- हरनारायण शुक्ला, मिनियापोलिस, USA
दुर्घटना हुई कार की मेरी,
पहुंच गई वो बॉडी शॉप,
अपनी बॉडी सही सलामत,
ऊपर वाले का था हाथ।
अभिशाप नहीं वरदान था यह,
जान बची हम लाखों पाए,
शॉपिंग करने निकले थे हम,
घर के बुद्धू घर को आए।
कार करोला बनी करेला,
उसकी हालत पे मैं रोया,
इंश्योरेंस का हुआ कबाड़ा,
क्या पाया मैं क्या खोया।
कार चलाते ढूंढ़ रहा था,
नई थीम अगली कविता का,
ठोकर मारी किसी कार ने,
सबक सिखाया दिवा स्वप्न का।
रम नदिया के तट का वासी,
रम का नशा तो होता है,
रमता जोगी कहते हैं,
जो होना है सो होता है।
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