नई दिल्ली। गृहमंत्री अमित शाह ने विपक्षी दल कांग्रेस पर धर्म के आधार पर देश के विभाजन का आरोप लगाते हुए सोमवार को लोकसभा में कहा कि यदि वह ऐसा नहीं करती तो सरकार को नागरिकता (संशोधन) विधेयक आज सदन में नहीं लाना पड़ता।
शाह ने विधेयक सदन में पेश करने से पहले विपक्षी दलों की आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा कि जब आजादी मिली तब धर्म के आधार पर कांग्रेस पार्टी देश का विभाजन नहीं करती तो इस विधेयक की जरूरत नहीं होती।
उनके इतना कहते कांग्रेस तथा कई अन्य दलों के सदस्य अपने-अपने स्थान पर खड़े होकर जोर-जोर से कुछ बोलने लगे। इस पर शाह ने अपना आरोप एक बार फिर दोहराते हुए कहा- 'हां, धर्म के आधार पर देश का विभाजन कांग्रेस पार्टी ने किया।'
उन्होंने कहा कि यह विधेयक तर्कसंगत वर्गीकरण के आधार पर लाया गया है। इसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख, पारसी और ईसाई संप्रदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का विशेष प्रावधान इसलिए किया गया है क्योंकि ये तीनों देशों में संविधान के तहत इस्लाम को राष्ट्रीय धर्म घोषित किया गया है और वहां अन्य संप्रदायों के लोगों को प्रताड़ित किया जाता है।
गृहमंत्री ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच 1950 में नेहरू-लियाकत समझौता हुआ था जिसमें दोनों देशों ने अपने यहां अल्पसंख्यकों के संरक्षण का आश्वासन दिया था। हमारे यहां उसका पालन किया गया, लेकिन पाकिस्तान और बाद में पाकिस्तान से बने बांग्लादेश में उन पर अत्याचार किया गया।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में आज भी धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार जारी है। इसलिए धार्मिक रूप से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए यह विधेयक लाया गया है।