जम्मू। पिछले 27 सालों के दौरान आतंकी 90 से ज्यादा अमरनाथ श्रद्धालुओं को मौत के घाट उतार चुके हैं। यह आंकड़ा वर्ष 1993 से लेकर वर्ष 2017 तक का है। इन मौतों के लिए आतंकी गुटों तथा अलगाववादी नेताओं द्वारा बनाई गई असमंजस की परिस्थितियों को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है, क्योंकि हर बार अमरनाथ यात्रा शुरू होने पर कुछ आतंकी गुट अमरनाथ यात्रा को क्षति न पहुंचाने की बात करते रहे हैं तो अलगाववादी नेता अमरनाथ श्रद्धालुओं को कश्मीर का मेहमान बताकर उनकी पीठ पर वार करते रहे हैं।
अमरनाथ यात्रा पर सबसे पहला हमला विदेशी आतंकियों ने 1993 में किया था, जब उस पर प्रतिबंध लगाते हुए हरकतुल अंसार ने श्रद्धालुओं को धमकी दी थी कि शामिल होने वालों को मौत के घाट उतार दिया जाएगा। जब धमकी बेअसर हुई तो आतंकी हमले में 3 की जान चली गई।
इसी प्रकार का हमला उसके अगले साल भी हुआ। इस हमले में 2 लोगों की जान चली गई। फिर सुरक्षा प्रबंधों में सख्ती का परिणाम था कि अगले 6 साल तक आतंकी अमरनाथ यात्रा को कोई क्षति नहीं पहुंचा पाए, पर उसके अगले 4 साल अमरनाथ श्रद्धालुओं के लिए भारी साबित हुए। चौंकाने वाली बात यह थी कि वर्ष 2000 से लेकर वर्ष 2003 तक के 4 हमलों के दौरान अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा के प्रति लंबे चौड़े दावे किए जाते रहे थे। तब आतंकियों ने हर साल हमला किया था।
आतंकियों ने वर्ष 2000 में सबसे अधिक 35 श्रद्धालुओं को पहलगाम में मौत के घाट उतार दिया था। वर्ष 2001 में 12, वर्ष 2002 में 10 को मार डाला था। हालांकि वर्ष 2003 में आतंकी अमरनाथ यात्रा मार्ग पर कोई हमला नहीं कर पाए थे, लेकिन उन्होंने अमरनाथ यात्रा संपन्न कर वैष्णोदेवी की यात्रा में शामिल होने जा रहे 8 श्रद्धालुओं को जरूर मार डाला था।
देखा जाए तो आतंकी वर्ष 2003 से लेकर 2016 तक अमरनाथ यात्रा को कोई क्षति पहुंचाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं। इसके पीछे के कई कारण हैं। सुरक्षा व्यवस्था से लेकर आतंकियों और अलगाववादी नेताओं के रुख भी इसके लिए जिम्मेदार रहे हैं।
हालांकि इतना जरूर था कि 2003 के बाद 2016 तक कोई आतंकी हमला अमरनाथ श्रद्धालुओं पर इसलिए नहीं हुआ था, क्योंकि कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सईद अली शाह गिलानी अमरनाथ श्रद्धालुओं को कश्मीरियों का मेहमान निरूपित करते रहे थे।
दरअसल, यह कश्मीरी जनता का दबाव होता था ताकि रोजी-रोटी चलती रहे। जानकारी के लिए अमरनाथ यात्रा को कश्मीर के पर्यटन व्यवसाय की रीढ़ माना जाता रहा है, पर इस रीढ़ को अक्सर आतंकी गुट विचारधारा के चलते तोड़ने की कोशिश जरूर करते रहते हैं।