नई दिल्ली। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी को सामाजिक सद्भावना का प्रतीक बताते हुए इसे पूरे देश में लागू करने की रविवार को वकालत की और कहा कि बिहार में 1 साल के अंदर ही किडनी और लिवर के रोगियों की संख्या 39 प्रतिशत तथा न्यूरो संबंधी बीमारियों से ग्रस्त रोगियों की संख्या 44 प्रतिशत घटी है।
जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के अध्यक्ष कुमार ने यहां दिल्ली के पार्टी कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए बताया कि बिहार सरकार ने एक अध्ययन कराया है जिसमें शराबबंदी से पहले और उसके बाद के 1 साल के दौरान सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों की तुलना की गई। राज्य में 1 अप्रैल 2016 से शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया था।
उन्होंने बताया कि अध्ययन में पता चला कि सड़क दुर्घटनाओं एवं ट्रामा के मरीजों की संख्या में 1 साल में 31 प्रतिशत की कमी आई है। इसके अलावा किडनी तथा लिवर के रोगियों की संख्या 39 प्रतिशत, मानसिक बीमारियों के मरीजों की संख्या 33 प्रतिशत और तंत्रिका तंत्र (न्यूरो) संबंधी रोगों के मरीजों की संख्या 44 प्रतिशत कम हुई है। जदयू अध्यक्ष ने शराबबंदी को मुद्दा नहीं बनाने के लिए दूसरी पार्टियों पर निशाना साधते हुए कहा कि यदि यह बिहार और गुजरात में लागू हो सकता है तो पूरे देश में क्यों नहीं हो सकता?
उन्होंने कहा कि कांग्रेस तथा वाम दल लंबे-चौड़े भाषण देते हैं, लेकिन इसकी बात नहीं करते और न ही इसके लिए कोई अभियान चलाते हैं, हालांकि उन्होंने बिहार में अपने सहयोगी दल भारतीय जनता पार्टी का नाम नहीं लिया। कुमार ने कहा कि हिन्दू, इस्लाम, सिख, बौद्ध और जैन- सभी धर्म शराब और नशे के खिलाफ हैं। सांप्रदयिक और सामाजिक सद्भावना का इससे बेहतर प्रतीक नहीं हो सकता।
उन्होंने कहा कि इसके बावजूद 'चंद' पढ़े-लिखे लोग इसे आजादी से जोड़कर शराबबंदी का विरोध करते हैं। उन्होंने कहा कि बिहार सरकार ने नशाबंदी लागू करने के साथ नशामुक्ति केंद्रों की भी स्थापना की थी। इन केंद्रों पर कराए गए त्वरित सर्वेक्षणों के अनुसार, शराबबंदी से अवसाद में 81 प्रतिशत और तनाव में 77 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। इन केंद्रों में आने वाले मरीजों में 86 प्रतिशत स्वास्थ्य में सुधार हुआ, 75 प्रतिशत की आमदनी बढ़ी, 83 प्रतिशत की बचत बढ़ी और 86 प्रतिशत की काम करने की क्षमता बढ़ी।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के हवाले से कुमार ने बताया कि जनवरी 2015 से मार्च 2016 के मुकाबले अप्रैल 2016 से सितंबर 2017 की अवधि में बिहार में हत्या के मामलों में 14 प्रतिशत, डकैती के मामलों में 23 प्रतिशत, बैंकों में डकैती के मामलों में 21 प्रतिशत और सड़क दुर्घटना के मामलों में 10 प्रतिशत की गिरावट आई है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2015 में प्रति लाख आबादी के लिए अपराध का राष्ट्रीय औसत 234.2 था, जो वर्ष 2016 में मामूली गिरावट के साथ 233.6 रहा। इसी अवधि में बिहार में यह औसत 171.6 से घटकर 157.4 पर आ गया और पूरे देश में अपराध के मामले में वह 22वें स्थान पर रहा। (वार्ता)