भाद्रपद अमावस्या का महत्व:- अमावस्या तिथि को पितरों की तिथि माना जाता है। इसलिए इस दिन स्नान, दान, तर्पण और पिंडदान का महत्व है। अमावस्या तिथि पर शनिदेव का जन्म भी हुआ था। इसलिए यह दिन शनि दोष और कालसर्प दोष से मुक्ति का दिन भी है। भाद्रपद का माह श्रीकृष्ण का माह है। इसलिए इस माह और अमावस्या पर कृष्ण पूजा का भी महत्व है। इस दिन सूर्य ग्रहण भी हो तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
भाद्रपद अमावस्या का धार्मिक कर्म:-
1. पितरों की शांति के लिए नदी तट पर स्नान के बाद तर्पण और दान कर्म करते हैं।
2. इस दिन धार्मिक कार्यों के लिए पवित्रा या कुश का आसान बनाने के लिए कुशा घास एकात्रित करते हैं या बने बनाए खरीदते हैं। इसलिए इसे कुशोत्पाटिनी या कुशग्रहणी अमावस्या कहा जाता है।
3. इस दिन सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद बहते जल में तिल प्रवाहित करते हैं।
4. इस दिन तर्पण और पिंडदान के बाद किसी गरीब व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर दान-दक्षिणा देते हैं।
5. इस दिन शनि दोष और कालसर्प दोष निवारण के लिए पूजा-अर्चना भी की जा सकती है।
6. इस दिन शाम के समय पीपल के पेड़ के नीचे सरसो के तेल का दीपक लगाकर 7 परिक्राम करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती है और यदि पितरों को स्मरण किया जाए तो वे भी प्रसन्न होते हैं।