नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय के बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की अनुमति देने से कर्नाटक संकट पर कानूनी लड़ाई का पहला दौर भले ही भाजपा के पक्ष में गया हो, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अंतिम जीत सदन के पटल पर बहुमत साबित करने पर ही होगी।
वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी, विकास सिंह, जाने-माने संवैधानिक मामलों के वकील गोविंद गोयल जैसे विशेषज्ञों ने कहा कि ऐसे में जब राज्यपाल ने येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का वक्त दिया है, सारी नजरें अब उच्चतम न्यायालय पर होंगी कि वह कैसे इस स्थिति से निपटती है। कांग्रेस- जद (एस) गठबंधन ने इसकी आलोचना करते हुए कहा था कि इससे विधायकों की खरीद-फरोख्त को बढ़ावा मिलेगा।
इन विधि विशेषज्ञों के अनुसार अदालत कर्नाटक विधानसभा में शक्ति परीक्षण के दौरान किसी निष्पक्ष व्यक्ति को पर्यवेक्षक नियुक्त कर सकती है। गोयल और द्विवेदी की भी यही राय थी कि शीर्ष अदालत अपने किसी पर्यवेक्षक की मौजूदगी में शक्ति परीक्षण का निर्देश दे सकती है। ऐसा मई 2016 में उत्तराखंड मामले में किया गया था।
शीर्ष अदालत ने तब विधायी एवं संसदीय मामलों (पीएसएलपीए) के प्रधान सचिव को 10 मई 2016 को उत्तराखंड विधानसभा में शक्ति परीक्षण की निगरानी के लिए निष्पक्ष व्यक्ति के तौर पर भेजा था। उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने विधानसभा में विश्वास मत का प्रस्ताव पेश कर इसे हासिल किया था।
अदालत ने समूची कार्यवाही की पर्यवेक्षक की निगरानी में वीडियोग्राफी कराने का भी निर्देश दिया था। हालांकि, सिंह ने शीर्ष अदालत में जिस तरह कल मध्य रात्रि के बाद सुनवाई हुई उसको लेकर निराशा जाहिर की।
उन्होंने कहा, ‘मैं थोड़ा निराश हूं। उच्चतम न्यायालय को शपथ ग्रहण पर रोक लगा देनी चाहिए थी क्योंकि मध्यरात्रि में फिर याचिका पर सुनवाई करने और फिर शपथग्रहण की अनुमति देने और सुनवाई कल के लिए निर्धारित करने का क्या मतलब था।’
गोयल ने कहा कि अदालत किसी निष्पक्ष व्यक्ति को पर्यवेक्षक नियुक्त कर सकती है जिसकी मौजूदगी में शक्ति परीक्षण होगा। उन्होंने कहा कि अदालत राज्यपाल के फैसले को रद्द कर सकती है और उनसे सामग्री पर विचार करके इस बात का फैसला करने को कह सकती है कि कौन राज्य में स्थिर सरकार प्रदान करने की स्थिति में है।
द्विवेदी की भी राय थी कि अदालत शक्ति परीक्षण की वीडियोग्राफी कराने या निष्पक्ष व्यक्ति की मौजूदगी में विधानसभा की कार्यवाही संचालित करने को कह सकती है। द्विवेदी ने हालांकि साफ किया कि अदालत यह नहीं कह सकती है कि येदियुरप्पा को सरकार बनाने के राज्यपाल के निमंत्रण को रद्द किया जाता है। वह संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत विधायिका के काम में बहुत अधिक हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।
उन्होंने कहा, ‘उच्चतम न्यायालय कल (शुक्रवार को) सुनवाई शुरू कर सकता है या कर्नाटक सरकार और येदियुरप्पा को अपना जवाब दाखिल करने के लिए वक्त दे सकता है। अदालत उन्हें सदन में अपना बहुमत साबित करने के लिये वक्त दे सकती है।’ (भाषा)