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121 साल पुराने कानून को रिप्‍लेस करेगा ‘मोदी का नया बिल’, फिर भी क्‍यों हो रहा विरोध

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नवीन रांगियाल

केंद्र सरकार आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक- 2022 लेकर आई है। सोमवार को लोकसभा में यह बिल ध्‍वनि मत के साथ पास भी हो गया है। विपक्ष की मांग पर अब इस बिल को जांच के लिए पार्लियामेंट्री कमेटी या सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाएगा।

मोदी सरकार का लाया यह नया बिल 120 साल पुराने अपराधियों के पहचान कानून- 1920 की जगह लेगा। इसमें पुलिस द्वारा अपराधियों को गिरफ्तार करने के तौर तरीकों में पूरी तरह से बदलाव आ जाएंगे। अब जबकि यह नया बिल आएगा तो पुराने से कैसे अलग होगा, दोनों में क्‍या फर्क है और अब ऐसा क्‍या होगा जो पहले वाले बिल के नियमों के तहत नहीं किया जा सकता था।

आइए जानते हैं आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक के बारे में वो सबकुछ जिसे आपको जानना जरूरी है।

सबसे पहले जानते हैं कि आखिर क्या है आपराधिक पहचान विधेयक 2022?

क्‍या है नये बिल में?
केंद्र सरकार द्वारा लाए गए इस नए अधिनियम के मुताबिक सरकार आदतन अपराधियों, गिरफ्तार आरोपियों और मुजरिमों के बारे में पहले से ज्यादा जानकारी या डेटा जुटा पाएगी।

इस विधेयक से पुलिस और जेल अधिकारियों के अधिकारों में इजाफा हो जाएगा। पुलिस अब गिरफ्तार किए गए लोग, हिरासत में लिए गए आरोपी और अपराधियों के रेटिना, आईरिस स्कैन के बायोलॉजिकल सैंपल लेकर उसकी जांच कर सकेगी।

इसके पहले वाले 1920 के पुराने कानून में मजिस्ट्रेट के आदेश से ही अपराधियों के फिंगरप्रिंट, फुटप्रिंट, और तस्वीरें लेने का प्रावधान था। हालांकि विपक्ष, मानवाधिकारके वकील और एक्‍टिविस्‍ट इस बिल का विरोध कर इसे असंवैधानिक बता रहे हैं।

पुलिस कैसे जुटाएगी डेटा?
पहले पुलिस अधिकारियों के पास अपराधी और गैर अपराधी लोगों के डेटा के रूप में फिंगरप्रिंट इंप्रैशन, फुटप्रिंट इंप्रैशन और तस्वीरें ही होती थीं। अब इस नए विधेयक के बाद पुलिस के पास ये अधिकार होगा कि वह सजायाफ्ता या किसी भी आरोप में गिरफ्तार व्यक्ति के शरीर का नाप भी ले सकेगी। इसमें आरोपी का फिंगर प्रिंट, फुट प्रिंट के साथ रेटीना का नमूना (Samples Of Retina), फोटो, ब्ल़ड सैंपल और हस्ताक्षर (Blood Samples And Handwriting) भी लिए जा सकते हैं। हालांकि ऐसा करने से पहले पुलिस को मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी होगी।\

कैसे पुराने विधेयक से है अलग?
पुराने विधेयक से ये नया बिल अलग होगा। पुराने कानून के तहत, सिर्फ उन लोगों का डेटा जुटाया जाता था जो या तो अपराधी घोषित हो चुके हों या जिन्हें किसी जुर्म में गिरफ्तार किया गया हो और एक साल जेल की सजा सुनाई गई हो।
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नए विधेयक के तहत, पुलिस को ये अधिकार होगा कि वह किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराए या गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का डेटा ले सकती है। हालांकि बायोलॉजिकल सैंपल लेने के लिए पुलिस उन्हीं अपराधियों पर दवाब बना सकती है जो महिला या बच्चों के खिलाफ किए अपराध के दोषी हों या ऐसे अपराधी जो सात साल जेल की सजा काट चुके हों।

नए बिल में ये भी प्रावधान है कि अगर व्यक्ति जानकारी देने से मना करता है तो पुलिस के पास ये अधिकार होगा कि वह जबरन उस व्यक्ति से जानकारी निकलवाए जिसे कार्यपालिका द्वारा बाद में निर्धारित किया जा सकता है।

75 साल तक सुरक्षित रहेगा डेटा
अब सवाल यह भी है कि एक बार डेटा लेने के बाद वो कहां रहेगा और कितने समय तक सुरक्षित रह सकता है। नए बिल में यह प्रावधान है कि अपराधियों का डेटा 75 साल तक सुरक्षित रहेगा। डेटा को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो की होगी।

नया बिल: क्‍या है सरकार का मकसद
गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में बिल पेश करते हुए ये बात कही कि सरकार वह हर जरूरी कदम उठाएगी, जिससे इस कानून का दुरुपयोग न हो। बिल पास होने से पहले गृह मंत्री ने कहा कि हम ये भरोसा दिलाते हैं कि जांच अधिकारी अपराधियों से दो कदम आगे रहेंगे। उन्होंने विपक्ष से कहा कि जो लोग मानवाधिकार की दुहाई दे रहे हैं वह जरा पीड़ित के अधिकारों के बारे में चिंता करते तो बेहतर होता।

अमित शाह ने कहा कि बिल का मकसद सबूतों को मजबूत करने में मदद करना है। इसलिए जांच के तरीकों में बदलाव लाना जरूरी है। उन्होंने आगे कहा कि सरकार का इस बिल को लाने का एकमात्र मकसद दोषीसिद्ध दर को बढ़ाना है और अच्‍छा कानून तभी माना जाएगा जब अपराधियों को सजा दी जाएगी।
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विपक्ष, एक्‍टिविस्‍ट क्‍यों कर रहे विरोध?
विपक्ष, मानवाधिकार वकील और एक्‍टिविस्‍ट इस नए विधेयक के खिलाफ हैं। कांग्रेस, डीएमके, टीएमसी इसे संविधान के अनुच्छेद 14,19 और 21 का उल्लंघन बता रहे हैं।

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि ये बिल कठोर और नागरिक सुविधा के खिलाफ है। यह बिल संविधान के आर्टिकल 14,19, और 21 का उल्लंघन है। मनीष तिवारी ने कहा कि विधेयक के प्रावधान बहुत अस्पष्ट हैं। इससे राज्य और पुलिस की तरफ से दुरुपयोग करने का खतरा है।

डीएमके के दयानिधि मारन ने कहा कि बिल लोगों के खिलाफ लाया गया है और यह संघवाद की भावना के खिलाफ है और खुले तौर पर लोगों की निजता का हनन है।

टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा कि यह बिल 1920 के आपराधियों की पहचान कानून की जगह लाया गया है। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि जो डेटा एकत्र किया जा रहा है उनकी सुरक्षा ठीक तरह से हो रही है अथवा नहीं। मोइत्रा ने कहा कि विधेयक निजता का उल्लंघन है।

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