Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

सर्वेक्षण के लिए जाति विवरण देने में हर्ज क्या है? : सुप्रीम कोर्ट

हमें फॉलो करें supreme court
नई दिल्ली , शुक्रवार, 18 अगस्त 2023 (21:55 IST)
Caste-based census in Bihar: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को पूछा कि अगर कोई व्यक्ति बिहार में जातिगत सर्वेक्षण के दौरान जाति या उप-जाति का विवरण प्रदान करता है तो इसमें क्या नुकसान है, यदि किसी व्यक्ति का डेटा राज्य सरकार की ओर से प्रकाशित नहीं किया जाएगा।
 
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एसवी एन भट्टी की पीठ ने पटना उच्च न्यायालय के एक अगस्त के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शुक्रवार को सुनवाई शुरू की, जिसमें जातिगत सर्वेक्षण को अनुमति प्रदान की गई थी। इनमें से कुछ याचिकाओं में दावा किया गया है कि यह सर्वेक्षण लोगों की निजता के अधिकार का उल्लंघन है।
 
पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा सवाल : पीठ ने गैर-सरकारी संगठन 'यूथ फॉर इक्वेलिटी' की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन से पूछा कि अगर कोई अपनी जाति या उपजाति का नाम देता है और यदि वह डेटा प्रकाशित नहीं किया जाता है, तो (इसमें) नुकसान क्या है। जो जारी करने की बात की जा रही है, वह केवल संचयी आंकड़े हैं। यह निजता के अधिकार को कैसे प्रभावित करता है? सर्वेक्षण के लिए तैयार प्रश्नावली में ऐसे क्या सवाल हैं, जिससे आपको लगता है कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के विपरीत है।
 
यह एनजीओ उन याचिकाकर्ताओं में से एक है, जिन्होंने जातिगत सर्वेक्षण कराने के बिहार सरकार के फैसले को चुनौती दी है। बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने सुनवाई की शुरुआत में कहा कि जातिगत सर्वेक्षण 6 अगस्त को पूरा हो गया था और एकत्रित डेटा 12 अगस्त तक अपलोड किया गया था।
 
नोटिस जारी करने से इंकार : पीठ ने दीवान से कहा कि वह याचिकाओं पर नोटिस जारी नहीं कर रही है, क्योंकि तब अंतरिम राहत के बारे में सवाल उठेगा और सुनवाई नवंबर या दिसंबर तक टल जाएगी। याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व कर रही वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कहा कि उन्हें पता है कि प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, लेकिन डेटा के प्रकाशन पर रोक लगाने को लेकर वह बहस करेंगी।
 
पीठ ने कहा कि वह तब तक किसी चीज पर रोक नहीं लगाएगी जब तक कि प्रथम दृष्टया कोई मामला न बन जाए, क्योंकि उच्च न्यायालय का फैसला राज्य सरकार के पक्ष में है। पीठ ने वकील से कहा कि चाहे आप इसे पसंद करें या नहीं, डेटा अपलोड कर दिया गया है। सर्वेक्षण के दौरान जो डेटा एकत्र किया गया है, उसे ‘बिहार जाति आधारित गणना’ ऐप पर अपलोड किया गया है।
 
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि दुर्भाग्य से बिहार में आमतौर पर पड़ोसियों को किसी व्यक्ति की जाति का पता चल जाता है, हालांकि दिल्ली जैसे शहर में ऐसी स्थिति नहीं है। वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह के यह कहने के बाद कि उन्हें अपनी बात रखने के लिए समय चाहिए, पीठ ने सुनवाई 21 अगस्त के लिए स्थगित कर दी।
 
शीर्ष अदालत ने सात अगस्त को जातिगत सर्वेक्षण को हरी झंडी देने के पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। गैर सरकारी संगठनों 'यूथ फॉर इक्वेलिटी' और 'एक सोच एक प्रयास' द्वारा दायर याचिकाओं के अलावा एक और याचिका नालंदा निवासी अखिलेश कुमार ने दायर की है, जिन्होंने दलील दी है कि इस सर्वेक्षण के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना संवैधानिक जनादेश के खिलाफ है।
 
कुमार की याचिका में कहा गया है कि संवैधानिक जनादेश की दृष्टि से केवल केंद्र सरकार ही जनगणना कराने के लिए अधिकृत है। (एजेंसी) 
Edited by: Vrijendra Singh Jhala

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

भाजपा में चला सिर्फ एक मापदंड, जो जीत सकता है उसे दे दिया टिकट