Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

Vivah Panchami 2023: कैसे हुए था प्रभु श्रीराम और सीता का विवाह, पढ़ें विवाह पंचमी की कथा

हमें फॉलो करें Vivah Panchami 2023: कैसे हुए था प्रभु श्रीराम और सीता का विवाह, पढ़ें विवाह पंचमी की कथा
Vivah Panchami : वर्ष 2023 में दिन रविवार, 17 दिसंबर को विवाह पंचमी का पवित्र पर्व मनाया जा रहा है। यह पर्व प्रतिवर्ष अगहन मास यानी मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है, जो कि प्रभु श्रीराम और माता सीता के विवाह की विशेष तिथि मानी गई। 
 
पुराणों में भगवान शिव-पार्वती विवाह, गणेश-रिद्धि-सिद्धि विवाह, श्री विष्णु-लक्ष्मी विवाह, श्री कृष्‍ण रुक्मिणी, सत्यभामा विवाह के साथ ही प्रभु श्रीराम और सीता के विवाह की बहुत चर्चा होती है। इनके विवाह का पुराणों में सुंदर चित्रण मिलता है। प्रभु श्री राम का विवाह मार्गशीर्ष की शुक्ल पंचमी के दिन हुआ था। 
 
यहां जानते हैं कथा-ram sita vivah
 
सीता स्वयंवर : भगवान शिव जी का धनुष बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कारिक था। शिव ने जिस धनुष को बनाया था उसकी टंकार से ही बादल फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे। ऐसा लगता था मानो भूकंप आ गया हो। यह धनुष बहुत ही शक्तिशाली था। इसी के एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया गया था। इस धनुष का नाम पिनाक था। देवी और देवताओं के काल की समाप्ति के बाद इस धनुष को देवराज इन्द्र को सौंप दिया गया था।
 
देवताओं ने राजा जनक के पूर्वज देवराज को दे दिया। राजा जनक के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवराज थे। शिव-धनुष उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था। उनके इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था। इस धनुष को उठाने की एक युक्ति थी। जब सीता स्वयंवर के समय शिव के धनुष को उठाने की प्रतियोगिता रखी गई, तो रावण सहित बड़े-बड़े महारथी भी इस धनुष को हिला भी नहीं पाए थे। फिर प्रभु श्रीराम की बारी आई।
 
श्रीराम चरितमानस में एक चौपाई आती है -
'उठहु राम भंजहु भव चापा, मेटहु तात जनक परितापा। 
 
भावार्थ- गुरु विश्वामित्र जनक जी को बेहद परेशान और निराश देखकर श्रीराम जी से कहते हैं कि- हे पुत्र श्रीराम उठो और 'भव सागर रूपी' इस धनुष को तोड़कर, जनक की पीड़ा का हरण करो।'
 
इस चौपाई में एक शब्द है 'भव चापा' अर्थात् इस धनुष को उठाने के लिए शक्ति की नहीं बल्कि प्रेम और निरंकार की जरूरत थी। यह मायावी और दिव्य धनुष था। उसे उठाने के लिए दैवीय गुणों की जरूरत थी। कोई अहंकारी उसे नहीं उठा सकता था।
 
जब प्रभु श्रीराम की बारी आई तो वे समझते थे कि यह कोई साधारण धनुष नहीं बल्की भगवान शिव का धनुष है। इसीलिए सबसे पहले उन्होंने धनुष को प्रणाम किया। फिर उन्होंने धनुष की परिक्रमा की और उसे संपूर्ण सम्मान दिया। प्रभु श्रीराम की विनयशीलता और निर्मलता के समक्ष धनुष का भारीपन स्वत: ही तिरोहित हो गया और उन्होंने उस धनुष को प्रेमपूर्वक उठाया और उसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और उसे झुकाते ही धनुष खुद ब खुद टूट गया। कहते हैं कि जिस प्रकार सीता शिव जी का ध्यान कर सहज भाव बिना बल लगाए धनुष उठा लेती थी, उसी प्रकार श्रीराम ने भी धनुष को उठाने का प्रयास किया और सफल हुए।
 
यदि मन में श्रेष्ठ के चयन की दृढ़ इच्‍छा है तो निश्‍चित ही ऐसा ही होगा। सीता स्वयंवर तो सिर्फ एक नाटक था। असल में सीता ने राम और राम ने सीता को पहले ही चुन लिया था। मार्गशीर्ष (अगहन) मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को भगवान श्रीराम तथा जनकपुत्री जानकी (सीता) का विवाह हुआ था, तभी से इस पंचमी को 'विवाह पंचमी पर्व' के रूप में मनाया जाता है।
 
राम सीता का विवाह : श्रीराम और देवी सीता का विवाह कदाचित महादेव एवं माता पार्वती के विवाह के बाद सबसे प्रसिद्ध विवाह माना जाता है। इस विवाह की एक और विशेषता यह थी कि इस विवाह में त्रिदेवों सहित लगभग सभी मुख्य देवता किसी ना किसी रूप में उपस्थित थे। कोई भी इस विवाह को देखने का मौका छोड़ना नहीं चाहता था। श्रीराम सहित ब्रह्मर्षि वशिष्ठ एवं राजर्षि विश्वामित्र को भी इसका ज्ञान था। 
 
कहा जाता है कि उनका विवाह देखने को स्वयं ब्रह्मा, विष्णु एवं रूद्र ब्राह्मणों के वेश में आए थे। राजा जनक की सभा में शिव जी का धनुष तोड़ने के बाद श्रीराम का विवाह होना तय हुआ। चारों भाइयों में श्रीराम का विवाह सबसे पहले हुआ। इस विवाह का रोचक वर्णन आपको वाल्मीकि रामायण में मिलेगा। अत: विवाह के समय ब्रह्मर्षि वशिष्ठ एवं राजर्षि विश्वामित्र उपस्थित थे। दूसरी ओर सभी देवी और देवता भी विभिन्न वेश में उपस्थित थे। चारों भाइयों में श्रीराम का विवाह सबसे पहले हुआ।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

धनु संक्रांति पर करें ये 5 प्रकार के दान, किस्मत खुल जाएगी