नई दिल्ली, (इंडिया साइंस वायर) भारत में साल के औसतन 300 दिन प्रखरता से रहने वाली सूर्य की रोशनी और अन्य अनुकूल पहलू उसे इस स्वच्छ एवं अक्षय ऊर्जा के प्रमुख वैश्विक केंद्र के रूप में उभरने का अवसर प्रदान करते हैं।
उर्जा के सन्दर्भ में पिछली सदी हाइड्रोकार्बन यानी पेट्रोलियम उत्पादों की रही, जिसने वैश्विक अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी है। इस दौरान दुनिया ने द्रुत गति से प्रगति की है। पर, इस प्रगति की एक बहुत बड़ी कीमत प्रदूषण एवं पर्यावरणीय अपकर्षण के रूप में चुकानी पड़ी है।
पेट्रोलियम क्रांति ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक विषमता का एक नया संसार भी गढ़ा है। इसने पेट्रोलियम संसाधनों से संपन्न देशों को धनवान बनाया, तो दूसरी ओर इनसे विपन्न देशों को उन देशों पर निर्भर बना दिया। इसने उन विपन्न देशों पर आर्थिक बोझ भी बढ़ा दिया। अब यह परिदृश्य बदलता दिख रहा है। भारत सरकार, वैकल्पिक उर्जा के अक्षय और नवीकर्णीय स्रोतों के विकास को निरंतर आगे बढ़ाने में जुटी है। ये गैर-पारंपरिक ऊर्जा संसाधन न केवल स्वच्छ हैं, बल्कि देश को आत्मनिर्भर बनाने के दृष्टिकोण से भी निर्णायक रूप से महत्वपूर्ण हैं।
अक्षय ऊर्जा के इन स्रोतों में सौर ऊर्जा एक आकर्षक और संभावनापूर्ण विकल्प के रूप में उभरी है। इस दिशा में प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर फ्रांस के सहयोग से भारत ने 'अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन' की नींव रखी। इसमें सम्मिलित करीब 121 देश जीवाश्म ईंधनों से इतर ऊर्जा के विकल्पों को अपनाने के लिए एकजुट हुए हैं। इस सौर गठबंधन पहल पर वर्ष 2030 तक विश्व में सौर ऊर्जा के माध्यम से विश्व में 1 ट्रिलियन वाट यानी 1000 गीगावाट ऊर्जा-उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। एक गीगावाट में 1000 मेगावाट होते हैं। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि सौर ऊर्जा के माध्यम से ऊर्जा के मोर्चे पर एक नई क्रांति की आधारशिला रखने के ठोस प्रयास आकार लेने लगे हैं।
सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत विश्व के एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभर रहा है। इसी कड़ी में विगत 26 नवंबर को भारत ने तृतीय "वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा निवेश बैठक और एक्सपो" (रीइन्वेस्ट-2020) का आयोजन किया। इस ऑनलाइन आयोजन का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी ने किया था। सम्मेलन में नवीकरणीय ऊर्जा से जुड़े 80 से अधिक देशों के प्रतिभागियों ने भाग लिया और उन्होंने सौर ऊर्जा सहित अक्षय ऊर्जा के स्रोतों की संभावनाओं को भुनाने के लिए पुनः अपना संकल्प व्यक्त किया।
सूर्य की रोशनी ही सौर-ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। इस दृष्टि से भारत भाग्यशाली है। यहां वर्ष के औसतन 300 दिन सूर्य की रोशनी में नहाए होते हैं। इस पैमाने पर भारत, विश्व के ध्रुवीय देशों, विषुवत-रेखीय और उन अन्य भौगोलिक प्रदेशों की तुलना में बेहतर स्थिति में है, जहां सूर्य की रोशनी इतनी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होती। एक मोटे अनुमान के अनुसार भारत के भौगोलिक भाग पर पांच हजार लाख किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर के बराबर सौर ऊर्जा आती है। वहीं, एक मेगावाट सौर ऊर्जा के लिए करीब तीन हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता होती है। इस दृष्टिकोण से भारत में सौर ऊर्जा के मोर्चे पर विपुल संभावनाएं हैं। समय के साथ सौर ऊर्जा की लागत में भी कमी आयी है। आंकड़ें स्वयं इसकी पुष्टि करते हैं। वर्ष 2016 में 4.43 की दर वाली सौर यूनिट अब 2.24 रुपये पर आ गई है।
देश में गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में सौर ऊर्जा क्रांति की जमीन तैयार हो रही है। इसमें सरकार और निजी क्षेत्र बराबर भागीदारी कर इस संभावना को भुनाने में जुटा है। कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री मोदी ने मध्यप्रदेश के रीवा में सौर ऊर्जा अल्ट्रा मेगा पार्क को राष्ट्र के नाम समर्पित किया है।
करीब 700 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता वाला यह एशिया का सबसे बड़ा एकल सोलर पार्क है। इसके साथ एक उपलब्धि यह भी जुड़ी है कि इसे दो वर्ष से कम की अवधि में तैयार किया गया है, जो देश में सौर ऊर्जा के मोर्चे पर बढ़ती क्षमताओं का जीवंत प्रतीक बन गया है। इसी प्रकार देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर, गुजरात में कच्छ, तमिलनाडु में कामुती, राजस्थान में मथानिया, हिमाचल में ऊना और बिलासपुर जैसी तमाम सौर ऊर्जा परियोजनाओं के माध्यम से सौर ऊर्जा उत्पादन की मुहीम मजबूती से आगे बढ़ रही है।
आज भारत की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़कर 36 प्रतिशत हो गई है। केवल बीते छह बर्षों में ही यह ढाई गुना बढ़ी है, और इसमें सौर ऊर्जा का योगदान 13 गुना तक बढ़ा है। बीते छह वर्षों में इस क्षेत्र में आया साढ़े चार लाख करोड़ से अधिक का निवेश दर्शाता है कि उद्यमियों को भी भारत के भविष्य की झलक अक्षय-सौर ऊर्जा में ही दिख रही है।
प्रदूषण से निपटना और पर्यावरण संरक्षण इस समय वैश्विक विमर्श का एक प्रमुख विषय है। अक्षय ऊर्जा के माध्यम से भारत वैश्विक पर्यावरणीय संकट के समाधान में भी निर्णायक भूमिका निभा रहा है। इस समय भारत अक्षय ऊर्जा उत्पादक विश्व के शीर्ष तीन देशों में शामिल है। अकेले रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर परियोजना से लगभग 15.7 लाख टन कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन रोका गया है। यह धरती पर ढाई करोड़ से अधिक पेड़ लगाने के समतुल्य है।
भारत सरकार ने राष्ट्रीय सोलर मिशन लागू कर नीतिगत दिशा में भी सौर ऊर्जा को प्रोत्साहन देने की औपचारिक पहल की है। केंद्र सरकार के अनुमान के अनुसार वर्ष 2030 तक भारत में अक्षय ऊर्जा की भागीदारी 40 प्रतिशत और वर्ष 2035 तक 60 फीसदी हो सकती है। इस वर्ष अक्तूबर तक मिले आंकड़ों के अनुसार 3,73,436 मेगावाट के कुल राष्ट्रीय बिजली उत्पादन में अक्षय ऊर्जा के स्रोतों का 89,636 मेगावाट का योगदान रहा।
प्रधानमंत्री मोदी ने इसके लिए ऊंचे लक्ष्य तय किए हैं। इसके अंतर्गत, वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट और वर्ष 2035 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन करने का लक्ष्य है। यदि यह लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार को आशातीत अनुपात में बढ़ाने की प्रक्रिया को गति देगा। इस पहल से विकास, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के मोर्चों पर अनुकूल परिणाम प्राप्त होने की संभावना बढ़ गई है।