नई दिल्ली। कांची कामकोटि पीठ के पीठाधिपति और 69वें शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती का बुधवार को निधन हो गया। तमिलनाडु स्थित हिंदू धर्म में सबसे अहम और ताकतवर समझे जाने वाली कांची पीठ के पीठाधिपति के रूप में जयेंद्र सरस्वती ने राजनीतिक रूप से भी एक ताकतवर संत का जीवन जीया। दूसरी ओर वे अप्रिय विवादों में भी घिरे और उन पर हत्या का आरोप तक लगा।
स्वामी जयेंद्र सरस्वती का वास्तविक नाम सुब्रमण्यन महादेव अय्यर था। उनका जन्म 18 जुलाई 1935 को हुआ था। विदित हो कि 68वें शंकराचार्य चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती ने सुब्रमण्यन को 22 मार्च 1954 को कांची मठ के पीठाधिपति के पद पर आसीन किया। उन्होंने ही इन्हें जयेंद्र सरस्वती का नाम दिया। जयेंद्र सरस्वती को वेदों का ज्ञाता माना जाता था। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी भी इनके प्रशंसकों में से एक हैं।
जयेंद्र सरस्वती ने अयोध्या विवाद के हल के लिए भी पहल की थी। इसके लिए वाजपेयी ने उनकी काफी प्रशंसा की। हालांकि तब उन्हें इस पहल के लिए आलोचना का भी शिकार होना पड़ा था। उन्होंने हिंदुओं के प्रमुख केंद्र कांची कामकोटि मठ को और ताकतवर बनाया।
उनके समय में इस केंद्र में एनआरआई और राजनीतिक शख्सियतों की गतिविधियां बढ़ीं। कांची मठ कई स्कूल और अस्पताल भी चलाता है। देशभर में प्रसिद्ध शंकर नेत्रालय इसी मठ की तरफ से चलाया जाता है। जयेंद्र सरस्वती ने 1983 में शंकर विजयेंद्र सरस्वती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था।
कांची मठ के मैनेजर शंकरारमन की हत्या के आरोप में 11 नवंबबर 2004 को जयेंद्र सरस्वती को गिरफ्तार भी किया गया था। उस समय राज्य में जयललिता की सरकार थी। एक समय जयललिता, जयेंद्र सरस्वती को अपना आध्यात्मिक गुरु भी मानती थीं। 27 नवंबर 2013 को शंकररमन हत्या मामले में पुडुचेरी की अदालत ने कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, उनके भाई विजयेंद्र समेत सभी 23 आरोपियों को बरी कर दिया था।
कहा जाता है कि मृतक शंकररमन की पत्नी सुनवाई के दौरान आरोपियों को पहचानने में सफल नहीं रहीं थीं और इसके अलावा इस मामले के कई गवाह बाद में गवाही से मुकर गए। इस कारण से उन्हें और बाकी आरोपियों को बरी कर दिया गया था।
कांचीपुरम मठ के 82 वर्षीय शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती काफी दिनों से बीमार चल रहे थे और उन्हें सांस लेने की तकलीफ के चलते बुधवार को कामाक्षी अम्मान हॉस्पिटल के नजदीक एक हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया था।
विदित हो कि मात्र 19 साल की उम्र में शंकराचार्य बन गए थे जयेंद्र सरस्वती। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दुख व्यक्त किया है। प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर लिखा कि शंकराचार्य हमेशा हमारे दिल में जिंदा रहेंगे। उन्होंने समाज के लिए काफी काम किया है।
प्रधानमंत्री के अलावा कई अन्य नेताओं ने भी शंकराचार्य के निधन पर दुख जताया है। भाजपा नेता राममाधव ने ट्विटर पर लिखा कि जयेंद्र सरस्वती सुधारवादी संत थे, उन्होंने समाज के लिए काफी काम किए। केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने भी जयेंद्र सरस्वती के निधन पर दुख जताया। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती के निधन पर दुख व्यक्त किया है।
चार सिद्ध पीठों में होते हैं शंकराचार्य : प्राचीन काल से सनातन परम्परा और हिंदू धर्म के प्रचार और प्रसार में सबसे बड़ी भूमिका आदि शंकराचार्य की मानी जाती है। यही वजह है कि देश के चारों कोनों में चार शंकराचार्य मठ हैं।
देश में 4 सिद्ध पीठ इस प्रकार हैं। देश के पूर्व में गोवर्धन, जगन्नाथपुरी (उड़ीसा), पश्चिम में शारदामठ (गुजरात), उत्तर में ज्योतिर्मठ, बद्रीधाम (उत्तराखंड) और दक्षिण में श्रृंगेरी मठ, रामेश्वरम् (तमिलनाडु) में है।
कहा जाता है कि ईसा से पूर्व आठवीं शताब्दी में ये चारों मठ स्थापित किए गए थे। आज भी इन्हें चार शंकराचार्यों के नेतृत्व में चलाया जाता है। इन मठों के अलावा आदि शंकराचार्य ने बारह ज्योतिर्लिंगों की भी स्थापना की थी।
गौरतलब है कि इन मठों में गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वहन होता है। पूरे भारत में संन्यासी अलग-अलग मठ से जुड़े होते हैं जहां उन्हें संन्यास की दीक्षा दी जाती है। सबसे खास बात यह कि संन्यास लेने के बाद दीक्षा लेने वालों के नाम के साथ दीक्षित विशेषण भी लगाने की परंपरा है।
यह विशेषण लगाने से संकेत मिलता है कि संन्यासी किस मठ से है और वेद की किस परम्परा का वाहक है। आदि शंकराचार्य ने इन चारों मठों में सबसे योग्यतम शिष्यों को मठाधीश बनाने की परंपरा शुरू की थी, जो आज भी प्रचलित है।
जो भी इन मठों का मठाधीश बनता है, वह शंकराचार्य कहलाता है। शंकराचार्य अपने जीवनकाल में ही अपने सबसे योग्य शिष्य को उत्तराधिकारी बना देता है।