Shri Radha Ashtami 2023: श्रीराधा रानी का खास मंदिर ब्रज मंडल के बरसाना में स्थित है। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को श्रीकृष्ण और शुक्ल पक्ष की अष्टमी को श्रीराधा का जन्म दिवस रहता है। राधा जी श्री कृष्ण की प्रेयसी थी। आओ जानते हैं उनके बारे में दिलचस्प 5 तथ्य, जिन्हें जानकार आप हैरान रह जाएंगे।
1. भगवान श्रीकृष्ण से श्री राधा लगभग 5 वर्ष बड़ी थी। बड़ी ही नहीं थी बल्कि वह श्रीकृष्ण से हर कार्य में आगे भी थीं। क्षिण में प्रचलित कथा के अनुसार श्रीराधा ने भगवान श्रीकृष्ण को तब देखा था जबकि माता यशोदा ने उन्हें ओखल से बांध दिया था। श्रीकृष्ण को देखकर श्रीराधा बेसुध सी हो गई थी। उत्तर भारतीय मान्यता अनुसार कहते हैं कि वह पहली बार गोकुल अपने पिता वृषभानुजी के साथ आई थी तब श्रीकृष्ण को पहली बार देखा था। कुछ विद्वानों के अनुसार संकेत तीर्थ पर पहली बार दोनों की मुलाकात हुई थी।
2. वे रानी नहीं एक ग्रामीण महिला थीं लेकिन उन्हें रानी कहते हैं। श्री राधा जी को रानी कहा जाता है जबकि रुक्मिणीजी को माता। दरअसल, श्री राधा एक सिद्ध और संबुद्ध महिला थीं।
3. ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड 2 के अध्याय 49 के श्लोक 39 और 40 के अनुसार राधा जब बड़ी हुई तो उनके माता पिता वृषभानु ने रायाण नामक एक वैश्य के साथ उसका संबंध निश्चित कर दिया। रायाण माता यशोदा का सगा भाई था। उन्हें पहले वृषभानु कुमारी कहा जाता था। गर्ग संहिता के अनुसार एक जंगल में स्वयं ब्रह्मा ने श्रीराधा और श्रीकृष्ण का बचपन में ही गंधर्व विवाह करवाया था। श्रीकृष्ण के पिता उन्हें अकसर पास के भंडिर ग्राम में ले जाया करते थे, जहां राधारानी भी अपने पिता के साथ आती थी। वहीं दोनों का विवाह हुआ था।
4. भगवान श्रीकृष्ण के पास एक मुरली थी जिसे उन्होंने राधा को छोड़कर मथुरा जाने से पहले दे दी थी। राधा ने इस मुरली को बहुत ही संभालकर रखा था और जब भी उन्हें श्रीकृष्ण की याद आती तो वह यह मुरली बजा लेती थीं। श्रीकृष्ण उसकी याद में मोरपंख लगाते थे और वैजयंती माला पहनते थे। श्रीकृष्ण को मोरपंख तब मिला था जब वे राधा के उपवन में उनके साथ नृत्य कर रहे मोर का पंख नीचे गिर गया था तो उन्होंने उसे उठाकर अपने सिर पर धारण कर लिया था और राधा ने नृत्य करने से पहले श्रीकृष्ण को वैजयंती माला पहनाई थी।
5. श्रीराधा राधी की अष्ट सखियां थीं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सखियों के नाम इस तरह हैं- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा। कुछ जगह ये नाम इस प्रकार हैं- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और सुदेवी। कुछ जगह पर ललिता, विशाखा, चम्पकलता, चित्रादेवी, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और कृत्रिमा (मनेली)। इनमें से कुछ नामों में अंतर है। सभी सखियां श्रीकृष्ण और श्रीराधा की सेवा में लगी रहती थीं। सभी के कार्य अलग अलग नियुक्त थे। श्रीधाम वृंदावन में इन अष्टसखियों का मंदिर भी स्थित है।
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