजपा ने तब बी सी खंडूरी के नेतृत्व में सरकार बनाई थी।
असम में भी कांग्रेस से पाला बदलकर पर आए हेमंत विस्व शर्मा ने भाजपा की चुनावी जीत में अहम भूमिका निभाया था जहां पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ-साथ सत्ता में आई। पार्टी ने अब शर्मा को पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में पार्टी के विस्तार का दायित्व सौंपा है।
यहां तक की असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल भी असम गण परिषद के नेता रहे हैं और वे 2011 में भाजपा में शामिल हुए और 2014 के लोकसभा चुनाव और फिर विधानसभा चुनाव में भाजपा की शानदार जीत का नेतृत्व किया। (भाषा)