मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम 'चंद्रघंटा' है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। मां के आराधक के शरीर से दिव्य प्रकाशयुक्त परमाणुओं का अदृश्य विकिरण होता रहता है। नवरात्रि की तृतीया पर माता के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा होती है, जानिए 8 रहस्य-
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघंटेति विश्रुता॥
या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे मां! सर्वत्र विराजमान और चंद्रघंटा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं। हे मां, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।
- चंद्र घंटा अर्थात् जिनके मस्तक पर चंद्र के आकार का तिलक है।
- मां चंद्रघंटा का बीज मंत्र है- ऐं श्रीं शक्तयै नम:
- मां चंद्रघंटा को अपना वाहन सिंह बहुत प्रिय है। माता चंद्रघंटा का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है।
- इस दिन हल्का भूरा रंग या गोल्डन रंग के कपड़े पहनना शुभ है।
- तृतीया को दूध से अभिषेक व दूध की वस्तु चढ़ाने से दुख से मुक्ति मिलती है।
- माता के तीन नैत्र और दस हाथ हैं। हाथों में कर-कमल गदा, बाण, धनुष, त्रिशूल, खड्ग, खप्पर, चक्र आदि अस्त्र शस्त्र हैं।
- मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक के सभी पाप व बाधाएं खत्म हो जाते हैं और वह पराक्रमी एवं निर्भय हो जाता है।
- इस दिन सांवली रंग की ऐसी विवाहित महिला जिसके चेहरे पर तेज हो, को बुलाकर उनका पूजन करना चाहिए। भोजन में दही और हलवा खिलाएं। भेंट में कलश और मंदिर की घंटी भेंट करना चाहिए।