Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

जो खुदा के हैं अब... वो राहत इंदौरी अवाम के भी शायर थे

हमें फॉलो करें rahat indori
webdunia

नवीन रांगियाल

शायर सबका होता है, होशमंदों का भी और रिंदों का भी। वो खुदा का भी होता है और आशि‍कों का भी। उसकी शायरी हर अवाम के लिए होती है। आम के लिए भी और खास के लिए भी। जब मुहब्‍बत होती है तो आशि‍क की जबान पर शायरी रवां होती है, जब मुहब्‍बत नहीं होती है तो उसके दर्दों में भी शायरी होती है।

ठीक उसी तरह शायर भी किसी एक का नहीं होता, वो सबका होता है, अवाम का भी और खुदा का भी। यहां का भी, वहां का भी। इस दौर का भी और उस दौर का भी।

शायर राहत इंदौरी अब खुदा के हैं। ...और यह राहत की बात नहीं है। जो सबसे ज्‍यादा राहत की बात है वो यह है कि वे अपने पीछे अदब की इतनी बड़ी मिल्‍कियत छोड़ गए हैं कि उसे महफिलों में गाते-गुनगुनाते एक कई शामें और सहरें गुजर जाएगीं। उनके शेर कहते-सुनते कई जवान सामईन (श्रोता) और आशिक बूढ़े हो जाएंगे। उनके नहीं होने पर भी वाह... वाह की दाद सुनाई आती रहेगी।

शायद इसलिए राहत ने खुद अपने लिए यह शेर कहा होगा,
अब ना मैं हूं न बाकी है जमाने मेरे
फि‍र भी मशहूर हैं शहरों में फसाने मेरे

ऐसा नहीं है कि राहत इंदौरी शाइरी और अदब की दुनिया में सबसे बड़ा नाम थे। उनका एक कद था और वे बड़े होते जा रहे थे। यहां फैज भी हुए और फराज भी हुए। मुनीर नियाजी भी हुए और गुलजार भी हुए। लेकिन राहत के कहन और उनके अंदाज ने उन्‍हें ज्‍यादा मशहूर किया।

पूरे मंच को घेर कर बेतकल्‍लूफ खड़े होकर वे ऊपर आसमान में जैसे किसी रोशनदान, किसी खि‍ड़की की तरफ देखते थे। जैसे वहां लिखा कोई शेर वे पढ़ रहे हो। मिसरा पढ़ने के बाद वे मतला पढ़ने के लिए एक लंबा पॉज लेते थे, जैसे कुछ भूल गए या कुछ याद कर रहे हों। उनके इसी अंदाज ने नए सामईन को उनका मुरीद बनाया।

आशि‍कों की जबान में बोले गए उनके शेर को सबसे ज्‍यादा दाद मि‍ली। लेकिन एक वक्‍त ऐसा भी आया जब उन्‍होंने कहा,

हिंदुस्‍तान किसी के बाप का नहीं...

उनके इस लहजे को अवाम ने हिंदू-मुस्‍लिम का फर्क समझ लिया। या शायद यह शेर पढ़ने का उनका वक्‍त गलत था। वे विवादों में भी रहे, ट्रोल भी हुए। हालांकि उन्‍होंने यह भी लिखा कि...

दुश्‍मनी दिल की पुरानी चल रही है जान से, ईमान से
ते-लते जिंदगी गुजरी है बेईमान से, ईमान से
ऐ वतन, इक रोज तेरी खाक में खो जाएंगे, सो जाएंगे
मर के भी रिश्‍ता नहीं टूटेगा हिंदुस्‍तान से, ईमान से

वे अपनी रूमानियत में पूरी नफासत के साथ शेर भी लिखते गए। दि‍न ब दिन लोग उनके मुरीद भी बनते गए। महफि‍लों की मदद से वे सुनकारों का कारवां भी तैयार करते रहे।

उनके जाने पर अदब और शाइरी के प्रति उनकी मुहब्‍बत पर उनका लिखा यह शेर भी मौजूं तो है...

दो गज ही सही ये मेरी मि‍ल्‍क‍ियत तो है
ऐ मौत तूने मुझे जमींदार कर दिया

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Google सर्च पर नया फीचर, बनाएं अपना वर्चुअल विजिटिंग कार्ड