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Champa Shashti 2023: चंपा षष्ठी का क्या है महत्व, जानें कथा, आरती और पूजन विधि

हमें फॉलो करें Champa Shashti 2023: चंपा षष्ठी का क्या है महत्व, जानें कथा, आरती और पूजन विधि
Champa Shashti : वर्ष 2023 में सोमवार, 18 दिसंबर चंपा या स्कंध षष्ठी पर्व मनाया जा रहा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार चंपा षष्ठी के दिन शिव-पार्वती के बड़े पुत्र कार्तिकेय की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। स्कंद षष्ठी भगवान कार्तिकेय को प्रिय होने के कारण इस दिन व्रत अवश्य करना चाहिए। 
 
महत्व : चंपा षष्ठी का त्योहार दक्षिण भारत, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि में प्रमुखता से मनाया जाता है। कार्तिकेय को स्कंद देव, मुरुगन, सुब्रह्मन्य नामों से भी जाना जाता है। स्कंद पुराण कार्तिकेय को ही समर्पित है। स्कंद पुराण में ऋषि विश्वामित्र द्वारा रचित कार्तिकेय 108 नामों का भी उल्लेख हैं। इस दिन निम्न मंत्र से कार्तिकेय का पूजन करने का विधान है। भगवान कार्तिकेय का वाहन मोर है। खासकर दक्षिण भारत में इस दिन भगवान कार्तिकेय के मंदिर के दर्शन करना बहुत शुभ माना गया है। 
 
पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिकेय अपने माता-पिता और छोटे भाई श्री गणेश से नाराज होकर कैलाश पर्वत छोड़कर शिव जी के ज्योतिर्लिंग 'मल्लिकार्जुन' आ गए थे और कार्तिकेय ने स्कंद षष्ठी को ही दैत्य तारकासुर का वध किया था तथा इसी तिथि को कार्तिकेय देवताओं की सेना के सेनापति बने थे। 
 
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवान कार्तिकेय षष्ठी तिथि और मंगल ग्रह के स्वामी हैं तथा दक्षिण दिशा में उनका निवास स्थान है। इसीलिए जिन जातकों की कुंडली में कर्क राशि अर्थात् नीच का मंगल होता है, उन्हें मंगल को मजबूत करने तथा मंगल के शुभ फल पाने के लिए इस दिन भगवान कार्तिकेय का व्रत करना चाहिए। भगवान कार्तिकेय को चंपा के फूल पसंद होने के कारण ही इस दिन को स्कंद षष्‍ठी के अलावा चंपा षष्ठी भी कहते हैं। 
 
कथा- 
 
शिव के दूसरे पुत्र कार्तिकेय को सुब्रमण्यम, मुरुगन और स्कंद भी कहा जाता है। उनके जन्म की कथा भी विचित्र है। कार्तिकेय की पूजा मुख्यत: दक्षिण भारत में होती है। अरब में यजीदी जाति के लोग भी इन्हें पूजते हैं, ये उनके प्रमुख देवता हैं। उत्तरी ध्रुव के निकटवर्ती प्रदेश उत्तर कुरु के क्षे‍त्र विशेष में ही इन्होंने स्कंद नाम से शासन किया था। इनके नाम पर ही स्कंद पुराण है।
 
कथा 1 : जब पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव की पत्नी 'सती' कूदकर भस्म हो गईं, तब शिवजी विलाप करते हुए गहरी तपस्या में लीन हो गए। उनके ऐसा करने से सृष्टि शक्तिहीन हो जाती है। इस मौके का फायदा दैत्य उठाते हैं और धरती पर तारकासुर नामक दैत्य का चारों ओर आतंक फैल जाता है। देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ता है। चारों तरफ हाहाकार मच जाता है तब सभी देवता ब्रह्माजी से प्रार्थना करते हैं। तब ब्रह्माजी कहते हैं कि तारक का अंत शिव पुत्र करेगा।
 
इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास जाते हैं, तब भगवान शंकर 'पार्वती' के अपने प्रति अनुराग की परीक्षा लेते हैं और पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होते हैं और इस तरह शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिवजी और पार्वती का विवाह हो जाता है। इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता है। कार्तिकेय तारकासुर का वध करके देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं। पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है।
 
कथा 2 : एक दूसरी कथा के अनुसार कार्तिकेय का जन्म 6 अप्सराओं के 6 अलग-अलग गर्भों से हुआ था और फिर वे 6 अलग-अलग शरीर एक में ही मिल गए थे।
 
चंपा/ स्कंद षष्ठी पूजन विधि : 
 
* स्कंद षष्ठी के दिन व्रतधारियों को दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके भगवान कार्तिकेय का पूजन करना चाहिए। 
* पूजन में घी, दही, जल और पुष्प से अर्घ्य प्रदान करना चाहिए। 
* रात्रि में भूमि पर शयन करना चाहिए। 
* मंत्र- 'देव सेनापते स्कंद कार्तिकेय भवोद्भव। कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते॥' से भगवान कार्तिकेय की पूजा करनी चाहिए। 
 
इसके अलावा स्कंद षष्ठी एवं चंपा/ चंपा षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय के इस मंत्र का जाप भी किया जाना चाहिए। यह मंत्र हर प्रकार के दुख, कष्टों के नाश करने के लिए प्रभावशाली माने गए हैं। इस तरह से भगवान कार्तिकेय का पूजन-अर्चन करने से जीवन के सभी कष्‍टों से मुक्ति मिलती है।
 
कार्तिकेय गायत्री मंत्र- 'ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महा सैन्या धीमहि तन्नो स्कंदा प्रचोदयात'।

शत्रु से परेशानी हो तो मंत्र- 'ॐ शारवाना-भावाया नम: ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरा, देवसेना मन: कांता कार्तिकेया नामोस्तुते।' पढ़ना चाहिए।

आरती- जय जय आरती
 
जय जय आरती वेणु गोपाला
वेणु गोपाला वेणु लोला
पाप विदुरा नवनीत चोरा
 
जय जय आरती वेंकटरमणा
वेंकटरमणा संकटहरणा
सीता राम राधे श्याम
 
जय जय आरती गौरी मनोहर
गौरी मनोहर भवानी शंकर
साम्ब सदाशिव उमा महेश्वर
 
जय जय आरती राज राजेश्वरि
राज राजेश्वरि त्रिपुरसुन्दरि
महा सरस्वती महा लक्ष्मी
महा काली महा लक्ष्मी
 
जय जय आरती आन्जनेय
आन्जनेय हनुमन्ता
 
जय जय आरति दत्तात्रेय
दत्तात्रेय त्रिमुर्ति अवतार
 
जय जय आरती सिद्धि विनायक
सिद्धि विनायक श्री गणेश
जय जय आरती सुब्रह्मण्य

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