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मार्गशीर्ष पूर्णिमा का महत्व, कथा और पूजा विधि

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WD Feature Desk

, शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024 (15:03 IST)
Margashirsha Purnima:श्रीमदभागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि महीनों में मैं मार्गशीर्ष का पवित्र महीना हूं। इस माह में आने वाली पूर्णिमा को मार्गशीर्ष पूर्णिमा कहते हैं। मार्गशीर्ष माह को दान पुण्य का महीना माना जाता है। इसमें भी एकादशी, अमावस्या और पूर्णिमा का खास महत्व है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर भगवान दत्तात्रेय, माता अन्नपूर्णा, माता त्रिपुर भैरवी की जयंती रहती है। इसलिए इस दिन तोनों की ही कथा पढ़ने का प्रचलन है। हालांकि व्रत कथा माता अन्नपूर्णा से जुड़ी हुई है। इस बार मार्गशीर्ष पूर्णिमा का व्रत 15 दिसंबर को रखा जाएगा। आओ जानते हैं व्रत की कथा, महत्व और पूजा विधि।ALSO READ: मार्गशीर्ष माह के हिंदू व्रत और त्योहारों की लिस्ट
 
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का महत्व:-
पुराणों में इस दिन स्नान, दान और तप का विशेष महत्व बताया गया है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन हरिद्वार, बनारस, मथुरा और प्रयागराज आदि जगहों पर श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान और तप करते हैं। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने का महत्व है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन हरिद्वार, बनारस, मथुरा और प्रयागराज आदि जगहों पर श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान और तप आदि करते हैं। इस दिन दान देने का खासा महत्व है। किसी जरूरतमंद को वस्त्र, भोजन आदि का यथाशक्ति दान करें। इस दिन किए जाने वाले दान का फल अन्य पूर्णिमा की तुलना में 32 गुना अधिक मिलता है, इसलिए इसे बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है। पौराणिक मान्याताओं के अनुसार मार्गशीर्ष माह से ही सतयुग काल आरंभ हुआ था। इस दिन तुलसी की जड़ की मिट्टी से पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा मिलती है। इस भगवान सत्यनारायण की पूजा करना और कथा सुनने का महत्व है। यह परम फलदायी बताई गई है।ALSO READ: हिंदू कैलेंडर के अनुसार मार्गशीर्ष माह की 20 खास बातें
 
मार्गशीर्ष पूर्णिमा की पूजा विधि:-
1. इस पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनाराण की पूजा की जाती है। 
 
2. प्रातःकाल उठकर भगवान का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें।
 
3. स्नान के बाद सफेद कपड़े पहनें और फिर आचमन करें।
 
4. इसके बाद ऊँ नमोः नारायण कहकर श्रीहरि का आह्वान करें।
 
5. सत्यनारायण भगावन के चित्र या तस्वीर को पाट पर स्थापित करके आसन, गंध और पुष्प आदि भगवान को अर्पण करें।
 
6. भगवान को पंचामृत और नैवेद्य अर्पित करें और उनकी आरती उतारें।
 
7. इसके बाद भगवान सत्यनाराण की कथा सुनें।
 
8. आप चाहे तो हवन भी कर सकते हैं। हवन में तेल, घी और बूरा आदि की आहुति दें।
 
9. रात्रि को भगवान नारायण की मूर्ति के पास ही शयन करें।
 
10. व्रत के दूसरे दिन किसी गरीब को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा देकर उन्हें विदा करने के बाद व्रत का पारण करें।
 
मार्गशीर्ष पूर्णिमा की कथा:-
1. एक बार भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन कर रहे थे। देवी लक्ष्मी उनके चरणों को दबा रही थीं। अचानक उनका हाथ हट गया जिससे भगवान विष्णु क्रोधित हो गए और उन्होंने देवी लक्ष्मी को श्राप दिया कि वे पृथ्वी पर एक गरीब स्त्री के रूप में जन्म लेंगी। देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से क्षमा मांगी और कहा कि वे भी उनके साथ पृथ्वी पर जन्म लेंगी। भगवान विष्णु ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और उन्होंने भी पृथ्वी पर राजा राम के रूप में जन्म लिया। देवी लक्ष्मी सीता के रूप में उनकी पत्नी बनीं। इस प्रकार, मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के पुनर्मिलन का प्रतीक है।
 
2. देवी पार्वती और भगवान शिव पासे का खेल खेल रहे थे। खेल में भगवान शिव अपना सब कुछ हार गए। हारने के बाद वे भगवान विष्णु के पास गए और उन चीज़ों को वापस पाने का रास्ता पूछा, जो वे हा गए थे। इस पर भगवान विष्णु ने उन्हें बताया कि भौतिक चीजों का मोह क्या करना यह तो सभी सांसारिक एक भ्रम थीं। विष्णुजी की यह बाततें सुनरक माता पार्वती बहुत क्रोधित हुईं क्योंकि वह भौतिक सुख-सुविधाओं को प्रदान करने वाली देवी हैं। इसलिए उन्होंने तत्काल प्रभाव से संसार की भौतिक वस्तुओं को निष्प्रभावी कर दिया। इससे संसार में भारी अराजकता फैल गई। सभी को संसाधनों की कमी और भोजन की कमी का सामना करना पड़ा। 
 
3. यह देखकर शिवजी ने ब्राह्मण बनकर माता से भिक्षा मांगी चूंकि मां पार्वती मातृ प्रेम का अवतार हैं, इसलिए उन्होंने भिक्षा दे दी। शिवजी ने उसी भिक्षा से संसार का भरण भोषण किया। बाद में माता को सभी पर दया आ गई। वह अपने बच्चों को कष्ट में नहीं देख सकती थीं। इसलिए, उन्होंने देवी अन्नपूर्णा का रूप धारण किया और पृथ्वी पर जाकर जिसे भी आवश्यकता हुई उसे भोजन वितरित किया। यही कारण है कि लोग मार्गशीर्ष व्रत रखते हैं ताकि उन्हें हमेशा प्रचुरता और पोषण मिले।
 
4. एक अन्य कथा के अनुसार एक राजा था जिसका विवाह रानी सत्यवती से हुआ। देवताओं के श्राप के कारण सत्यवती नदी में बदल गयी। धीरे धीरे वह बरसाती नदी बन गई। वह एक सूखी नदी थी जो कई वर्षों से जलविहीन थी। हालांकि वह भगवान विष्णु की सच्ची भक्त थीं। इसलिए उसने बड़े समर्पण के साथ प्रार्थना की। इससे भगवान विष्णु प्रसन्न होकर नदियों के जल के रूप में उसके पास आए और सत्यवती को आशीर्वाद देकर श्राप से मुक्त किया। यही कारण है कि लोग मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर पवित्र नदियों में डुबकी लगाते हैं।

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