नई दिल्ली। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो भारत की यात्रा पर हैं। भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर पॉम्पियो की यात्रा बहुत अहम मानी जा रही है। लोकसभा चुनाव 2019 में मिली जीत के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जापान में होने वाले G-20 समिट में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात करेंगे। भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समेत अन्य मुद्दों पर द्विपक्षीय रिश्तों को लेकर अमेरिकी विदेश मंत्री की यह यात्रा महत्वपूर्ण है। माइक पॉम्पियो ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की। जानते हैं माइक पॉम्पियो की भारत यात्रा के मायने-
रूस के साथ हुए एस-400 समझौते पर अमेरिका का रुख : भारत ने पिछले वर्ष अक्टूबर में 40 हजार करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने के लिए रूस के साथ एक समझौता किया था। भारत इसके खिलाफ अमेरिका की चेतावनियों के बावजूद यह समझौता करने के लिए आगे बढ़ा। एस-400 समझौते के साथ आगे बढ़ने के लिए ‘काउंटरिंग अमेरिकाज ऐडवरसरीज थ्रू सैंक्शन्स एक्ट’ (काटसा) के तहत भारत द्वारा प्रतिबंधों का सामना करने की संभावना के मुद्दे पर पोम्पिओ ने कहा कि वे इस समय मुद्दे हैं, लेकिन हम उनके माध्यम से काम करने का एक तरीका खोज लेंगे और मुझे पता है कि जब हम दूसरी तरफ आएंगे तो संबंध और मजबूत होंगे।
आतंकवाद से लड़ाई में अमेरिका का साथ : अमेरिकी विदेश मंत्री पोम्पिओ ने कहा कि आतंकवाद के मामले में भारत का अपना अनुभव बहुत वास्तविक है और हम इसे जानते हैं। श्रीलंका में गिरजाघरों में हुए विस्फोटों से पता चलता है कि इस क्षेत्र में आतंकवाद का खतरा लगातार बना हुआ है और भारत की इससे लड़ने की क्षमता किसी से भी कम नहीं है। हमारी टीम आतंकवाद से लड़ने की भारत की क्षमता को मजबूत करने के लिए खुफिया जानकारी को बेहतर ढंग से साझा करने के लिए मिलकर काम करना जारी रखेगी।
अमेरिकी-ईरान तनाव : जयशंकर और पोम्पिओ ने ईरान से तेल खरीदने पर अमेरिकी प्रतिबंधों और खाड़ी में अमेरिका-ईरान तनाव के मद्देनजर पैदा हुई स्थिति के मद्देनजर ऊर्जा सुरक्षा के मुद्दे पर भी चर्चा की। भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि ईरान पर हमारा एक निश्चित दृष्टिकोण है।
अमेरिकी विदेश मंत्री ने मेरे साथ ईरान पर अमेरिकी चिंताओं को साझा किया। हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि वैश्विक ऊर्जा की आपूर्ति अनुमान के अनुसार बनी रहे। पोम्पिओ के इस बयान से यह समझा जा सकता है कि भारत द्वारा ईरान से तेल खरीदने को लेकर अमेरिका रुख का नरम है।